संपादकीय

भारतीय राजनीति में एक दौर था, जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी। तब राजनीतिक संघर्ष ‘इंदिरा बनाम शेष दल’ होता था। आज युग-परिवर्तन के साथ-साथ राजनीति के समीकरण भी बदले हैं। आज भाजपा भारतीय राजनीति की केंद्रीय धुरी है और ‘प्रधानमंत्री मोदी बनाम शेष दल’ के समीकरण बन रहे हैं। यानी विपक्ष में जो

एक सीधा सा उपाय तो यही है कि हिमाचल सरकार अपनी राजनीतिक प्राथमिकता के आधार पर इलेक्ट्रिक वाहन चलाकर यह संकेत दे कि सत्ता में आने की रौनक होती क्या है और हो भी यही रहा है। दूसरा तर्क यह है कि जिन क्षेत्रों खासतौर पर पर्यटक स्थलों पर राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल की आपत्तियां या

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अपने वित्त मंत्री डा. हसीब द्राबू को कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया है। वह ऐसा कर सकती हैं, क्योंकि उन्हें संवैधानिक विशेषाधिकार हासिल हैं। लेकिन द्राबू को क्यों निकाला गया, यह बेहद नाजुक और राष्ट्रीय सवाल है। बीती 9 मार्च को दिल्ली में पीएचडी चैंबर आफ  कामर्स द्वारा आयोजित

फिर सिने पर्यटन की ओर मुड़ते हिमाचली सरोकार वन एवं परिवहन मंत्री की राय से प्रकट हुए और चर्चा की झलक सरकार की मंत्रिमंडलीय मंत्रणा तक पहुंची। पर्यटन के इस पहलू को तसदीक करते हिमाचल की बाहें हमेशा खुली रही हैं, लेकिन चंद फिल्म को-आर्डिनेटरों की वजह से ही अब तक का कारवां दिखाई दिया।

करीब 35,000 किसान देश की आर्थिक राजधानी मुंबई और उसके आसपास के क्षेत्र में पहुंच गए हैं। वे महाराष्ट्र विधानसभा का घेराव कर सकेंगे या नहीं, यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन बीती 6 मार्च से किसान आंदोलित और लामबंद हैं। एक अनुशासित ताकत के तौर पर वे पैदल चल रहे हैं। बीते 6 दिनों

विरोध के प्रश्नों में कांगे्रस का मंतव्य स्पष्ट है, लेकिन इस धार को एकदम नकारा नहीं जा सकता। भले ही विधानसभा से लगातार वाकआउट करने की वजह से सदन के अपने बिंदु अछूते रह गए हों, लेकिन कुछ तो है, जो बांध विस्थापितों के दर्द की आंच में तपना भी गुनाह नहीं। हिमाचल विधानसभा में

विरोध के प्रश्नों में कांगे्रस का मंतव्य स्पष्ट है, लेकिन इस धार को एकदम नकारा नहीं जा सकता। भले ही विधानसभा से लगातार वाकआउट करने की वजह से सदन के अपने बिंदु अछूते रह गए हों, लेकिन कुछ तो है, जो बांध विस्थापितों के दर्द की आंच में तपना भी गुनाह नहीं। हिमाचल विधानसभा में

यूपीए अध्यक्ष एवं पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का दावा है कि 2019 में कांग्रेस और यूपीए की सत्ता में वापसी होगी। जिस तरह अटल बिहारी वाजपेयी का ‘शाइनिंग इंडिया’ (भारत उदय) अभियान फेल हुआ था,उसी तरह प्रधानमंत्री मोदी के ‘अच्छे दिन’ भी समाप्त होंगे। सोनिया गांधी ने किस आधार पर यह विश्लेषण दिया है,

एक दौर में चंद्रबाबू नायडू संयुक्त मोर्चा के संयोजक होते थे। फिर पाला बदल कर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ जुड़ गए। बेशक समर्थन बाहरी था, लेकिन देश और वित्त मंत्रालय के रिकार्ड साक्ष्य हैं कि उस दौर में भी आंध्रप्रदेश को कितना माल मिला और कितनी योजनाएं उसके हिस्से आईं।