संपादकीय

सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण कानून में कुछ बदलाव करने का फैसला सुनाया था, नतीजतन देश का दलित-आदिवासी वर्ग गुस्से में था। फैसले के खिलाफ ‘भारत बंद’ का आह्वान किया गया था। दरअसल न तो भारत बंद संभव है और न ही संपूर्ण भारत एक मुद्दे पर सहमत हो सकता है। फिर भी

सियासत के दांत हमेशा मंजन की तलाश में रहते हैं, ताकि जनता के सामने चेहरा आए तो चमक के साथ मुस्कराने का अंदाज बयां हो। जाहिर है इसके लिए बाकायदा राजनीतिक निवेश होता है और इसीलिए हिमाचल में जिसे हम मुस्कराहट मानते हैं, दरअसल दांत चमकाने व दिखाने का द्वंद्व है। जो रास आई, उसे

2010 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है। उस साल 270 आतंकी ढेर किए गए थे, जो अभी तक सर्वाधिक है। एक अप्रैल, 2018 सेना और सुरक्षा बलों, कश्मीर के आम अवाम के हौसलों का दिन रहा। यह हमारे जांबाज लड़ाकों की रणनीति का दिन भी रहा। एक ही दिन में, कश्मीर में, 12 आतंकियों

मसला पानी के सही इस्तेमाल का है, तो समाज के हर तबके के दायित्व से भी यह प्रश्न जुड़ता है। पहाड़ से प्रार्थना करती मानवता के सामने जलवायु परिवर्तन की जटिलताएं रू-ब-रू हैं, इसलिए शिमला में चिंतन का दौर चला तो भविष्य का मंतव्य सामने आया। जल पुरुष राजेंद्र सिंह के सुझावों पर भला किसे

मुझे 5 अप्रैल, 2011 का दिन आज भी याद है, जब अन्ना हजारे ने प्रेस क्लब ऑफ  इंडिया के आंगन में पहली बार मीडिया को संबोधित किया था। क्लब के भीतर और बाहर कार्यकर्ताओं का हुजूम उमड़ा था। अन्ना के साथ अरविंद केजरीवाल और योगेंद्र यादव भी मौजूद थे। वह दौर भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय

हिमाचल में महामहिम दलाईलामा का घर केवल पत्थरों के बीच कोई छत नहीं, बल्कि आधुनिक संसार बसाने के अनेक मूलमंत्रों का एक वांछित स्रोत है। साठ साल के रिश्तों का गवाह और इसीलिए लिटल ल्हासा के नाम से विख्यात मकलोडगंज अपनी रूह में तिब्बती या बौद्ध आत्मा के साथ रू-ब-रू होता है। थैंक यू इंडिया

बाबा साहब का असली नाम ‘भीमराव रामजी अंबेडकर’ है। इसके कई साक्ष्य हैं। संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के तौर पर संविधान की प्रति पर इसी नाम के हिंदी में हस्ताक्षर किए गए हैं। इस प्रति को संसद की लाइब्रेरी में देखा जा सकता है। संविधान की 8वीं अनुसूची में जो नाम दर्ज है,

बोली से हिमाचली भाषा बनने की कवायद में कहीं तो हम पिछड़ते रहे। हम बोलियों के बिछौने पर सांस्कृतिक अस्मिता के हिमाचल को पूर्ण होता  तभी देख पाएंगे, अगर प्रदेश की गूंज में एक भाषा का निरूपण हो। आश्चर्य यह कि हिमाचल को हिंदी राज्य बनाते हुए यह नहीं सोचा गया कि इसके कारण हमारी

भगवान श्रीराम के नाम पर और उनके ही देश के कुछ महत्त्वपूर्ण हिस्सों में सांप्रदायिक नफरत, तनाव और हिंसा फैलाई जाए, यह हैरान भी करता है और क्षुब्ध भी करता है। रामनवमी के मौके पर देश भर में शोभा-यात्राएं निकाली जाती रही हैं। बंगाल के कुछ हिस्सों में पलट-हिंसा देखने को मिली थी, लेकिन वह