आस्था

महाभारत के पात्र उन्होंने यह योजना बनाई कि वह मध्याह्न में जब कर्ण सूर्य देव की पूजा कर रहा होता है, तब वह एक भिक्षुक बनकर उससे उसके कवच-कुंडल मांग लेंगे। सूर्यदेव इंद्र की इस योजना के प्रति कर्ण को सावधान भी करते हैं, लेकिन वह उन्हें धन्यवाद देकर कहता है कि उस समय यदि

वास्तु शब्द ‘वस निवासे’ धातु से निष्पन्न होता है, जिसे निवास के अर्थ में ग्रहण किया जाता है। जिस भूमि पर मनुष्यादि प्राणी निवास करते हैं, वास्तु कहा जाता है। इसके गृह, देवप्रसाद, ग्राम, नगर, पुर, दुर्ग आदि अनेक भेद हैं। वास्तु की शुभाशुभ-परीक्षा आवश्यक है। शुभ वास्तु में रहने से वहां के निवासियों को

यह किला हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में है। इसे कांगड़ा के शाही परिवार ने बनवाया था। यह दुनिया के सबसे पुराने किलों में से एक है और इसे देश के सबसे पुराने किलों में गिना जाता है। इसे नगरकोट या कोट कांगड़ा के नाम से भी जाना जाता है। बाणगंगा और मांझी नदियों के ऊपर

जेन कहानियां यामाओका तेशु एक युवा जेन साधक था। अपनी अधीरता के वश में वह एक से दूसरे जेन गुरु के पास भटकता रहता था। एक बार वह शोकोकू के आश्रम में जेन गुरु दोकुओन के पास आया। अपना ज्ञान बघारते हुए उसने कहा, मन, बुद्धि, चेतन जगत आदि सब अस्तित्त्वहीन हैं। मात्र आभासी। सत्य

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए

रुद्रयामल तंत्र में क्रमशः साधना करते हुए भक्षण-नियम, अभक्षण-त्याग, पयो-भक्षण, आसन एवं कालनिर्णय आदि महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान करने तथा यौगिक कर्मों का निर्देश दिया गया है। यदि बालकपन से ही ब्रह्मचर्य का पालन किया जाए तो वह अग्रिमकाल में सुसाध्य बन जाता है क्योंकि कामादि-संहरण के बिना योग साधना में प्रवृत्त नहीं हुआ जा

जब मछेंद्रनाथ देवी द्वार पर दर्शनों को पहुंचे, तो दरवाजे पर मध प्रतापी, अष्ट भैरव को खड़े पाया। उन्होंने मछेंद्रनाथ को देखते ही पहचान लिया कि इन्होंने सावरी मंत्र के प्रभाव से नागपाश अवस्था में पेड़ के नीचे सब देवताओं को वशीभूत कर उनसे वरदान प्राप्त किए हैं और इनका कार्य कहां तक सिद्ध हुआ

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… लेकिन फिर भी उम्मीदों से भरे सभी भक्त उनकी सेवा में लगे रहे। सभी भक्तों ने उनकी बड़ी सेवा की, किसी ने उनकी सेवा में कोई कमी नहीं की। नरेंद्र अनयंचित हो गुरुदेव द्वारा प्रदर्शित उपाय से साधना के रास्ते में द्रुत उन्नति करने लगे। वह कठोर इंद्रिय निग्रह प्रबल

गतांक से आगे… नभोनभस्वद्दहनाम्बुभूमयः सूक्ष्माणिभूतानि भवंति तानि।। परस्परांशैर्मिलितानि भ्रूत्वा स्थूलानि च स्थूलशरीरहेतव ः। मात्रास्तदीया विषया भवंति शब्दादयः पंचसुखाय भोक्तु।। आकाश, वायु, तेज, जल और पृथ्वी ये  सूक्ष्म भूत हैं। इनके अंश परस्पर मिलने से स्थूल होकर स्थूल शरीर के हेतु होते हैं अर्थात इनके मिलने से शरीर बनता है तथा इन्हीं की तन्मात्राएं भोग करने