आस्था

शिवयोगी ने सुमिति को महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने की सलाह दी। उन्होंने अभिमंत्रित भस्म को बच्चे के शरीर से लगाया, जिससे बच्चा जीवित हो उठा… भारत में आदिकाल से ही तंत्र-मंत्र का प्रयोग होता रहा है। अनेक प्रकार की ब्याधियों से मुक्ति के लिए धार्मिक ग्रंथों में अलग-अलग मंत्र दिए गए हैं। इसी क्रम

कोणार्क मंदिर अपनी विशालता, निर्माण-सौष्ठव तथा वास्तु और मूर्ति कला के समन्वय के लिए अद्वितीय है और उड़ीसा की वास्तु और मूर्ति कलाओं की चरम सीमा प्रदर्शित करता है। एक शब्द में यह भारतीय स्थापत्य कला की महानतम विभूतियों में से एक है। मंदिर का मुख पूर्व में उदीयमान सूर्य की ओर है व इसके

एक ताजा शोध में यह बात सामने आई है कि वैरिकोज वेन्स यानी पैरों की नसें सूजने की बीमारी युवाओं में चिंता का कारण बन रही है। करीब 7 प्रतिशत युवा इस स्थिति से परेशान हैं। इस रोग से महिलाओं को चार गुना अधिक खतरा रहता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अनुसार, पैरों की

फेफेड़े हमारे शरीर के मुख्य अंग होते हैं, जो हमारे शरीर में अहम रोल अदा करते हैं। क्योंकि जीवत रहने के लिए सांस लेना बहुत जरूरी होता है और इसके लिए हमारे फेफड़ों का सेहतमंद होना बहुत जरूरी है। आजकल की जीवनशैली और खान-पान के कारण फेफेड़ों में संक्रमण होना आम बात है, लेकिन इसके

उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कालेज में 35 से ज्यादा मौतों के बाद इन्सेफ्लाइटिस बीमारी सुर्खियों में है। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 में बीआरडी मेडिकल कालेज में ही 514 मौतें इन्सेफ्लाइटिस से हुई थीं। दुर्भाग्य से मौतों का आंकड़ा कम होने की बजाय साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है। आखिर

दिव्य भाव का साधक स्त्री जाति मात्र को महाशक्ति की मूर्ति समझता है। वेद, शास्त्र, गुरु, देवता और मंत्र में उसका दृढ़ ज्ञान है तथा शत्रु व मित्र में वह समान भाव वाला है। दूसरा भाव है वीर भाव। इस भाव में परिपूर्णता प्राप्त होने पर ही साधक दिव्य भाव में पहुंचते हैं। इसलिए वीर

तब देवताओं की बात सुनकर पितामह ने उनसे कहा-हे देवताओ! तुम दैत्यों का संहार करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाओ जो विश्व की सृष्टि, स्थिति और प्रलय के कारण हैं, किंतु कारण ही नहीं चराचर के स्वामी, प्रजापतियों के अधिपति, सभी प्राणियों में व्याप्त, अंतःरहित और कभी पराजित न होने वाले हैं …

श्रीराम का जन्म अयोध्या नगरी में होने के बाद भगवान शंकर उनकी बाल-लीलाओं का दर्शन करने के लिए अयोध्या आते और चले जाते। कभी-कभी अयोध्या में रुक भी जाते। श्रीराम के दर्शनों की अभिलाषा से कभी उन्हें ज्योतिषी तथा कभी भिक्षुक बनना पड़ता। एक बार भोलेनाथ श्रीराम के महल में मदारी बन कर आए। उनके

विश्वकर्मा अपनी रची हुई सृष्टि के किसी भी जीव को इस समारोह से वंचित नहीं रखना चाहते थे। इससे उन्होंने सृष्टि के सभी जीवों को निमंत्रण भेजा। इस निमंत्रण को पाकर असंख्य जीवात्माओं के टोल के टोल रात और दिन आने लगे। भगवान की आज्ञा से आने वाले इन सबका स्वागत भी बहुत ही अच्छी