विचार

हिमाचल में टिकट आबंटन की सर्कस में कई पिंजरे, कई दीवारंे, कई मजमून और कई जमूरे करतब दिखा रहे हैं। आश्चर्य यह कि चार लोकसभा सीटों के हिसाब में भी हम राजनीति के खंभों पर टंगे हैं। जनता के नसीब में चुनावी खुमार का यह आलम कि यह सदी भी बंटी हुई गुजर रही है। सामाजिक विभाजन में राजनीति की चोंच इतनी लंबी हो गई है कि अपनी ही टेढ़ी कलों में उससे सीधा खड़ा नहीं हुआ जाता और फिर नेताओं का आयात इस शर्त पर कि किसी फैसले की हर घड़ी में हम उसी दौर में घिर रहे हैं, जो अतीत के पन्नों को बर्बाद करते रहे। आश्चर्य यह कि

अक्सर देश के विभिन्न राज्यों में दूषित पानी लोगों की सेहत का दुश्मन बन जाता है। दूषित जल के कारण लोगों की जो सेहत खराब होती है, उसके लिए कौन जिम्मेवार है, सरकार, प्रशासन या फिर आम जन? दूषित जल के लिए तो सरकार और प्रशासन ही ज्यादा जिम्मेवार हैं, क्योंकि आम जन को सरकार की तरफ से दी जाने वाली मूलभूत सुविधाओं में स्वच्छ जल उपलब्ध करवाना मु

इन दिनों आम चुनाव में लगभग सभी राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणापत्र तैयार कर रहे हैं, लेकिन अपेक्षाओं के विपरीत भारत की 42 प्रतिशत जनसंख्या, यानी युवाओं और बच्चों के मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं है। कुछ दलों के घोषणापत्रों में टोटकों की तरह बच्चों के मुद्दे रखे तो गए हैं, लेकिन उन पर कोई सार्वजनिक बहस नहीं की जा रही। देश का संविधान कहता है कि लोकतंत्र सबका है और राज्य को सभी के लिए समान विचार अपनाना चाहिए, लेकिन हमारे राजनीतिक दलों और राजनेताओं

हम खुद ही परमात्मा हैं। मैं ही परमात्मा हूं, अहम् ब्रह्मास्मि! अब से हम जो कुछ भी करें, ऐसा करें कि अपनी नजरों में न गिरें। अब से हम जो कुछ करें, परमात्मा को साक्षी मान कर करें, क्योंकि हम उसके साक्षी हैं, और जब हमारा हर काम परमात्मा को साक्षी मान कर होगा तो उसमें से झूठ, फरेब, धोखा, अधूरी सूचना, गलत सूचना का अंश खुद ब खुद निकल जाएगा, सब कुछ सात्विक हो जाएगा और हम परमात्मा को पा लेंगे। यह समझ लिया तो फिर कुछ और समझने की जरूरत ही नहीं रहती है। सत्य के मार्ग पर चलकर ही भगवान को पाया जा सकता है। यही सच्चा अध्यात्म है, यही परमात्मा का मार्ग है। हर धर्म की तरह सहज संन्यास मिशन की भी यही मान्यता है कि परमात्मा सर्वव्यापी है, हर जगह है...

इन धरोहर स्थलों के निकट स्थानीय पकवानों को परोसने वाले स्टाल्स लगाकर पर्यटकों को क्षेत्र विशेष के खानपान से परिचित करवाने का प्रयास होना चाहिए। ऐसे महत्वपूर्ण धरोहर स्थलों के निकट पार्किंग स्टैंड बनाए जाने चाहिए और पर्यटकों को लूटने-झांसा

कम से कम हिमाचल में राजनीति यह सीख चुकी है कि चुनावी फासले में जीत सुनिश्चित करने के लिए नए उद्भव खोजने पड़ेंगे। भाजपा ने इसी खोज में मंडी संसदीय सीट से फिल्म कलाकार कंगना रनौत को अपना लिया तो कांग्रेस ने दुर्ग की सियासत में अपने विधायक एवं मंत्री विक्रमादित्य सिंह को लाव लश्कर के साथ उतार दिया। इसी तरह पार्टी ने आगे बढक़र अपने विधायक विनोद सुल्तानपुरी पर शिमला से दांव खेल दिया। अब अगर चर्चाओं का खलिहान फसल उगाने तक पहुंच जाए तो एक और विधायक या

हमें तलाश है रोटी की, रोजी की। दो जून पेट भर भोजन के बाद आत्मतोष के साथ अपने दिन बदल जाने की। बहुत दिन इन्तजार कर लिया, अब केवल अच्छे दिन का सपना देखने से ही पेट नहीं भरता। उन्होंने कहा था, ‘बहुत जल्दी मैं तुम्हारे लिए ऐसे दिन ले आऊंगा कि तुम्हारे हर खाते में पन्द्रह-पन्द्रह लाख रुयया होगा।’ उन्होंने पवित्र ग्रंथ की कसम खाकर कहा था, ‘मुझे वोटों की पालकी

मेरा लिखने का अपना स्टाइल है। जब भी मेरा मन कुछ भी लीक से हटकर लिखने को करता है तो मैं अपनी लाइब्रेरी में पड़े कवियों-गद्यकारों के संकलनों में से पांच सात कवियों, पांच सात गद्यकारों की रचनाएं मुस्कुराते हुए फाड़ उनके टुकड़े टुकड़े कर उन्हें अपने सृजनात्मक डिब्बे में डाल देता हूं। फिर अपने उस सृजनात्मक डिब्बे को तब तक हिलाता रहता हूं जब तक गद्य पद्य में तो पद्य गद्य में घुल मिल नहीं जाते, कबीर के कुंभ में जल जल में कुंभ की तरह। बाहर जो हो, सो होता रहे। इससे मुझे कोई लेना देना नहीं होता। जब मुझे पता नहीं लगता कि अब इसमें गद्य कौन तो पद्य कौन, उसके बाद मैं अपने सृजनात्मक डिब्बे का ढक्कन खोल डिब्बे में से दो चमच नूतन साहित्य के निकाल उसे कागज पर डाल खिली धूप में सूखने रख देता हूं ता

बसपा प्रमुख मायावती ने चुनाव प्रचार के दौरान पश्चिमी उप्र को एक अलग, स्वायत्त राज्य बनाने का मुद्दा उछाला है। जब मायावती 2007-12 के दौरान उप्र की मुख्यमंत्री थीं, तब भी वह इस मुद्दे पर मुखर थीं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और उनके बाद भी इसी भूक्षेत्र को ‘हरित प्रदेश’ नामक राज्य बनाने को आंदोलन और अभियान छेड़े गए थे। ‘हरित प्रदेश’ राष्ट्रीय लोकदल के महत्व