आस्था

प्रकृति को ईश्वर से जोड़ने की अनूठी दृष्टि भारत की विशेषता है। यह इसी देश में संभव है कि भगवान विष्णु की परमप्रिय तिथि को किसी फल से जोड़कर उसकी खासियत के बारे में लोंगो को जागरूक किया जाए। आंवला एकादशी समाज में अच्छाइयों को रोपने के भारतीय तरीके से हमार परिचय कराती है। भारतीय

नास्ति तेषु जातिविद्यारूपकुलधनक्रियादिभेदः।। उनमें (भक्तों में) जाति, विद्या, रूप, कुल, धन और क्रियादिका भेद नहीं है। यतस्तदीयाः।। क्योंकि (भक्त सब) उनके (भगवान के) ही हैं। वादो नावलम्ब्यः।। (भक्त को) वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। बाहुल्यावकाशादनियतत्वाच्च।। क्योंकि (वाद-विवाद में) बाहुल्य का अवकाश है और वह अनियत है। भक्तिशास्त्राणि मननीयानि तदुद्बोधक-कर्माण्यपि करणीयानि।। (प्रेमा भक्ति की प्राप्ति के लिए)

आयुर्वेद आंवले को शरीर शोधक मानता है। इस फल के सेवन से हानिकारक विषैले तत्त्व शरीर में इकट्ठे नहीं हो पाते और इसके कारण रोगों के होने की संभावना बहुत न्यून हो जाती है। यह शरीर में पहले से जमा विषैले तत्त्वों की सफाई कर कायाकल्प कर देता है। आंवले में एंटी ऑक्सीडेंट्स प्रचुर मात्रा

दक्षिण सिक्किम में नामची के पास बना सिद्धेश्वर धाम भी अद्भुत नजारा पेश करता है। जहां एक सौ आठ फुट ऊंची शिव प्रतिमा के साथ बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का लाभ मिलता है… कैलाश मानसरोवर के लिए चीन सीमा पर नाथूला मार्ग खुलने से यहां धार्मिक पर्यटन को और बढ़ावा मिला है तथा इस यात्रा

शिवरीनारायण छत्तीसगढ़ के जांजगीर, चांपा जिले में आता है।  शिवरीनारायण मंदिर का निर्माण हैहय वंश के शासकों ने 11वीं शताब्दी में कराया था। हिंदू कथाओं के अनुसार शिवनारायण मंदिर के पास ही शबरी आश्रम है। शिवरीनारायण मंदिर का निर्माण वैष्णव शैली में बड़ी खूबसूरती के साथ किया गया है।  शिवरीनारायण मंदिर के कारण ही यह

रूद्रपुर के दुधेश्वरनाथ मंदिर को पुराणों में दूसरी काशी के रूप में जाना जाता है। यहां शिवलिंग को महाकालेश्वर उज्जैन का उप ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह शिवलिंग काले पत्थर नीसक पत्थर (कसौटी) का बना है। मान्यता है कि स्पर्श मात्र से मनुष्यों के पापों का नाश हो जाता है और मन्नतें पूरी होती हैं।

अपने भक्त की ऐसी अनदेखी पर इंद्र देव राजा रोमपद पर क्रुद्ध हुए और उन्होंने पर्याप्त वर्षा नहीं की। अंग देश में नाम मात्र की वर्षा हुई। इससे खेतों में खड़ी फसल मुरझाने लगी। फिर राजा को विद्वानों ने बताया कि केवल ऋषि शृंगी ही उन्हें इससे निजात दिला सकते हैं… भारतवर्ष की भूमि ऋषि-मुनियों

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति का रूप भी ठीक ऐसा ही है। न कोई तुम्हें शिक्षा दे सकता है और न कोई तुम्हारी आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है। तुमको स्वयं ही शिक्षा लेनी होगी, तुम्हारी उन्नति तुम्हारे ही भीतर से होगी। बाह्य शिक्षा देने वाले क्या कर सकते हैं? वे ज्ञान

शूर्पणखा के बारे में हमारा ज्ञान अत्यंत सीमित है। हमें सिर्फ यही मालूम है कि शूर्पणखा पहले श्रीराम पर और फिर लक्ष्मण पर आसक्त हो गई और जब सीता को परेशान करने से नहीं हटी, तो श्रीराम ने क्रोधित हो कर लक्ष्मण को कहा कि उसे सबक सिखाया जाए। जब लक्ष्मण ने शूर्पणखा के नाक