संपादकीय

क्या जटिल प्रश्नों का उत्तर हमेशा सरल हो सकता है, कम से कम हिमाचल में तो ऐसा ही प्रतीत होता है। इसलिए कमोबेश हर सरकार और सरकारी महकमों के कर्त्तव्यों की पड़ताल में नियमों में फेरबदल आसानी से हो जाता है और इसी तरह कर्मचारी कॉडर की विसंगतियां सदा नाक-मुंह चिढ़ाती हैं। हर बार की

जम्मू में पहली बार कुछ लोगों को तिरंगे के साथ झूमते-नाचते देखा है। वे सभी मुसलमान लग रहे थे। अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद जम्मू में तो हालात बेहतर हो गए हैं। बाजार खुल रहे हैं। दूध-दवाई की दुकानें खुली हैं। बच्चे बसों में बैठकर स्कूल जाने लगे हैं। कालेज में सहेलियां मुद्दत के

कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने पर पाकिस्तान की कुंठाओं, पाबंदियों और बौखलाहटों के साथ जंग की भभकियों का विश्लेषण करना फिजूल है। यह उसकी पुरानी फितरत है। उसने द्विपक्षीय कारोबार और बालीवुड की फिल्मों पर पाबंदी चस्पां कर दी है। पाकिस्तान ने ‘समझौता एक्सप्रेस’ को बंद करने का भी ऐलान किया है। एयरस्पेस फिर

मंत्रिमंडलीय फैसलों के लड्डू यूं तो खूब बांटे जाते हैं, लेकिन तथ्य की तारीख में प्रश्नों को छूने की हिम्मत भी देखी जाती है। हमें हिमाचल सरकार के फैसलों में लड्डू ढूंढने हैं, तो करीब बारह सौ पटवारियों के पद भरने की सूचना सराही जाएगी। दूसरी ओर मसलों और मंसूबों का हाल भी बयां है

प्रो. एनके सिंह अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार अगर कोई इतिहास में देखता है तो आश्चर्य होता है कि शाहबानो के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द करने के लिए राजीव द्वारा कानून क्यों लाया गया। एक बहादुर कांग्रेस मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने जब विरोध में इस्तीफा दे दिया, फिर भी राजीव गांधी ने

अशोक चक्र विजेता के परिवार को अगर अपने सम्मान की चिंता करनी पड़ रही है, तो शहीदों के प्रति हमारे ढकोसले कब जक सफेदपोश बने रहेंगे। शांतिकाल के सर्वोच्च सम्मान में लिपटा शहीद मेजर सुधीर वालिया का शौर्य, आज अगर एक दरख्वास्त के मानिंद प्रशासन और सरकार से विनती कर रहा है, तो इसे क्या

1988 की एक दोपहर याद आ रही है। चंडीगढ़ में हरियाणा सचिवालय की चौथी मंजिल के एक कक्ष में प्रवेश किया, तो सामने बड़ी ऊंची कुर्सी पर छोटी-सी मंत्री महोदया विराजमान थीं। परिचय के बाद हमने अपनी जिज्ञासा साझा की कि उन्हें मंत्री के रूप में देखना चाहता था। तपाक से बोलीं-‘लो, आपके सामने बैठी

कश्मीर घटनाक्रम के बगल में बैठे हिमाचल प्रदेश के लिए अपने साझे पहाड़ पर अमन की रोशनी का इंतजार, देश की बदलती परिस्थिति और पड़ोसी राज्य के नए दीदार में समाहित है। लद्दाख के आंगन में आई नई बहार हो या जम्मू-कश्मीर के नए अवतरण में राष्ट्रीय संसाधनों का पैगाम, अब हिमाचल उस बराबरी का

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल ने संसद का रास्ता पार कर लिया है। लोकसभा में इसके समर्थन में 370 और विरोध में 70 वोट पड़े। पहली बार मोदी सरकार को किसी बिल पर सबसे ज्यादा 20 दलों का समर्थन हासिल हुआ। यह स्वाभाविक समीकरण था। अब राष्ट्रपति की मुहर के बाद इसका कानूनन लागू होना तय है।