आस्था

पिहोवा को पवित्र माना जाता है और कुरुक्षेत्र से भी अधिक पवित्र सरस्वती नदी है। सरस्वती नदी के भी अनेक तीर्थ हैं, इन सब में पिहोवा तीर्थ सर्वश्रेष्ठ है। सरस्वती के बारे में वामन पुराण में पढ़ने को मिलता है। गंगा, यमुना, नर्मदा, सिंधु इन चारों नदियों के स्नान का फल अकेले पिहोवा में ही

कश्यप महर्षि भी अपने पुत्र एवं पुत्रवधु को लेकर अपने आश्रम की ओर चले गए। इस प्रकार रत्नादेवी तथा उसकी छोटी बहन का विवाह पूर्ण करके सारे जगत की तृप्ति देने वाले प्रभु स्वयं भोजन करने बैठे। वास्तु तथा इलाचल जिनकी चमर ढुला रहे हैं तथा पांचों पुत्र जिनके सामने ध्यानस्थ बैठे हैं ऐसे प्रभु

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… केवल श्रीगुरु ही जानते हैं कि कौन सा मार्ग हमें पूर्णत्व की ओर ले जाएगा। हमें इस संबंध में कुछ भी ज्ञान नहीं, हम कुछ भी नहीं जानते, इस प्रकार का यथार्थ नम्र भाव आध्यात्मिक अनुभूतियों के लिए हमारे हृदय के द्वार खोल देगा। जब तक हम में अहंकार का

ओशो सत्य तो एक है, झूठ अनंत हैं। जैसे स्वास्थ्य एक है और बीमारियां अनेक हैं, ऐसे ही सत्य एक है और सत्य तुम्हें फुसलाएगा नहीं, तुम्हारी खुशामद नहीं करेगा। सत्य तो कड़वा मालूम पड़ेगा, क्योंकि तुम झूठ की मिठास के आदी हो गए हो… जीवन के हर आयाम में सत्य के सामने झुकना मुश्किल

श्रीराम शर्मा आनंद अध्यात्म की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। जो व्यक्ति इसे प्राप्त कर लेता है, उसकी अवस्था आध्यात्मिक दृष्टि से काफी उच्च मानी जाती है। बहिरंग की प्रफुल्लता सर्वसामान्य में भी देखी जाती है, पर वह भौतिकता से जुड़ी होने के कारण अस्थिर होती और घटती-बढ़ती रहती है, लेकिन आनंद आत्मिक होने के कारण

इम्युनिटी यानी रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। फ्री रेडिकल्स कम करने के लिए एंटीऑक्सीडेंट्स जरूरी हैं। सबसे आम एंटीऑक्सीडेंट हैं। विटामिन सी, ई, ए, बीटा कैरोटिन और बायोफ्लेवोनाइड्स। सभी एंटीऑक्सीडेंट्स और कॉपर, जिंक, मैगनीज व सेलेनियम जैसे जरूरी खनिजों का निर्माण हमारा शरीर खुद नहीं कर सकता। इसके लिए सही खान-पान

शरीर को स्वस्थ बनाए रखने और बीमारियों से बचाने के लिए रोज पोषण की आवश्यकता होती है। इसलिए हर रोज ऐसे आहार का सेवन करना चाहिए जिसमें विटामिन, प्रोटीन, फाइबर, आयरन, कैल्शियम जैसे सारे पौष्टिक तत्त्व मौजूद हों। इनमें हरी सब्जियां, साबुत अनाज और ताजे फल भी आते हैं। स्वस्थ शरीर के लिए इन आहारों

महाभारत युद्ध की समाप्ति पर स्वयं श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था कि पितामह भीष्म की मृत्यु के उपरांत ये विश्व ज्ञान शून्य हो जाएगा। अतः आप इनसे जानने योग्य जितनी बाते हैं वो पूछ लीजिए और इस प्रकार भीष्म ने मृत्यु से पूर्व युधिष्ठिर को धर्म की सारी बातें बताई जिन्हें सारे ऋषि गणों,

इस प्रकार आत्मा से भिन्न सब पदार्थ दुख के कारण ही होते हैं। अब अप्रिय पदार्थों से दुख का संपर्क दिखलाते हैं। हे कहोल! प्रिय-अप्रिय पदार्थ वियोग और संयोग होने पर घोर दुख पहुंचाते हैं। जैसे अग्नि पतंगों को जलाती रहती है, उसी प्रकार वैराग्यहीन जीवों को प्रिय-अप्रिय पदार्थ सदा दुख  का कारण ही होते