आस्था

स्कन्द षष्ठी का व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। कार्तिकेय की पूजा के लिए हर माह की षष्ठी तिथि के दिन स्कंद षष्ठी व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से सुख-समृद्धि, सौभाग्य और सफलता की प्राप्ति होती है। तिथितत्त्व ने चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कन्द षष्ठी कहा है। यह व्रत संतान षष्ठी नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कन्द षष्ठी मानते हैं। स्कंदपु

उत्तराखंड के कुमाऊं का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है। यहां कई राजवंशों ने राज किया था। कुमाऊं के कत्यूरी वंश के शासन काल को इतिहास में कुमाऊं का स्वर्ण काल कहा जाता है। कत्यूरी राजा शैव धर्म के अनुयायी थे।

भारतीय संस्कृति में प्रभु श्री राम और माता सीता को आदर्श दंपति माना जाता है। जिस तरह प्रभु श्रीराम ने हमेशा अपनी मर्यादा बनाए रखकर पुरुषोत्तम का पद पाया, ठीक उसी तरह माता सीता ने अपनी पवित्रता को साबित कर सारे संसार के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया...

तपस: से क्या होता है? हम क्यों तप से गुजरते हैं? तप हमारे तंत्र प्रणालियों की शुद्धि कर देता है और उन्हें बल प्रदान करता है। तप का उद्देश्य ही है, शुद्धता और शक्ति। परंतु तपस से किसी भी व्यक्ति में बड़ा अहंकार उपज सकता है, दुर्भाग्यवश लोग सोचते हैं कि वो बहुत अधिक तपस: कर के कुछ महान काम कर रहे हैं। यदि किसी को बहुत लंबे समय तक व्रत रखना पड़ रहा है तो इसका अर्थ है कि उनके भीतर बहुत सारी अशुद्धता रही

मंडी जिला के जोगिंद्रनगर कस्बे से सरकाघाट-घुमारवीं मुख्य सडक़ पर महज 8 किमी. दूर रणा खड्ड के किनारे बाबा मछिन्द्र नाथ का पवित्र स्थान मच्छयाल स्थित है। कहते हैं कि हजारों वर्ष पूर्व इस स्थान के प्राकृतिक सौंदर्य से वशीभूत होकर बाबा मछिन्द्र नाथ ने...

स्वामी रामस्वरूप वही सर्वव्यापक, निराकार ब्रह्म उस समय महायोगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज ब्रह्म के समान हुए हैं। अत: हम वेदों में कहे निराकार, सर्वव्यापक, सृष्टि रचयिता ब्रह्म को वेद विद्या सुन-सुन कर जाने। अत: आओ लौट चलें उस ओर जहां मुनि वेद सुनाते हैं… गतांक से आगे… प्रलय में सब कुछ नष्ट हो जाता है। प्रलय

वे ही इस सच्चे व स्थायी आनंद के भंडार हैं। लोग पूछते हैं कि निरंकार बाबा जी बड़े-बड़े समागम क्यों करते रहते हैं। लाखों आदमी इक_े हो जाते हैं, बड़ा प्रबंध करना पड़ता है। क्यों न पांच-पांच अथवा दस- दस के ग्रुपों में लोगों को मिलकर समय दें। मैंने कहा, निरंकारी बाबा जी ठीक कर रहे हैं यदि अलग-अलग बीमारी अलग-अलग मनुष्यों को हो तो अलग-अलग समय देते। परंतु अज्ञानता की बीमारी लाखों लोगों को एक जैसी है और इन सब की एक ही दवाई है ब्रह्मज्ञान। अज्ञानता के साथ जो भी दोष है काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इनका निदान ब्रह्मज्ञान से ही होगा। किसी ने पूछा निरंकारी समागम बड़े विशाल रूप में और उ

कभी किसी दिन नरेंद्र रात को दक्षिणेश्वर चले जाते और पंचवटी के नीचे ध्यान करने लगते। उनका तीव्र अनुराग देखकर श्री रामकृष्ण बड़े आनंदित होते। एक दिन नरेंद्र को अपने पास बुलाकर वे बोले, देख साधना करते समय मुझे आठ सिद्धियां मिली थीं। उनका किसी दिन कोई उपयोग नहीं हुआ। तू ले ले, भविष्य में तेरे बहुत काम आएंगी। नरेंद्र ने पूछा महाराज क्या उनसे भगवान प्राप्ति में कोई सहायता मिलेगी। श्री रामकृष्ण ने उत्तर दिया, नहीं सो तो नहीं होगा, पर इस लोक की कोई भी इच्छाएं अपूर्ण नहीं रहेंगी। तनिक भी सोच विचार करते हुए त्यागी श्रेष्ठ नरेंद्र ने उत्तर दिया, तब तो महाराज वो मुझे नहीं चाहिए। फिर एक दिन श्री रामकृष्ण देव ने अपने तरुण शिष्यों को संन्यास देने का संकल्प किया। शुभ दिन में

धीरे-धीरे मनुष्य भीड़ या समूह में खोता गया है। अकेले होने की भी कोई स्थिति है, यह उसे भूल गई है। सुबह से हम उठते हैं और जो दुनिया शुरू होती है, जो काम शुरू होता है, वह हमें भीड़ में ले जाता है। दिन भर की मेहनत के बाद अगर कभी थोड़ी देर बैठने का समय मिलता है तो कुछ पढ़ते हैं, कुछ सुनते हैं। वक्त मिलता है तो मित्रों से मिलते हैं। होटल, सिनेमा या क्लब वहां भी हम अकेले नहीं होते। जब थक जाते हैं तो रात को सो जाते हैं, फिर सुबह से वही दुनिया शुरू हो जाती है। अकेला होना करीब-करीब हम भूल चुके हैं। ध्यान रहे, दुनिया में जिन भी श्रेष्ठतम वस्तुओं का जन्म हुआ है, वे सब एकांत में पैदा हुई हैं, भीड़ में नहीं। यह भी स्मरण रहे कि दुनिया में मनुष्य जाति के इतिहास में जिन लोगों ने भी सत्य, सौंदर्य और शिवत्व को जाना है, उन सबने एकांत में जाना है, भीड़ में नहीं। यह भी ख्याल में रहे कि भीड़ ने अब तक कोई महान कार्य न