आस्था

ओशो भगवान शिव कहते हैं, आत्मा चित्तम अर्थात आत्मा ही चित्त है। फिर यह अहंकार कहां से और कब जन्म लेता है। वास्तव में, अहंकार का जन्म नहीं होता। यह केवल छलावा है। एक मायावी आभास है। लगता है कि है, लेकिन वस्तुतः होता नहीं। ठीक क्षितिज जैसा जिसके धरती से मिलने का भ्रम होता

हे ऋषियो! वास्तु पुरुष की उत्पत्ति की एक पूरी कथा है और वह कथा भी ज्ञानी पुरुषों की आत्मा को आनंद उपजाने वाली है और वास्तु पुरुष की यह उत्पत्ति की कथा सुनने वाले मनुष्य को कभी भी दैवी तथा आसुरी पीड़ा नहीं होती तथा यह वास्तु पुरुष की कथा प्राणी के सारे परितापों को

अवधेशानंद गिरि मन, प्राण, बुद्धि और इंद्रियों का एकाकार ही मानव शरीर की भौतिकवादी संरचना है। इसमें दुःख और सुख समाहित है। प्रतिकूल परिस्थितियां दुःख का आभास देती हैं और अनुकूल परिस्थितियां सुख का बोध कराती हैं। यह दोनों हमें प्रभु की कृपा से ही प्राप्त होता है। जो प्रत्येक मनुष्य के अपने-अपने अकर्मों-विकर्मों और

मौन रहें और भोजन को अच्छे से चबा-चबाकर खाएं। अगर आपका बोलना वाकई बहुत जरूरी हो, तो खाते वक्त सिर्फ  सकारात्मक बातें ही करें। प्रसन्न मन से किया गया भोजन शरीर को जल्दी लगता है। किसी भी प्रकार की समस्या पर चर्चा, खाना खाने वक्त नहीं करनी चाहिए… इतने सालों तक आपने विभिन्न आहार नियम

‘आत्म दर्शन’ भारतीय संस्कृति का प्राण है। यहां समय-समय पर जो भी महापुरुष हुए हैं, उन्होंने आत्मज्ञान पर ही अधिक जोर दिया है। संपूर्ण वैदिक वांगमय इसी से ओत-प्रोत है। जीवन की प्रत्येक व्यवस्था में अंतःदर्शन की बात अवश्य जोड़ दी गई है,  ताकि मनुष्य भौतिक जीवन जीते हुए भी आत्मतत्त्व से विस्मृत न रहे।

ज्ञानीजन इन चारों में जो शुद्ध और परम सार वस्तु है, उसी का अनुभव करते हैं और वही विष्णु का परम पद अथवा परम रूप है। पूर्वोक्त प्रधान आदि रूप ही विभागानुसार समस्त सृष्टि प्रलय के उद्भव और प्रकट होने के कारण। विष्णु भगवान जो पुरुष आदि रूप में प्रकट होते हैं, उनकी लालका के

चाउमीन को हरा-भरा बनाने के लिए पत्तागोभी डाली जाती है, तो कभी टेस्ट के लिए पत्तागोभी का सूप बना कर पिया जाता है।  यह स्वाद में जितनी स्वादिष्ट है, गुणों में भी यह उतनी ही कारगर है। अगर आप स्वस्थ और चुस्त-दुरुस्त रहना चाहते हैं, तो भरपूर मात्रा में पत्तागोभी खाएं। आइए जानते हैं पत्तागोभी

 समानता का अर्थ बालक और वृद्ध को समान मात्रा में भोजन देना या लड़की और नव वधू को बराबर कपड़े-जेवर बनवाना नहीं है। अपनी-अपनी स्थिति और आवश्यकता के अनुरूप सबको चीजें प्रदान करना ही समानता है।  यदि रोगी को फल मिलते हैं तो निरोगी का भी वही मांगना-यह समानता नहीं है… फूट और लड़ाई का

हम सभी मानवों को देवी-देवताओं की आराधना करने, उन्हें भेंट स्वरूप उपहार प्रस्तुत करने, रीति-रिवाजों व परंपरा अनुसार सभी प्रकार के अनुष्ठान करने तथा अपने शरीर के साथ-साथ अपने घर-परिवार को त्याग कर देने हेतु निर्देश पवित्र पुस्तकों में बताए गए हैं। जो कि अत्यंत प्रतिभाशाली लोगों द्वारा रची गई है। आपके समक्ष यह सच्चाई