आज हम सनातन के आधार पर खड़ी व्यवस्थाओं को देखते हैं और उसकी तुलना में सेमेटिक मूल्यों पर आधारित संस्थाओं को देखते हैं तो उनके विरोध के कारण और परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं। इन विरोधों को समझने के लिए विद्वता की आवश्यकता नहीं है, मात्र व्यवहार दृष्टि पर्याप्त है… भारतवर्ष की भौगोलिक
मान्यता है कि शरीर के चर्म रोगों और जोड़ों के दर्द में लेप करने के लिए यह प्रसाद रामबाण का काम करता है। मकर संक्रांति पर्व पूरे देश के साथ-साथ कांगड़ा के नगरकोट धाम में भी मनाया जाता है। इस पर्व पर बज्रेश्वरी मंदिर कांगड़ा में घृतमंडल तैयार किया जाता है… हिमाचल प्रदेश के जिला
* स्वयं पर विश्वास करना और सत्य का पालन करना ही सबसे बड़ा धर्म है। * लक्ष्य को ही अपना जीवन समझो। हर समय उसका चिंतन करो, उसी का स्वप्न देखो और उसी के सहारे जीवित रहो। * अपने सामने एक ही साध्य रखना चाहिए। उस साध्य के सिद्ध होने तक दूसरी किसी बात की
भारत के कोने-कोने में मां दुर्गा के मंदिर स्थापित हैं जो अपने चमत्कारों के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं। ऐसा ही एक मंदिर है मां चंडिका का। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में मां सती की बायीं आंख गिरी थी। जिसके कारण यह विश्व प्रसिद्ध है। इस
वाराणसी में बसा काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगो में से एक है। यह मंदिर काशी में पिछले कई हजार साल से स्थित है। अगर आप अभी तक यहां नहीं गए हैं तो एक बार जाकर देखिए, क्योंकि मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान करने से मोक्ष
चनौर गांव व्यास नदी के किनारे 3 मील की दूरी पर दक्षिण की ओर माता चिंतपूर्णी तथा माता शीतला जी के उत्तर की तरफ 5 और 6 मील की दूरी पर स्थित है। यहां द्वापर युग में पांडवों के बनवाए हुए तीन मंदिर हैं। पहला मंदिर दुर्गा चंडी जी का है, दूसरा मंदिर श्री लक्ष्मी
इस प्रकार केवल स्वार्थ परायण जीवन व्यतीत करने वाला इस लोक और परलोक में दुख ही पाता है। यदि वह कभी सुख का भी अनुभव करता है, तो वह क्षणिक और भ्रमयुक्त होता है। जैसे शराब के नशे में मनुष्य मजा समझता है और आरंभ में बड़ी प्रसन्नता भी प्रकट करता है, पर इसका परिणाम
रथ के विविध भागों में बैठे देव, ग्रह, ऋषि और गंधर्व आदि रथ की रक्षा में प्रवृत्त हो गए। शिवजी के रथारूढ़ होने पर नंदीश्वर अपना त्रिशूल लेकर तथा अन्य योद्धा अपने-अपने शस्त्रों से सन्नद्ध होकर साथ ही चल पड़े। इधर शिवजी के आधिपत्य में देवसेना त्रिपुर को रवाना हुई तो उससे पूर्व ही नारद
एक स्त्री का सबसे बड़ा आश्रय उसका पति होता है, उसके बाद उसका पुत्र व तीसरा उसके नातेदार, चौथा कोई सहारा नहीं होता। हे राजन! इन तीनों आश्रयों में आप मेरे पति तो मेरा सहारा बिलकुल भी नहीं हो (क्योंकि आप मेरी सौत के इशारों पर नाच रहे हो)। श्री राम को तो आपने वन