संपादकीय

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्रिका ‘टाइम’ ने अपने ताजा अंक की आवरण कथा में प्रधानमंत्री मोदी को ‘प्रधान विभाजनकारी’ करार दिया है, तो ‘आर्थिक सुधारक’ भी माना है। दोनों आलेख अलग-अलग लिखे गए हैं। मौजूदा चुनाव के छठे चरण के मतदान से ऐन पहले यह पत्रिका भारत में वितरित कराई गई है। हम ऐसे आरोप के

चुनाव के अंतिम चरण में अचानक हिमाचल का कद ऊंचा हो गया या देश की सियासत ने भी पर्वत की चांदनी देख ली। मंडी और ऊना में राष्ट्रीय राजनीति के दीदार कुछ इस तरह हुए कि भाजपा और कांग्रेस फिर आकाश में खड़ी दिखाई दीं। यहां कौन किसके मुकाबले क्या अर्जित कर पाया मापना कठिन

चुनाव के बीचोंबीच हिमाचल की इन्वेस्टर मीट की तारीख जाग जाती है और प्रक्रिया के प्रारूप में देशी-विदेशी निवेश की घंटियां बज उठती हैं। हालांकि चुनाव के दौर में हिमाचल की विकास गाथा कहीं गूंज नहीं रही, लेकिन निवेश की महत्त्वाकांक्षा सिर उठाकर कुछ कह देती है। निवेश की राहों को केवल चुनाव हो जाने

जिस देश की महान सभ्यता और संस्कृति पर गर्व करते हम नहीं थकते, आज उसी का निकृष्ट, असंसदीय और अश्लील रूप सामने है। यह अभूतपूर्व व्यवहार नहीं है, लेकिन देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री ने पहली बार जनता के सामने अपने दर्द और जुल्मों की दास्तां पेश की है। उसमें पीडि़त होने का भाव भी निहित

प्रधानमंत्री मोदी ने दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का मुद्दा अचानक ही नहीं उठाया। राजीव गांधी की हत्या को 28 लंबे साल बीत चुके हैं। राजनीति ने कई करवटें बदली हैं और प्रसंग भी बदल चुके हैं। इस दौर में बोफोर्स तोप सौदे का घोटाला भी प्रासंगिक नहीं है। आरोपित पक्ष या तो दिवंगत हो

रैलियों की ओर सरकता हिमाचल का चुनावी प्रचार जो बड़ी बातें कहने लगा है, उसमें राष्ट्रीय उद्घोष स्पष्ट हैं। यानी जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं, उसी के अनुरूप भाजपा की अपनी बयार है, तो कांगे्रस का जिक्र प्रदेश से देश तक उलझा है। हालांकि मसले राज्य से राष्ट्र तक के हैं, लेकिन प्रचार

सुरक्षा और समय से पहले किए गए राहत के पर्याप्त बंदोबस्तों के कारण ‘फेनी’ चक्रवाती तूफान ओडि़शा में उतनी बर्बादी और तबाही नहीं मचा सका, जितनी अपेक्षित थी। प्रधानमंत्री मोदी ने उसके लिए मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और सरकारी अधिकारियों के प्रयासों की सराहना की है, लेकिन आपदा में लोगों की मौत भी हुई है और

करियर की सूत्रधार बनतीं राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षाएं अंततः हिमाचली समाज की महत्त्वाकांक्षा का ऐसा द्वार भी हैं, जहां छात्र और अभिभावक केवल संघर्ष का सफर तय करते हैं। जेईई मेन्स के बाद नीट परीक्षाओं में हिमाचली तनाव की एक झलक और भविष्य के फलक पर रेखांकित होते सपनों का यथार्थ। इस तरह की प्रवेश परीक्षाओं

हिमाचल में लोकसभा चुनाव की करवटों में प्रशासनिक सरोकार का सफर मापा जाएगा और बहस के मुहावरे अपनी-अपनी प्रस्तुति देंगे। शिकायतें उभर रही हैं, कुछ साहसिक और कुछ विशुद्ध रूप से राजनीति से ओतप्रोत। जो शासन में थे, वे अधिकारी बदले गए, लेकिन जो प्रशासन में हैं, उनके सरोकारों की समीक्षा में यह चुनाव अपनी