आस्था

योगिनी एकादशी को भगवान नारायण की पूजा-आराधना की जाती है। पुराणों के अनुसार आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी योगिनी है। श्री नारायण भगवान विष्णु का ही नाम है। विधि इस दिन व्रती रहकर भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराके भोग लगाते हुए पुष्प, धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए। अन्य एकादशियों के समान ही

हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां देवी-देवताओं के अनेकों मंदिर है। ऐसा ही एक माता नवाही देवी का मंदिर जोकि जिला मंडी के सरकाघाट से 4 किमी. की दूरी पर नवाही स्थान पर स्थित है। देवी के प्रकट होने के बाद ही लोगों ने अब इस गांव का नाम नवाही

-गतांक से आगे… ज्ञानेश्वरी पीतचेला वेदवेदाङ्गपारगा। मनस्विनी मन्युमाता महामन्युसमुद्भवा।। 106।। अमन्युरमृतास्वादा पुरंदरपरिष्टुता। अशोच्या भिन्नविषया हिरण्यरजतप्रिया।। 107।। हिरण्यजननी भीमा हेमाभरणभूषिता। विभ्राजमाना दुर्ज्ञेया ज्योतिष्टोमफलप्रदा।। 108।। महानिद्रासमुत्पत्तिरनिद्रा सत्यदेवता। दीर्घा ककुद्मिनी पिङ्गजटाधारा मनोज्ञधीः।। 109।। महाश्रया रमोत्पन्ना तमःपारे प्रतिष्ठिता। त्रितत्त्वमाता त्रिविधा सुसूक्ष्मा पद्मसंश्रया।। 110।। शांत्यतीतकलाऽतीतविकारा श्वेतचेलिका। चित्रमाया शिवज्ञानस्वरूपा दैत्यमाथिनी।। 111।। काश्यपी कालसर्पाभवेणिका शास्त्रयोनिका। त्रयीमूर्तिः क्रियामूर्तिश्चतुर्वर्गा च दर्शिनी।। 112।। नारायणी नरोत्पन्ना

प्रारंभ में यहां द्वादश शिवलिंग स्थापित किए गए थे, जिनके अवशेष यहां आज भी विद्यमान हैं। यहां द्वादश शिवलिंग की स्थापना होने पर यहां का नाम आदिकाल से ही द्वादश या फिर स्थानीय बोली में द्वाश या फिर दलाश के नाम से प्रसिद्ध है… मनोरम पहाडि़यों में बसा कुल्लू का दलाश गांव सतलुज घाटी ब्राह्य

उनके लिए अपना शरीर और पशु एक जैसा ही जान पड़ता है। चाहे कोई उनका अति सम्मान करके पूजा करे और चाहे उनको गालियां देकर मारे, बांधे या अन्य प्रकार से अपमानित करे, पर वे किसी अवस्था में हर्ष या शोक नहीं मानते। हे शिष्य! गर्भ उपनिषद में इस शरीर की जो व्यवस्था बतलाई है,

जेन कहानियां नौजवान जेंकई किसी सैनिक का बेटा था। आवारागर्दी करते हुए ईडो शहर आया और एक उच्चाधिकारी के यहां घरेलू नौकर बन गया। उच्चाधिकारी की पत्नी के साथ उसके अबैध संबंध हो गए। उसकी भनक उच्चाधिकारी को लगी, तो जेंकई ने उसकी पत्नी के साथ मिल कर उसे मौत के घाट उतार दिया और

स्वामी रामस्वरूप इसीलिए यजुर्वेद मंत्र 2/26 में ईश्वर को ‘स्वयंभूः’ कहा है। स्वयंभू का अर्थ है जो जन्म-मरण से रहित है अर्थात न उसको किसी ने बनाया है और न उससे आगे बनाया जा सकता है। तो इसी परमेश्वर को श्रीकृष्ण महाराज ने ‘तद्धर्तापतिरूप’ भाव से श्लोक 9/13 में ‘भूतादिम’ अर्थात भूतों का आदि कारण

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… उधर शाम हो गई। नरेंद्र विदा लेने लगे, तब उन्होंने जिद्द की बोले फिर जल्दी आओगे? इसलिए उन्हें वैसा वचन देकर नरेंद्र कलकत्ता वापस आ गए। नरेंद्र ने अपनी बी.ए की पढ़ाई पूरी कर ली तो पिता के आदेश पर सुप्रसिद्ध अटर्नी निमाई चरण वसु के पास अटर्नी का काम

सदगुरु  जग्गी वासुदेव हर पीढ़ी एक ही गलती करती है, इसका मतलब है कि वे कुछ नहीं सीख रहे। एक समाज के निर्माण में परिवार सबसे बुनियादी संस्था होती है, मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि आपको बुनियादी ही बने रहना है। आपका परिवार आपकी पहचान है, लेकिन जीवन भर खुद को उसी पहचान