पाठकों के पत्र

(किशोरी लाल कौंडल, कलीन, सोलन ) जल, जंगल और जमीन के अस्तित्व के आधार पर ही सारा ब्रह्मांड स्थिर है। ये तीनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि जल, जंगल और जमीन में से किसी एक में भी अस्थिरता आ जाती है, तो भू-मंडल पर असामान्य घटनाएं घटनी शुरू हो जाती हैं और ये मानव

(मनीषा चंदराणा (ई-मेल के मार्फत) ) सरकार ने कर्मचारियों का महंगाई भत्ता चार से बढ़ाकर पांच फीसद कर दिया है। दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश होगा, जहां सरकार कर्मचारियों पर उनके काम का परीक्षण किए बिना बड़ी मात्रा में खर्च करती है। आखिर अच्छे दिन हमेशा सरकारी कर्मचारियों के ही क्यों आते हैं? 

(डा. शिल्पा जैन सुराणा, वारंगल, तेलंगाना ) देश में पेट्रोल की कीमतें चरम पर पहुंच गई हैं और समय आ गया है कि सरकार इस स्थिति के लिए जिम्मेदारी ले। आज के समय में औसत व्यक्ति के लिए पेट्रोल विलासिता नहीं, बल्कि जरूरत है। महंगाई की दरों पर लगाम तो दूर की बात है, इस

(किशन सिंह गतवाल, सतौन, सिरमौर ) पिछले पचास वर्षों से भारत तिब्बती शरणार्थियों को पनाह दिए हुए है। अब अवैध रूप से भारत में घुसने वाले रोहिंग्या का भार भी संयुक्त राष्ट्र संघ भारत पर लादने की फिराक में है। भारत भूमि शुरू से ही विपदा में फंसे लोगों के लिए पनाहगाह रही है। किसी

(प्रियंका शर्मा, बागबानी एवं वानिकी कालेज, हमीरपुर ) माना दूर है मंजिल, अभी रास्ते धूमिल हैं, खुद पर विश्वास तो रख, चल उठ, एक बार कोशिश तो कर। कदम बढ़ाता मकसद की ओर बढ़, गिर भी गया तो क्या हुआ? हिम्मत रखकर फिर से चल। इरादे हैं अगर तेरे पक्के, रास्ते के पत्थर भी लगेंगे

(स्वास्तिक ठाकुर, पांगी, चंबा ) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोटोकॉल तोड़ते हुए बुधवार को जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ अहमदाबाद में रोड शो किया। इस रोड शो से भारत और जापान के बीच मजबूत संबंधों की स्पष्ट झलक मिली। दोनों देशों के मध्य इस तरह का संवाद बेहद जरूरी था। पिछले कुछ समय से

(सुरेश कुमार, योल, कांगड़ा ) जब प्रशासन सोता है, तब ऐसा ही होता है। जब जनता गूंगी हो, तभी प्रशासन सोता है। इन दोनों कारणों ने एक साफ-सुथरे स्थान को कूड़ाघर बना रखा है। वैसे कहने को तो योल छावनी है, पर शायद नाम की ही। जरा योल की सड़कों पर निकलो तो रात को

( पूजा, मटौर, कांगड़ा ) जिस देश को अपनी मातृभाषा और साहित्य का गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। इस एक वाक्य से मातृभाषा के महत्त्व को सहज ही समझा जा सकता है। मातृभाषा किसी भी इनसान की अभिव्यक्ति की पहली और सहज भाषा मानी जाती है। जब बच्चा इस दुनिया

( स्वास्तिक ठाकुर, पांगी, चंबा ) एक सोची-समझी साजिश कहें या हमारी मानसिक कंगाली कि हम खुद को अंग्रेजी का विद्वान साबित करने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं। इससे बड़ी और क्या त्रासदी हो सकती है कि विद्यार्थी जीवन का जो महत्त्वपूर्ण समय जीवन व उससे जुड़े अन्य पहलुओं को समझने के लिए उपयोग