आस्था

शरीर और प्राण मिलकर जीवन बनता है। इन दोनों में से एक भी विलय हो जाए, तो जीवन का अंत ही समझना चाहिए। गाड़ी के दो पहिए ही मिलकर संतुलन बनाते और उसे गति देते हैं। इनमें से एक को भी अस्त-व्यस्त नहीं होना चाहिए। अन्यथा प्राण को भूत-प्रेत की तरह अदृश्य रूप से आकाश में, लोक-लोकांतरों में परिभ्रमण करना पड़ेगा। शरीर की कोई अंत्येष्टि न करेगा, तो वह स्वयं ही सड़ गल जाएगा। आत्मा को उसी के साथ गुंथा रहना पड़ता है। इसका प्रतिफल यह होता है कि आत्मा अपने आपको शरीर ही समझने लगती है और इसकी आवश्यकताओं से

साधारण भद्रता सूचक शिष्टाचार का ही प्रदर्शन किया, बल्कि कई लोगों के मुंह पर अवज्ञा चिन्हित विरक्ति के चिन्ह भी स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे। इसी बीच श्री रामकृष्ण समाधि में मग्र हो गए। उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी, इससे उपासना गृह में गड़बड़ी और कोलाहल होते देख संचालकों ने गैस की बत्तियां बुझा दीं। नरेंद्र काफी मुसीबत उठाकर मंदिर के पिछले दरवाजे से श्री रामकृष्ण को बाहर निकाल लाए और उन्हें दक्षिणेश्वर भेज दिया। नरेंद्र को श्री रामकृष्ण के प्रति ब्रह्मों के इस प्रकार के आचरण को देखकर गहरा धक्का लगा और यह जानकर कि सिर्फ उन्हीं की वजह से श्री रामकृष्ण को अपमानित होना पड़ा, क्षुब्ध और व्यथित नरेंद्र फिर कभी ब्रह्म समाज नहीं गए। नरेंद्र

जब ब्रेन को सही मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है, तो दिमाग के सैल्स मरने लगते हैं। ऐसे में शरीर की गतिविधियां प्रभावित होने लगती हैं। जिसे इंट्राक्रानियल हेमरेज या सेरेब्रल हेमरेज कहा जाता है। ऐसे में अगर ...

मौसम में बदलाव के साथ हमारे खान-पान का पैटर्न भी बदल जाता है। कई लोग तो सर्दियों के दिनों में बहुत कम मात्रा में पानी पीते हैं। असल में, सर्दियों में प्यास कम लगती है, इसलिए लोगों का पानी पीना कम हो जाता है। तो क्या सर्दियों में कम पानी पीने से कोई तकलीफ नहीं होती है? जबकि, गर्मियों में कम पानी पीने से हमें डिहाइड्रेशन, लो एनर्जी और थकान जैसी कई तरह की शारीरिक समस्याएं परेशान करती हैं...

विश्व भर में प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां चिंतपूर्णी से श्रद्धालु अब घर बैठे प्रसाद व मां चिंतपूर्णी का स्वरूप मंगवा सकते हैं। चिंतपूर्णी मंदिर ट्रस्ट द्वारा यह नई सुविधा श्रद्धालुओं के लिए शुरू की गई है। इस नई सेवा का शुभारंभ उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने स्थानीय विश्राम गृह में किया। इस अवसर पर चिंतपूर्णी

करवा चौथ का पर्व भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मुख्य रूप से मनाया जाता है। करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। करवा चौथ स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय व्रत है। यों तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी और चंद्रमा का व्रत किया जाता है, परंतु इनमें करवा चौथ का सर्वाधिक महत्त्व है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य एवं मंगलकामना के लिए यह व्रत करती हैं। वामन पुराण में करवा चौथ व्रत का वर्णन आता है...

कार्तिक स्नान की पुराणों में बड़ी महिमा कही गई है। कार्तिक मास को स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। स्कंदपुराण के अनुसार कार्तिक मास में किया गया स्नान व व्रत भगवान विष्णु की पूजा के समान कहा गया है। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह और पूर्णिमा को गंगा स्नान किया जाता है...

मीराबाई को श्रीकृष्ण की सबसे खास भक्त माना गया है। वो वैष्णव भक्ति आंदोलन के सबसे लोकप्रिय संतों में से एक थीं। मीराबाई के जन्म का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, लेकिन मान्यता अनुसार मीराबाई की जयंती शरद पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। मीराबाई ने अपना पूरा जीवन कृष्ण की भक्ति में व्यतीत किया। मीराबाई के जीवन से जुड़ी कई बातों को आज भी रहस्य माना जाता है। मीराबाई जयंती इस बार 28 अक्तूबर को मनाई जाएगी। भगवान श्रीकृष्ण और राधा का भले ही मिलन न हो सका, लेकिन उनका प्रेम जग के लिए मिसाल बन गया।

उत्तरी भारत में पंजाब राज्य में अमृतसर से 11 किमी. दूर अमृतसर-चोगावा रोड पर प्राचीन व ऐतिहासिक धार्मिक स्थल श्री राम तीर्थ मंदिर स्थित है। यह मंदिर भगवान राम को समर्पित है। न केवल इस मंदिर का, अपितु इस पावन स्थली का भी इतिहास रामायण काल से जुड़ा है। यहां महर्षि वाल्मीकि का आश्रम और एक कुटी (झोपड़ी) स्थित है। ऐसी मान्यता है कि श्री राम द्वारा माता सीता का परित्याग करने के पश्चात ऋषि वाल्मीकि ने उन्हें इसी स्थान पर अपने आश्रम में आश्रय दिया था। तब माता सीता ने यहां इस कुटी में ही निवास किया था, इसी कारण इसे माता सीता की आश्रय स्थली भी कहा जाता है। यहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ था। महर्षि वाल्मीकी जयंती इस बार 28 अक्तूबर को मनाई जा रही है। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना भी यहीं की थी। इसी आश्रम में उन्होंने लव और कुश को शस्त्र चलाने की शिक्षा भी दी थी। जब श्री राम ने अश्वमेध यज्ञ के लिए घोड़ा छोड़ा था, तब इसी स्थान पर लव-कुश ने उस घोड़े को पकड़ा था और श्री राम के साथ युद्ध भी किया था। इस मंदिर के समीप ही एक सरोवर है, जिसे बहुत पावन माना जाता है।