संपादकीय

अयोध्या विवाद पर सौहार्द और सद्भाव के दावे करने और सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी फैसले को कबूल करने वाले अब शरियत की दुहाई दे रहे हैं। वे अयोध्या का मसला शरियत का ही मान रहे हैं। उन्हें पांच एकड़ जमीन की पेशकश कबूल नहीं है। उन्हें तो मस्जिद वाली जगह ही चाहिए। शरियत के

मौसम से जूझने की एक और पारी में हिमाचल पुनः अपनी पर्वतीय शृंखलाओं को बर्फ होते देख रहा है। मौसम की अनेक परीक्षाओं के बीच प्रदेश की मिलकीयत में हर अंदाज का अपना रुआब और रोना है। बर्फ से टकराती जिंदगी का हर बार नया आगाज और इस लिहाज से पर्वत को समझने की एक

बेशक जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) एक प्रख्यात विश्वविद्यालय है। इसने शिक्षा के क्षेत्र में असंख्य होनहार विद्वान दिए हैं। शोधार्थियों की एक भरी-पूरी जमात है, जो विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे हैं, अन्य सम्मानित पदों पर हैं, पत्रकार हैं और विदेशों में सक्रिय हैं। इस साल अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो.अभिजीत बनर्जी भी

राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर सर्वोच्च न्यायालय के दो महत्त्वपूर्ण फैसले आए हैं। न्यायिक पीठ ने सभी पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दी हैं और फैसला सुनाया है कि राफेल पर जांच और एफआईआर की जरूरत नहीं है। हालांकि भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 17ए के तहत सीबीआई चाहे, तो प्राथमिकी दर्ज कर सकती है, लेकिन

कुछ तो तड़प रही होगी जो राजनीति अपने इशारों में बात करती है। हालिया घटनाओं के आवरण में छुपी बयानबाजी को ही लें, तो मसला पक्ष और विपक्ष का नहीं, बल्कि अपने भीतर की खुरचनों में हर पार्टी को मलाल है। मलाल के इन्हीं संदर्भों में केंद्रीय वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर के वक्तव्यों की झाड़

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत एके एंटनी, वेणुगोपाल, मल्लिकार्जुन खड़गे और मुख्यमंत्रियों में कमलनाथ, अशोक गहलोत आदि नहीं चाहते कि महाराष्ट्र में शिवसेना नेतृत्व की सरकार में शामिल हों अथवा किसी भी तरह का गठबंधन करें। सीधी दलील है कि ऐसा करने से अल्पसंख्यक वोट बैंक नाराज होकर खिसक सकता है। ये सभी नेता

जरूरत जिंदगी है या जिंदगी ही जरूरत है-यह खींचतान हिमाचल की तरक्की में इनसानी फितरत को बरगला रही है। लोग तरक्की पसंद हैं, लेकिन नई चुनौतियों के बावजूद परिवर्तनशील नहीं होना चाहते और इसके अनेकों उदाहरण प्रदेश की यातायात व्यवस्था में देखे जा सकते हैं। विकास की धूप छांव में राजनीतिक प्राथमिकताएं अपना गठजोड़ देखते-देखते

एनसीपी के एक बड़े नेता का कहना था कि चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस डींगें हांकते थे कि भाजपा ने पवार साहब पर रहम किया कि उनकी पार्टी के कुछ ही नेताओं को पार्टी में शामिल किया। नहीं तो ज्यादातर एमएलए और एमपी भाजपा में आने को आतुर थे। एनसीपी के उस नेता का

शिक्षा में एकलव्य की खोज करती केंद्र सरकार की पद्धति हिमाचल के कबायली इलाकों के लिए वरदान साबित होने की दहलीज पर खड़ी है। किन्नौर के निचार में सफलतापूर्वक चल रहे एकलव्य स्कूल के बाद पांगी, भरमौर और लाहुल-स्पीति में खाका तैयार है और इसके लिए करीब चार सौ करोड़ धनराशि से सुसज्जित शिक्षण संस्थान