आस्था

स्वामी रामस्वरूप अर्जुन क्षत्रिय था। श्रीकृष्ण महाराज उसे क्ष्त्रिय धर्म का वेदों से उपदेश देकर धर्म युद्ध करने की प्रेरणा दे रहे हैं। आज हम वेदों से अपने-अपने क्षेत्र के लिए कर्त्तव्य कर्म करके ही राष्ट्र में सुख-शांति एवं भाईचारा बढ़ा सकते हैं अन्यथा वेद के विरुद्ध जाकर मनगढ़ंत थोथे कर्म, पूजा-पाठ इत्यादि करते हुए

शक्ति की कल्पना प्रायः हम प्रभुत्व स्थापित करने के संदर्भों में करते हैं, परंतु शक्ति केवल प्रभुत्व के संदर्भों तक सीमित नहीं होती। विद्वान भी शक्तिशाली होता है और धनवान को भी शक्तिमान माना जाता है। संभवतः इसी कारण भारतीय मनीषा में शक्ति की  विविध रूपों में कल्पना और उपासना की गई है। त्रिदेवियों के

इस मंदिर में स्थापित मूर्ति के गले से दोनों ओर  से हमेशा रक्त की धारा बहती रहती हैं। जिसके कारण यह अधिक फेमस भी है। इस मंदिर को असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है। रजरप्पा में इस सिद्धपीठ के अलावा यहां पर अनेक

देवताओं की अरदास सुनकर भगवान विष्णु ने देवी सती के शव को अपने चक्र से  51 टुकड़ों में बांट दिया था। इन्हीं टुकड़ों में से पहला देवी का मुकुट जहां गिरा, वही स्थल आज किरीट माता के शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है… शिव की अद्धांगिनी माता देवी सती यानी मां पार्वती अपने दिव्य

देश के कई कोनों में प्राचीन मंदिर हैं और उससे जुड़े कई रहस्य व चमत्कार की बातें, किस्से व कहानियां लोगों से सुनने को मिलती हैं। एक ऐसा ही मंदिर है, जहां देवी की मूर्ति एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। यह चामत्कारिक मंदिर धारी माता का है, जो बद्रीनाथ व केदारनाथ

यहां माता के दो मंदिर बने हुए हैं, एक पुराना मंदिर एवं एक नया मंदिर। बताया जाता है कि 17 अक्तूबर, 1999 की रात को माता के मंदिर में रात्रि जागरण का आयोजन हुआ। पूजा के दौरान माता की पिंडी का आकार बढ़ने लगा तथा पिंडी पर दो लाल आंखें ज्योति के रूप में प्रकट

फिर मंदराचल की रई और बासुकि नागकी नेती बनाकर अत्यंत वेगपूर्वक समुद्र में अमृत का मंथन करने लगे। जिस ओर वासु की पूंछ थी उसी और भगवान ने देवताओं को तथा मुख की ओर दैत्यों को खड़ा किया। अत्यंत तेजस्वी वासुकि नाग के मुख से निकलती हुई श्वास ज्वाला में जलते हुए दैत्यगण तेजहीन हो

शंका – हे याज्ञावल्क्य! क्या श्रवण, मनन और निदिध्या सन आदि उपायों के बिना किसी अन्य उपाय से मनुष्य ब्राह्मण नहीं बन सकता। अगर कोई ऐसा उपाय हो तो बताओ। समाधान- हे कहोल! अभी जो श्रावण-मनन-निदिध्यास का उपाय बताया, उसके सिवाय मनुष्य और किसी तरह ब्राह्मण पद को प्राप्त नहीं कर सकता। इससे हे कहोल!

यजुर्वेद मंत्र 40/7 का भाव है कि जो योगीजन वैदिक ज्ञान-विज्ञान को जानकर कठोर योगाभ्यास आदि उपासना के द्वारा ईश्वर का साक्षात्कार कर लेते हैं, उन्हें तो मोह और शोक आदि क्लेश प्राप्त नहीं होते। परंतु जो संसारी विषयों में फंसकर ईश्वर को भूल जाते हैं, वह संपूर्ण आयु संसारी पदार्थों का ही चिंतन करते