आस्था

पिता परिवार का मुखिया होता है। उसके चरित्र और चिंतन से पूरे परिवार का परिवेश निर्धारित होता है। यहां पर यह ध्यान देने योग्य बात है कि परिवार के संस्कार मात्र उपदेशों से नहीं बनते। ये वरिष्ठजनों के चरित्र से बनते हैं। यह अपेक्षाकृत कठिन और दीर्घ प्रक्रिया है। वरिष्ठजन भी अच्छाई का आचरण लंबे

22 जनवरी रविवार, माघ, कृष्णपक्ष,  दशमी 23 जनवरी सोमवार, माघ, कृष्णपक्ष, एकादशी, षट्तिला एकादशी व्रत 24 जनवरी मंगलवार, माघ, कृष्णपक्ष, द्वादशी, तिल द्वादशी 25 जनवरी बुधवार,  माघ, कृष्णपक्ष त्रयोदशी, प्रदोष व्रत 26 जनवरी बृहस्पतिवार, माघ, कृष्णपक्ष चतुर्दशी २7 जनवरी शुक्रवार, माघ, कृष्णपक्ष अमावस्या, मौनी अमावस्या २8 जनवरी शनिवार, माघ, शुक्लपक्ष प्रथमा

प्रकृति के नियम पालन करने से रोगी से रोगी व्यक्ति पुनः स्वास्थ्य और आरोग्य प्राप्त कर सकता है, दुबले-पतले जर्जरित शरीर पुनः हृष्ट-पुष्ट और सशक्त बन सकते हैं। जो कार्य पौष्टिक दवाइयां भी नहीं कर सकतीं, वह प्रकृति के नियमानुसार रहने से अनायास ही प्राप्त हो सकता है… आज दवाई का इतना उपयोग हमारे अप्राकृतिक

बालकों के उचित-अनुचित निर्माण में माता-पिता के उत्तरदायित्व का बहुत महत्त्व है, वे चाहें तो अपनी सावधानी से उन्हें शिखरस्थ कर सकते हैं और चाहें तो उपेक्षा तथा अनुत्तरदायित्व से उन्हें पाताल में गिरा सकते हैं। माता-पिता अपने बच्चे के विधाता माने गए हैं, उन्हें अपना यह उत्तरदायित्व कदापि विस्मरण नहीं करना चाहिए… महात्मा गांधी

बाबा हरदेव इनसानों ने सोच लिया है कि किसी खास प्रकार के कपड़े पहनना ही धर्म है और किसी विशेष प्रकार की क्रिया करने के साथ ही धर्म की पहचान बनती है, लेकिन महापुरुषों का सीधा ही फैसला है कि अगर इनसानियत है तो फिर धर्म भी है। एक मानव है तो मानवता का होना

जीवनयापन और जीवन लक्ष्य दो भिन्न बातें हैं। प्रायः सामान्य लोगों का लक्ष्य जीवनयापन ही रहता है। खाना-कमाना, ब्याह-शादी, लेन-देन, व्यवहार-व्यापार आदि साधना जीवन क्रम को पूरा करते हुए मृत्यु तक पहुंच जाना, बस इसके अतिरिक्त उनका अन्य कोई लक्ष्य नहीं होता। एक जीविका का साधन जुटा लेना, एक परिवार बसा लेना और बच्चों का

यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा पंचगव्य, पंचामृत एवं गंगाजल से पवित्र करके संबंधित मंत्र से की जाती हैं। बिना प्राण-प्रतिष्ठा के यंत्र को पूजा स्थल पर नहीं रखा जाता… यंत्र देवी-देवताओं का साक्षात स्वरूप माने जाते हैं। किसी लक्ष्य को शीघ्र प्राप्त करने के लिए यंत्र-साधना को सबसे सरल विधि माना जाता है। तंत्र के अनुसार यंत्र

ओशो गुरु का एक ही अर्थ हैः तुम्हारी नींद को तोड़ देना। तुम्हें जगा देना, तुम्हारे सपने बिखर जाएं, तुम होश से भर जाओ। नींद बहुत गहरी है। शायद नींद कहना भी ठीक नहीं, बेहोशी है। कितना ही पुकारो नींद के पर्दे के पार आवाज नहीं पहुंचती। चीखो और चिल्लाओ भी, द्वार खटखटाओ सपने काफी

जरा जीवन पर विचार करके देखो पता चलेगा कि उसमें न जाने कितने चढ़ाव-उतार हुए हैं, कितनी बार प्राणी हंसा है, कितनी बार रोया है। संसार के प्रवाह में बहते हुए प्राणी अकसर चंचल बना रहता है। अब तक कोई ऐसा विश्रामस्थल नहीं मिला जहां थोड़े समय के लिए शांति में स्थिर होकर थकान मिटा