आस्था

हमेशा किसी मनोविकार के वशीभूत रहने से व्यक्ति में अनावश्यक संघर्ष चलता रहता है। भय, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, प्रतिहिंसा, लोभ, वासना इन पर नियंत्रण न होने से मनुष्य उत्तेजित बना रहता है। इच्छाओं की विभिन्नताओं के अनुसार मनोविकारों की अनेक रूपता का विकास होता है। प्रत्येक मनोविकार जटिलता उत्पन्न कर शारीरिक विकार का कारण बनता

व्यवहार संबंधी आवश्यक बातों की शिक्षा देते हुए यदि बालकों का पालन किया जाए, तो कोई कारण नहीं कि वह व्यवहार-कुशल न बन जाएं। प्रारंभ से ही बालकों में इसकी चेतना का विकास किया जाना चाहिए, जिससे वे स्वतंत्र व्यवहार करने की आयु तक पहुंचते-पहुंचते दक्षता प्राप्त कर लें। जिन बालकों में इन बातों का

तरङ्गयिता अपीमे सङ् गात्समुद्रायन्ति।। इन काम क्रोधादि दोषों का आकार पहले बहुत छोटा होता है। यह क्षुद्र रूप में हमारे मन में प्रवेश करते  हैं और जल्द ही  समुद्र की तरह विशाल आकार ग्रहण कर लेते हैं। कस्तरति कस्तरति मायाम् यः सङ्गांस्त्यजति, यो महानुभावं सेवते, निर्ममो भवति।। कौन तरता है? माया से कौन तरता है?

इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव ने आनंद नृत्य की प्रस्तुति यहीं की थी, इसलिए इस जगह को आनंद तांडव के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के महत्त्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह भारत के

श्री टौणा देव का ऐतिहासिक भव्य मंदिर अष्टभुजाकार 55 फुट ऊंचा, 18 बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है। यह मंदिर सरकाघाट मुख्यालय से 7 किमी. की दूरी पर रमणीक एवं देव घाटियों के मध्य स्थित है… विश्व में देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल प्रदेश में वर्ष भर मेलों का आयोजन होता रहता है। यहां

इंदौर शहर में  पुलिस थाने के सामने पंढरीनाथ मंदिर है। यह मंदिर विट्ठल (विष्णु) भगवान का मंदिर है। बहुत कम लोगों को पता होगा कि यह नाम  कैसे पड़ा और कौन हैं यह पंढरीनाथ। भगवान विष्णु, जिन्हें भक्त पंढरीनाथ, पांडुरंग, विट्ठल, विठोबा, विठू और न जाने कितने नामों से पुकारते हैं। मंदिर में विराजित भगवान

माघ मास को महात्मा मास भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण है। इस मास में स्नान-दान की विशेष महिमा बताई गई है। भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चंद्रमास और दसवां सौरमास माघ कहलाता है। मघा नक्षत्र से युक्त होने के कारण इस महीने का नाम 

शनि देव नाम सुनते ही लोगों के मन में एक अजीब सा भय व्याप्त हो जाता है। प्राचीन काल से ही शनि देव से अन्य देवता भयभीत ही रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि राम भक्त हुनमान की भक्ति करने वालों का शनि देव कोई नुकसान नहीं कर सकते हैं। इस बात का

संत रविदास ने वाह्य आडंबरों के बजाय अंतस की श्रेष्ठता पर बल दिया। सदाचार और संयम को श्रेष्ठता का पैमाना बनाया, उसी के आधार पर जीवन जिया और लोगों को भी यही रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित किया। जन्मजात श्रेष्ठता का उन्होंने आध्यात्मिक धरातल पर विरोध किया… अपनी उच्च आध्यात्मिक अनुभूति और श्रेष्ठ सामाजिक दर्शन