विचार

मैंने अपने एक मित्र को फोन किया-‘क्यों भाई क्या कर रहे हो?’ मित्र ने बहुत अनमने मन से उत्तर दिया-‘अरे यार, रेलवे स्टेशन जा रहा हूं, मेहमान आ रहे हैं।’ मैंने हंसकर कहा-‘क्यों मजाक कर रहे हैं, यह नई सदी में मेहमानों का क्या लफड़ा है? अब कौन मेहमान बनना पसंद करता है और मेजबान भी नहीं रहे।’ मित्र ने जवाब दिया-‘मजाक नहीं कर रहा, आज वाकई मेहमान आ रहे हैं और वह भी तीन दिनों के लिए।’ मैंने उससे पूछा-‘अब क्या करोगे तुम?’ मित्र एक पल चुप्पी साध गए और फिर बोले-‘अब जो भी होगा, हो जाएगा। मेहमान भी बहुत नजदीक के हैं। टाला भी नहीं जा सकता।’ ‘लेकिन यार, यह तीन दिनों का टाइम कैसे निका

25 जनवरी, वर्ष 1950 को स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए चुनाव आयोग की स्थापना हुई थी। जब से चुनाव आयोग की स्थापना हुई है और जो कोई भी निर्वाचन आयुक्त हुए, उनकी देखरेख में चुनाव प्रक्रिया में सुधार हुआ भी है। देश में हर समय चुनाव का मेला लगा रहने से आदर्श आचार संहिता के कारण नए विकास के काम रफ्तार नहीं पकड़ पाते, इससे राजनीतिक दलों के खर्च पर नियंत्रण तथा चुनाव में कालाधन खपाने जैसी समस्याओं पर भी लगाम नहीं लग पाती। सरकारी विभागों के कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया में व्यस्त रहते हैं। इससे आमजन को सरकारी विभागों में काम करवाने में परेशानी होती है। सरकारी स्कूलों

जिस तरह पाकिस्तान आतंकियों की ‘पनाहगाह’ है, कनाडा भी उसी राह पर है। पंजाब में जो नौजवान मौजूदा व्यवस्था से नाराज हैं और लंबे वक्त से बेरोजगार हैं, उन्हें खालिस्तान-समर्थक एक खास चि_ी देते हैं। उसके आधार पर उन्हें आसानी से कनाडा का वीजा मिल जाता है। लोक

पर्यटन की संभावना में गुणवत्ता लाने के लिए यह आवश्यक है कि हिमाचल उच्च श्रेणी के सैलानियों को आकर्षित करने के काबिल बने। यह मात्रात्मक दृष्टि से कहीं भिन्न प्रदेश की अधोसंरचना, कनेक्टिविटी तथा समूचे पर्यटन क्षेत्र की मार्किटिंग से जुड़ा सवाल है। सुक्खू सरकार ने यूं तो पर्यटन के प्रति अपनी प्राथमिकताओं का उल्लेख किया है, लेकिन पांच करोड़ सैलानियों के आंकड़े पर टिकी तवज्जो केवल मात्रात्मक दृष्टि का विस्तार करती है। हमें सैलानियों का रेवड़ नहीं, बल्कि हाई एंड टूरिज्म की तलाश करनी है। उन संभावनाओं को परिष्कृ

आत्महत्या करने वाले लोगों में अमीरों की संख्या ज्यादा है। गरीब को तो फिर भी लालसा होती है कि ये कर लूं, वो कर लूं, ये पा लूं, वो पा लूं, क्योंकि उसके जीवन में तो कमियां ही कमियां हैं, अभाव ही अभाव हैं, उसकी लालसाएं बाकी हैं, पर अमीर आदमी की तो कठिनाई ही यह है कि पैसे के दम पर उसने सब देख लिया, सब पा लिया। न करने को कुछ बाकी रहा, न पाने को। जीवन में कोई उत्साह न

इसकी जानकारी मिलने पर कालेज प्रशासन ने आपात बैठक बुलाई। इस दौरान निर्णय लिया गया कि सीनियर्स द्वारा जूनियर्स से जबरन काम कराना रैगिंग के अंतर्गत आता है, जो अक्षम्य श्रेणी का अपराध है। इसके बाद रैगिंग के आरोप में चिन्हित किए गए 12 सीनियर्स के परिजनों को बुलाया गया, जिनकी उपस्थिति में सभी को क्लास रूम से सस्पेंड किया गया...

लोकतंत्र के चार स्तम्भों की जानकारी हमें थी। पहला स्तम्भ प्रेस है, इसमें से गोदी मीडिया कौनसा है और तीखा सच बयान करने वाला कौनसा, इसकी पहचान आजकल कठिन होती जा रही है। गोदी मीडिया क्या वह होता है जिसे सरकार ने या धनपतियों ने गोद ले रखा हो। क्रांति या यथार्थ मीडिया वह, जिसकी ज़ुबान सच बयान करते हुए तनिक भी न थरथराए। ऐसी दूर की कौड़ी तलाश कर लाए कि आदमी को किसी सनसनीखेज घटना से टकराने का एहसास हो जाए। लेकिन सुनने और पढऩे वालों की परेशानी यह है कि प्रैस और मीडिया के दोनों रूप एक-दूसरे को गोदी और अपने आप को यथार्थ कहते फूले नहीं समाते। कुछ भी अघटनी

भारत एक हजार वर्ष से आतताइयों से लोहा ले रहा है। विदेशी आतताइयों ने भारत को छिन्न भिन्न करने के लिए सबसे पहले भारतीय संस्कृति पर हमला किया। अंग्रेजों ने जाते जाते अलगाववाद के बीज बोए। भारत में और भारत के बाहर भारत के खिलाफ आज भी षड्यं

विभिन्न मापदंडों पर और डेटा से पता चलता है कि मुस्लिम आबादी हिंदू आबादी से आगे नहीं निकल रही है। तो फिर दो धर्मों के लोगों के बीच में नफरतों के बीज क्यों बोये जा रहे हैं...