आस्था

हाथों-पैरों में जलन की समस्या को छोटा समझ अकसर लोग इग्नोर कर देते हैं। मगर असल में इसके कारण न सिर्फ  असहनीय दर्द, बल्कि खुजली जैसी परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। कई बार तो इसके कारण चलना भी मुश्किल हो जाता है। हालांकि कुछ लोग इसके लिए दवाइयों या क्रीम का सहारा लेते

इसका भाव इस प्रकार है- हे वास्तुदेव, हम आपके सच्चे उपासक हैं, इस पर आप पूर्ण विश्वास करें और तदनंतर हमारी स्तुति-प्रार्थनाओं को सुनकर आप हम सभी उपासकों को आधि-व्याधि मुक्त कर दें और जो हम अपने धन-ऐश्वर्य की कामना करते हैं, आप उसे भी परिपूर्ण कर दें। साथ ही इस वास्तुक्षेत्र या गृह में

मन एक पराधीन उपकरण है – वह किसी दिशा में स्वेच्छापूर्वक दौड़ नहीं सकता। उसके दौड़ाने वाली सत्ता जिस स्थिति में रह रही होगी, चिंतन की धारा उसी दिशा में बहेगी। मन को दिशा देने वाली मूल सत्ता का नाम आत्मा है। दूसरे प्रश्न में जिज्ञासा है कि माता के गर्भ में पहुंचने पर प्रथम

-गतांक से आगे… घोर-रूपा घोर-दंष्ट्रा घोरा घोर-तरा शुभा। महा-दंष्ट्रा महा-माया सुदंती युग-दंतुरा।। 11।। सुलोचना विरूपाक्षी विशालाक्षी त्रिलोचना। शारदेंदु-प्रसन्नस्या स्पुरत स्मेराम्बुजेक्षणा।। 12।। अट्टहासा प्रफुल्लास्या स्मेर-वक्त्रा सुभाषिणी। प्रफुल्ल-पद्म-वदना स्मितास्या प्रिय-भाषिणी।। 13।। कोटराक्षी कुल-श्रेष्ठा महती बहु-भाषिणी। सुमतिरू मतिश्चण्डा चण्ड-मुण्डाति-वेगिनी।। 14।। प्रचण्डा चण्डिका चण्डी चर्चिका चण्ड-वेगिनी। सुकेशी मुक्त-केशी च दीर्घ-केशी महा-कचा।। 15।। प्रेत-देही-कर्ण-पूरा प्रेत-पाणि-सुमेखला। प्रेतासना प्रिय-प्रेता प्रेत-भूमि-कृतालया।। 16।। श्मशान-वासिनी

शोधकर्ताओं के अनुसार आगरा से 600 किलोमीटर दूर बुरहानपुर में मुमताज की कब्र है जो आज भी ज्यों की त्यों है। बाद में उसके नाम से आगरा के ताजमहल में एक और कब्र बनी जो नकली है। बुरहानपुर से मुमताज का शव आगरा लाने का ढोंग क्यों किया गया? माना जाता है कि मुमताज को

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव अगर आप मन के परे चले जाएं तो आप पूरी तरह से कर्मिंक बंधनों के भी परे चले जाएंगे। आप को कर्मों को सुलझाने में असल में कोई प्रयास नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि जब आप अपने कर्मों के साथ खेल रहे हैं, तो आप ऐसी चीज के साथ खेल रहे हैं, जिसका

बाबा हरदेव हमारी सारी इंद्रियां पांच अरब इंद्रियों का काम करती है, क्योंकि चलते वक्त पूरे समय आकाश बदलता रहता है और हमारी इंद्रियां हर बार नई-नई चीज को देखती रहती हैं। इसलिए हम अनेक रूपों का जगत में अनुभव कर रहे हैं। अब अनेकता में एकता या एकता में अनेकता वो ही व्यक्ति जान

पौणमासी तथा ज्ञैया अमावास्या तथैव च। सिनीवाली कुहुश्चैव राकाचानुसतिस्तथा। तपस्तपस्यौ मधुमाधवौ च शुक्र शुचिश्चायनमु त्नरः स्तात। तभौनभस्यौ च इषस्तथोर्जस्तुहःसहस्याधिति दक्षिण तत। लोकालोकश्च यश्शैलः प्रायुक्तो भवतो मया। लोकपालास्तु चत्वारस्तत्र तिष्ठंति सुव्रताः। सुधामा शंखपाच्चैव कर्दमस्यात्मजो द्विज। हिरण्यरोमा चैवान्यश्चतुर्थः केतुमानपि। निर्द्वन्द्वा निरभिमाना निस्तन्द्रा निष्परिग्रहाः। लोक पालाः स्थित ह्येते लोकालोके चतुर्दिशम। संज्ञादि या समय निश्चित करने के लिए दिन-रात

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… वह बहुत ही धीमे-धीमे  किसी एक से बात कर पाते थे। उनको पीने के लिए सिर्फ जौ का पानी ही दिया जाता था। वह भी निगलने में उन्हें काफी कठिनाई होती थी, लेकिन फिर भी इस महामानव की कृपा की कोई हद नहीं थी। हमेशा ही वह अपने भक्तों को