पाठकों के पत्र

(रूप सिंह नेगी, सोलन) आजकल प्रदेश में  सरकार  द्वारा ताजा कर्ज लेने और प्रदेश पर 50000 करोड़ के करीब की रकम कर्ज होने पर चर्चाओं का बाजार गर्म होना स्वाभाविक है, लेकिन कर्ज लेने के बिना विकास कर पाना भी तो मुमकिन नहीं होता है। गौरतलब  है कि समस्त भारत में शायद ही कोई राज्य

चारा बाबू कसकर चूसा प्रांत को, जैसे लैमन जूस, केवल चारा ही चरा, कभी न खाई घूस। अति दरिद्र अति दीन हैं, फिरते खाली पेट, तन पर बस बनियान है, कहते हो क्यों सेठ। आधी दिल्ली आपकी, फिर भी हैं लाचार, अब तो अपना  बंद है चारे का व्यापार। पशु की पसली चमकती, फूल रही

(अक्षित आदित्य तिलक राज गुप्ता, रादौर) अंबाला से चंडीगढ़ जाते हुए या आते हुए जब आप लालड़ू के फ्लाईओवर पर पहुंचते हैं तो देखेंगे कि दाएं और बाएं, दोनों तरफ सवारियों का जमघट लगा रहता है, जो कि फ्लाईओवर पर ही रुकने वाली परिवहन की सरकारी और निजी बसों में सवार होती हैं। यही सवारियां

( करण सिंह, चंबा  ) यह कैसी शिक्षा जो जीना नहीं मरना-मारना सिखाती हो। हाल ही में छात्र गुटों के बीच हो रहे खूनी संघर्ष खूब सुर्खियां बन रहे हैं। आखिर इन सब का जिम्मेदार कौन है? जहां पढ़ाई का माहौल होना चाहिए वहां खूनी खेल हो रहा है। छात्र संघ चुनावों को इसलिए नही

( केसी शर्मा, सूबेदार मेजर(रि), गगल ) शराब पर मुकम्मल पाबंदी के पक्ष में शायद न केंद्र है न राज्य सरकारें, लेकिन देश का महिला वर्ग शराब की बिक्री पर मुकम्मल पाबंदी चाहता है। शराब की दुकानों की संख्या निरंतर बढ़ना एक चिंता का विषय है। सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला सराहनीय है कि राष्ट्रीय

( राखी वर्मा, नाहन ) रोज ही अखबार में आ जाता है कि सीमा पर दो आतंकी ढेर और सेना का एक जवान शहीद हो गया। आतंकी को मार गिराने में हम अपनी जीत समझें या अपने जवान को शहीद कर के हम हार गए। शहादतों का यह सिलसिला कब से चल रहा है और

पुनर्विचार याचिका ( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर ) आईसीजे, का फैसला, उन्हें नहीं मंजूर, क्या शरीफ क्या कुरैशी, सदमे में हैं चूर। चार सौ चालीस वोल्ट की, मिली करारी हार, आज पराजय चाट ली, मुंह की खाई मार। चांटा ऐसा जड़ दिया, सूज गए सब गाल, भौं-भौं करता फिर रहा, हाल बड़ा बेहाल। सबसे

(कंचन शर्मा, नालागढ़) अभी कुछ दिन पहले ही हिमाचल सरकार ने 700 करोड़ का ऋण उठाया था और अब सरकार फिर 500 करोड़ का कर्ज 10 साल की अवधी के लिए लेगी। यानी कि दूसरे-तीसरे महीने के बाद ऋण लेना ही पड़ रहा है। बिना ऋण लिए सरकार का काम चलने वाला भी नही। वैसे

(मयंक शर्मा, डलहौजी) पहले बिना कम्प्यूटर के ही हमारे बुजुर्ग मौसम की भविष्यवाणी कर देते थे कि अब गर्मियां शुरू हो रही हैं या अगले महीने से बरसात का मौसम आ रहा है। यानी पहले मौसम चक्र अपने नियमानुसार चलता था। हर मौसम प्रकृति ने एक चक्कर मे बांध रखा था। पर आज देख लो