आस्था

लेकिन साधनों की कमी के कारण मैं निराश हो जाता हूं। मेरे गुरु का आदेश है कि हमारी मातृभूमि का पुनरुत्थान किया जाए। भारतवर्ष में सच्ची आध्यात्मिकता लोप हो गई है और भुखमरी का भूत सभी में घूमता फिर रहा है। इस वजह से भारतवर्ष को शक्तिशाली बनाकर अपनी आध्यात्मिकता द्वारा विश्व को विजय करना है। इन बातों से प्रभावित होकर शरतचंद्र ने कहा, स्वामी जी आप जो भी चाहते हैं, मैं वो करने को तैयार हूं। स्वामी जी ने

यह संसार जो दिखता है, वह सिर्फ परछाई है। जो सत्य है, वह अदृश्य है। यह संसार तीन गुणों से व्याप्त है, सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण। जीवन में यह तीन गुण ना हों, तो जीवन ही नहीं है। पर ये तीनों गुण आपस में विरोधात्मक हैं। ये जीवन में चलते ही रहते हैं। जो पंच तत्त्व से बना हुआ प्रपंच है, उससे ऊपर उठना पड़ेगा...

प्रेम नींव है भक्ति रूपी महल की। प्रेम से परमात्मा और परमात्मा से प्रार्थना। प्रेम से परमात्मा की प्राप्ति होती है। चाहे दुनिया की कोई भी भाषा हो पर महत्त्व प्रेम को ही दिया गया है। प्रेम को पाओ। जिसमें प्रेम नहीं वह सिर्फ मांस हड्डियों का ढेर है। एक महात्मा ने अपने शिष्य से पूछा बताओ तुम्हें जीवन में किन-किन चीजों की आवश्यकता है?

ज्ञान मार्ग नहीं है। ज्ञान ही रोक लेता है, अटका लेता है। ज्ञान का बोझ मन को इतना भारी कर देता है कि फिर सत्य तक की यात्रा करनी कठिन हो जाती है। ज्ञान के तट से जिनकी नाव बंधी है, वे सत्य के सागर में यात्रा नहीं कर सकेंगे। स्वभावत: यदि ज्ञान मार्ग नहीं है, तो एक दूसरा विकल्प है भक्ति और क

एक बार की बात है। एक गांव में एक महान संत रहते थे। वे अपना स्वयं का आश्रम बनाना चाहते थे, जिसके लिए वे कई लोगों से मुलाकात करते थे और उन्हें एक जगह से दूसरी जगह यात्रा के लिए जाना पड़ता था। इसी यात्रा के दौरान एक दिन उनकी मुलाकात एक साधारण सी कन्या विदुषी से हुई। विदुषी ने उनका बड़े हर्ष से स्वागत किया और संत से कुछ समय कुटिया में रुक कर विश्राम करने की याचना की। संत उसके व्यवहार से प्रसन्न हुए

* गाय का मक्खन आंखों पर लगाने से आंखों की जलन दूर होती है।

ऊपर वाली अदृश्य ताकत ने सृष्टि के समस्त जीवों की रचना और मानव सरीखी उत्कृष्ट रचना की, जिसे बुद्धि का अजीम वरदान भी दे दिया। सृष्टि के विकास को जारी रखने के लिए मानव को...

हमारे तमाम धार्मिक तथा मांगलिक कार्यों में, पूजा अर्चना या हवन यहां तक कि विवाहोत्सव आदि में भी तिल की उपस्थिति अनिवार्य रखी गई है, क्योंकि मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से तिल का विशेष महत्त्व है...

पौष पूर्णिमा विक्रमी संवत के दसवें माह पौष के शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि है। ऐसी मान्यता है कि पौष मास के दौरान जो लोग पूरे महीने भगवान का ध्यान कर आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं, उसकी पूर्णता पौष पूर्णिमा के स्नान से हो जाती है। इस दिन काशी, प्रयाग और हरिद्वार में स्नान का विशेष महत्त्व होता है। जैन धर्मावलंबी इस दिन ‘शाकंभरी जयंती’ मनाते हैं तो वहीं, छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाली जनजातियां पौष पूर्णिमा के दिन बड़े ही धूमधाम से ‘छेरता’ पर्व मनाती हैं...