( डा. राजेंद्र प्रसाद शर्मा, जयपुर (ई-पेपर के मार्फत) ) पांच राज्यों में चुनावों के पहले चरण के नामांकनों के साथ ही करीब-करीब सभी प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने चुनाव घोषणा पत्र भी जारी कर दिए गए हैं। प्रश्न यह उठता है कि चुनाव घोषणा पत्र जारी करने के मायने
जाहिर तौर पर वित्त मंत्री अरुण जेटली के ऊपर नोटबंदी के बुरे प्रभाव को दरकिनार करने की चुनौती रही है और इसी के परिप्रेक्ष्य में बजट के सुर सुनाई देंगे, हालांकि खुशी और खुशफहमी की ओर सरकने की आशा और आशंका पूरी तरह निरस्त नहीं हो रही है। यह बजट पूरी तरह वित्त मंत्री का
मोदी सरकार का चौथा बजट लोकसभा में पेश किया जा चुका है। पहली बार आम बजट के साथ रेल बजट के प्रस्ताव भी रखे गए हैं। ऐसा 1924 के बाद हुआ है। अलबत्ता 1924 से 2016 तक रेल बजट अलग से ही पेश करने की परंपरा रही है। बहरहाल हम यह विमर्श नहीं करेंगे कि
( ललित गर्ग लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं ) हम अपनी स्वछंदता के लिए बच्चे को पैदा होते ही स्वतंत्र बना देना चाहते हैं। उसके अधिकारों और करियर की बात तो है, मगर उसकी भावनात्मक मजबूती की बात कहीं होती ही नहीं। हमारे यहां भी पश्चिमी देशों की भांति इस विचार को किसी आदर्श की तरह
( कुलदीप चंदेल लेखक, बिलासपुर से हैं ) यह समाज जितना मान-सम्मान डाक्टर का करता है, उतना तो डीसी, एसपी या किसी दूसरे बड़े अधिकारी व नेताओं का भी नहीं करता है। फिर उस डाक्टर से बदतमीजी क्यों हो? हां, उन डाक्टरों को भी अपना व्यवहार बदलने की जरूरत है, जो मरीजों के साथ टाल-मटोल
( डा. राजन मल्होत्रा, पालमपुर ) हमें प्रदेश की बेटियों पर नाज है। आज प्रदेश की होनहार बेटियां कई हैरतंगेज उपलब्धियां अपने नाम दर्ज कर रही हैं। अब से कुछ समय पहले तक इनकी महज कल्पना ही की जा सकती थी, लेकिन आज यह हकीकत है। अभी कुछ समय पहले प्रदेश की कुछ बेटियां आईटीबीपी
( प्रेमचंद माहिल, लरहाना, हमीरपुर ) लोकतांत्रिक राष्ट्र भारत निरंतर विकास की राह पर अग्रसर है। रक्षा, संचार, यातायात, विनिर्माण समेत हर क्षेत्र में पिछले कुछ समय में भारत ने उल्लेखनीय तरक्की की है। लेकिन उन्नति की इस राह में आज भी कई बाधाएं स्पष्ट देखी जा सकती हैं, जो शासन या प्रशासन के स्तर
चिकित्सा व शिक्षा को राजनीतिक तिजोरियों में भरने की हमेशा से हिमाचल में प्रतियोगिता रही है और इसी आधार पर विभिन्न सरकारों ने खुद को साबित किया। हम राजनीति के इस पहलू को नकार नहीं सकते, फिर भी जिस मुकाम पर घोषणाओं के रथ खड़े हैं, वहां कुछ फैसले शिक्षाविदों या विषय विशेषज्ञों के अनुभव
बंटा घर, बंटे रिश्ते, बंटी पार्टी और बंटे नेतृत्व के बावजूद कोई गठबंधन स्थिर और सार्थक हो सकता है? सपा-कांग्रेस के गठबंधन पर ‘नेताजी’ मुलायम सिंह यादव ने जिस तरह करवट बदली है, उसके मद्देनजर सवाल स्वाभाविक है कि क्या सपा के पुराने नेता, कार्यकर्ता कांग्रेस कोटे की 105 सीटों पर चुनाव में उतरेंगे? क्या