आस्था

हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां अनेक देवी-देवताओं के मंदिर हैं। ऐसा ही एक भगवान नृसिंह का मंदिर जिला ऊना की बंगाणा तहसील के तहत पीपलू नामक स्थान पर स्थित है। बंगाणा से सात किलोमीटर की दूरी पर पिपलू में प्रतिवर्ष लगने वाला वार्षिक पिपलू मेला जहां हमारी धार्मिक आस्था

ओशो परमात्मा में हम हैं, परमात्मा से बिलकुल दूरी नहीं है। उसी में पैदा हुए हैं, उसी में जी रहे हैं तो पता नहीं चलता उसका। वायुमंडल का ही उदाहरण ले लो। चारों तरफ  से हम उससे घिरे हुए हैं, क्या उसका एहसास होता है हमें? पता चलता है? नहीं चलता। ऐसे ही परमात्मा से

गतांक से आगे… अतो विमुक्त्यै प्रसतेत विद्वान संन्यस्तबाह्यार्थसुखस्पृहः सन्। संतं महांतं समुपेत्य देशिकं तेनोपदिष्टार्थसमाहितात्मा।। इसलिए विद्वान संपूर्ण विषय भोगों की इच्छा त्यागकर संतशिरोमणि गुरुदेव की शरण में जाकर उनके उपदिष्ट विषय में समाहित होकर मुक्ति के लिए प्रयास करे। उद्धरेदात्मनात्मानं मग्नं संसारवारिधौ। योगारूढत्वमासाद्य सम्यग्दर्शननिष्ठया।। और निरंतर सत्य वस्तु आत्मा दर्शन में स्थित होता हुआ योगारूढ़

सदगुरु  जग्गी वासुदेव अभी इस समय 90ः से भी ज्यादा लोग अपनी शारीरिक और बौद्धिक योग्यताओं के बल पर जीते हैं, लेकिन आज आप जो कुछ भी कर सकते हैं वह सब भविष्य में मशीनें करेंगीं। कोई भी ऐसा काम, जो स्मृति या यादों को इकठ्ठा करके, उस तक पहुंच बनाकर, उस का विश्लेषण करके

मछेंद्रनाथ के जन्म के समय शिव और गौरा पार्वती कैलाश पर्वत पर पधार रहे थे, तभी पार्वती ने महादेव से कहा-आप किस मंत्र का जाप करते हैं वह मंत्र मुझे भी बताने की कृपा करें। इतना सुन शिव मुस्कराकर बोले – देवी इस मंत्र के लिए एकांत होना परम् आवश्यक है। उठो अब चलकर एकांत

श्रीराम शर्मा जीवन रोगों के भार और मार से बुरी तरह टूट गया है। जब तन के साथ मन भी रोगी हो गया हो,तो इन दोनों के योगफल के रूप में जीवन का यह बुरा हाल भला क्यों न होगा? ऐसा नहीं है कि चिकित्सा की कोशिशें नहीं हो रही। चिकित्सा तंत्र का विस्तार भी

बाबा हरदेव अब मन चेतना के बिना नहीं हो सकता, लेकिन चेतना मन के बिना हो सकती है जैसे लहर सागर के बिना नहीं हो सकती, मगर सागर लहर के बिना हो सकता है। मन मनुष्य की चेतना रूपी रस्सी पर बंधी एक ग्रंथि की भांति है। मानो जड़ माया और चेतना जीव में आपस

दक्षिण भारत के अतीत से जुड़े कई अहम पहलुओं को इस शहर के माध्यम से समझा जा सकता है। पांच नदियों और विभिन्न संस्कृतियों वाले इस धरोहर स्थल का इतिहास कई सौ साल पुराना है। माना जाता है कि इसे 10वीं से 11वीं शताब्दी के दौरान कल्याणी के चालुक्यों ने बसाया था। उस समय यह

स्वामी रामस्वरूप मनुष्य योनि का प्रयोजन अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष की सिद्धि है, जिसे पाकर जीव सदा आनंदमय, निरोग आयु प्राप्त करता है। पंरतु अज्ञानी पुरुष की तो आशा अर्थहीन है अर्थात वह सदा काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार , धन, संपत्ति अर्थात केवल संसारी वस्तुओं की ही आशा करता रहता है और केवल ऐसी