विचार

वीरेंद्र पैन्यूली लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं जिस दिन से देश आजाद हुआ, हर नेता तो यही कहता आता है कि अधिकारियों को फाइलों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि जमीनी हकीकत जानने के लिए जनता के बीच जाना चाहिए। किस जिला अधिकारी की यह जिम्मेदारी नहीं थी कि वह अपने जिला में स्वास्थ्य, शिक्षा

कुलभूषण उपमन्यु लेखक, हिमालय नीति अभियान के अध्यक्ष  हैं आबादी बढ़ने से संसाधनों की खपत बढ़ती है, पर प्राकृतिक संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। आबादी वृद्धि की कोई सीमा नहीं है। आबादी  वृद्धि से प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता घटते-घटते अन्न संकट खड़ा हो सकता है। साथ ही तमाम तरह के जीवनयापन के लिए

राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा जनवरी के आरंभ होते ही विद्यालयों, खास तौर पर निजी विद्यालयों में बच्चों के दाखिले को लेकर प्रचार जोर-शोर से शुरू हो जाता है। ये स्कूल पहले से इनमें पढ़ रहे विद्यार्थियों की भी री-एडमिशन करते हैं। देश-प्रदेश के सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा देखते हुए लोग अपने बच्चों की अच्छी

जोगिंद्र ठाकुर, भल्याणी, कुल्लू आवश्यकता से अधिक उदारता और राजनीतिक स्वार्थों के चलते भारत की सुरक्षा को खतरे में डाला जाता रहा है। देश के दलालों और भ्रष्ट व्यवस्था ने भारत को एक धर्मशाला बना दिया है, जहां कोई भी बेरोकटोक अवैध रूप से रह लेता है। रोहिंग्या मुस्लमानों के संबंध में देश की सर्वोच्च

डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर बहुत नाक में दम किया, बहुत किया अंधेर, अंगुली टेढ़ी कीजिए, मत करिए अब देर। फिर ओसामा की तरह, फैलाएं अब जाल, सबक मिले नापाक को, चलें ट्रंप की चाल। बहुत कर चुके सब्र, अब बहुत बख्श दी जान, दहशत को अब नरक में, दें पूरा सम्मान। उचित समय अब

पहाड़ फिर कराहने लगा और कहीं दरार अस्तित्व के प्रश्नों को लेकर गहरी हो गई। हिमाचल पुनः मौसम की अदालत में कसूरवार और कहीं किसान-बागबान की जड़ें भीतर तक हिलने लगीं। लगातार सूखा भी ऐसा कि लोहड़ी-मकर संक्रांति में भी त्योहार का सारा गुड़ गोबर हो गया। खिचड़ी के माध्यम से अर्जित परंपराओं की ऊर्जा

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं कौटिल्य ने कहा था कि सरकारी कर्मियों द्वारा राज्य के राजस्व की चोरी का पता लगाना उतना ही कठिन है, जितना इस बात का पता लगाना कि तालाब की मछली द्वारा कितना पानी पिया गया। उन्होंने कहा था कि सरकारी कर्मियों के भ्रष्टाचार पर नजर रखने

डा. राजन मल्होत्रा, पालमपुर पिछले दिनों लोकतंत्र के न्यायपालिका वाले खंड में जो भूचाल आया, उससे हर कोई स्तब्ध नजर आता है। कार्यपालिका और न्यायपालिका की कई विफलताओं और खामियों के बीच न्यायपालिका हमेशा लोकतंत्र की हिफाजत करती रही है। ऐसे में जब वह न्यायकर्ता खुद कठघरे में आ जाए, तो देश की जनता का

हिमाचली भूमिका के संदर्भों में अब तक की यात्रा पुनः मुख्यमंत्री के आंगन में पहुंचकर, नई मंजिलें चुन रही है। ऐसे में बतौर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का व्यक्तित्व एक आंचल की तरह जनसंवेदनाओं को समेटता है। उनके बयान, प्रतिक्रिया व कार्रवाई के बीच ही हिमाचल सरकार का मंतव्य, मतलब और मीमांसा का आधार विकसित हो