विचार

एक क्षेत्रीय या व्यक्तिवादी पार्टी में शीर्ष नेता की अचानक मौत के बाद ऐसा होना स्वाभाविक है। राजनीति और सत्ता षड्यंत्रों में तबदील हो जाती हैं। राष्ट्रीय दलों में नेतृत्व बहुमुखी किरदार का होता है। संसदीय बोर्ड या कार्यसमिति अथवा पोलित ब्यूरो सरीखे लोकतांत्रिक निकाय होते हैं। अन्नाद्रमुक में सब कुछ जयललिता ही थीं। सभी

भूपिंदर सिंह ( लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं ) जब हर स्कूल खंड स्तर की प्रतियोगिता में भाग नहीं लेगा, तो फिर जो प्रतिभा छूट जाएगी, उस तक तो पहुंचने के रास्ते बंद ही समझे जाएंगे। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि यह अनिवार्य रूप से सुनिश्चित किया जाए कि खंड का हर स्कूल

( विनोद शर्मा, शिमला ) आज निःसंदेह हम प्रगति के पथ पर अग्रसर नजर आए हैं, फिर भी कई सामाजिक कुरीतियों में फंसते हुए अपने आप पर ही नियंत्रण खोते नजर आ रहे हैं। यही स्थिति आज के समाज में चिंता का कारण बनती जा रही है। मेरा मानना यह है कि आदिकाल में भी

( अमर सिंह, बलद्वाड़ा, मंडी ) मार्च में होने वाली वार्षिक परीक्षा में नकल पर कैसे नकेल कसी जाए, इसके लिए शिक्षा विभाग इसकी तैयारियों में पहले से ही जुट जाता है। जहां पहले इसे रोकने के लिए उड़नदस्ते बनाए जाते थे, अब विभाग परीक्षा हालों में सीसीटीवी लगाने की तैयारियां कर रहा है। हर

( डा. शिल्पा जैन, वांरगल (तेलंगाना) ) हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन लोगों को सरकार से सवाल करने का कोई अधिकार नहीं है, जिन्होंने मतदान नहीं किया है। यह उन लोगों के लिए एक सबक है, जो मतदान के समय वोट नहीं देते और बाद में हर समस्या की जड़ सरकार

पीके खुराना ( लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं ) हमारे देश का बुद्धिजीवी वर्ग अत्यधिक सुविधाभोगी हो गया है और उसके अपने निहित स्वार्थ हैं। वह सिर्फ ऐसे तर्क देता है जो तर्कसंगत लगते हैं, पर यह जानना कठिन होता है कि वे तर्क हैं या कुतर्क। दूसरी समस्या यह है कि बुद्धिजीवी

( अनुज कुमार आचार्य  लेखक, बैजनाथ से हैं ) युवाओं द्वारा स्वच्छंद और कामुकता से भरपूर जीवन जीने की चाह में भारतीय संस्कृति में निहित नैतिक गुण पानी मांगते नजर आते हैं। सरकारी विद्यालयों में पश्चिमी देशों की तर्ज पर लागू नवीन शिक्षा पद्धतियों, नित नए बदलावों और अध्यापकों  के हाथों को बांध देने के

राजनीति के चीखते मंजर पर खबर होने तक की खुन्नस और मुनादी में हर लम्हे का जिक्र होने लगा। हिमाचल में सियासी कसरतों का मौसम और मुद्दों के मुहानों पर आंधियों का सफर। ऐसे में नेताओं के बीच परिचय और प्रदर्शन का मुकाबला दोनों तरफ से जारी है। केंद्र बनाम राज्य के संबंधों में पहली

( सुरेश कुमार, योल ) चुनावी वर्ष में तो यह आम होता है। सिर्फ हिमाचल ही नहीं, सब जगह चुनावी वर्ष में बिना बजट के सौगातें बंटती हैं। हिमाचल सरकार भी यही कर रही है। वैसे आज से चार साल पहले भी मुख्यमंत्री ने कई घोषणाएं की थीं और कई जगह तो एक ईंट भी