विचार

इतिहास में झांकें, तो कांग्रेस और खासकर सीपीएम दोनों दुश्मन भी रहे हैं और अवसरवादी मित्र भी रहे हैं। प्रसंगवश 2004 का उल्लेख करता हूं। कांग्रेस 145 सीटें जीत कर लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा 138 सीटें ही जीत पाई थी। अर्थात जनादेश त्रिशंकु था, लिहाजा खिचड़ी सरकार ही बननी थी। उस लोकसभा में वामदलों के कुल 61 सांसद जीत कर आए थे। यह उस दौर में वाम की सबसे शानदार और बड़ी चुनावी जीत थी। तत्कालीन सीपीएम महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत ने मध्यस्थता की और कांग्रेस के नेतृत्व में, भाजपा-विरोधी दलों को जोड़ कर, यूपीए का गठन किया। सोनिया गांधी को उसका अध्यक्ष बनाया गया। डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनाए गए और सी

एक समय की बात है। ज़ोम्बीद्वीप में एक बुद्धिमान, न्यायप्रिय और संवेदनशील राजा राज्य करता था। देश में राजशाही के बावजूद लोकतंत्र में उसकी गहन आस्था थी। उसने एक संविधान के निर्माण के बाद उसे न केवल लागू करवाया बल्कि उसकी रक्षा के लिए क़ानून भी बनाया। देश का नाम भले ही ज़ोम्बीद्वीप था, परन्तु उसके लोग ज़ोम्बी नहीं थे। देश बहुधर्मी था और सभी धर्मों के लोग आपस में बड़े प्रेम, भाईचारे और सौहार्द से रहते। राजा का एक लडक़ा था। देखने में साधारण होने के बावजूद वह अपने आपको धर्मेन्द्र से कम नहीं समझता। आत्ममुग्धता का शिकार राजकुमार दिन में दस बार कपड़े बदलता। वह स्वभाव से मनमौजी, अक्ल से साधारण और नीयत से बेईमान था। झूठ बोलने में उसे विशेष आनन्द आता। धीरे-धीरे उसने झूठ बोलने में इतनी म

पहली बार हिमाचल में सियासत ने ग्लैमर की राह पर अपना कद देखना शुरू किया है, ऐसा भी नहीं, लेकिन चुनाव की दहलीज अब कीमत मांगती है। राजनीति में सादगी या सादगी में राजनीति के तरकश में अब तीर कहां। ऐसे में पके पकाए नेताओं के घर में ग्लैमर की संभावना बढ़ गई है। सोशल मीडिया की मर्जी या बेहतर इस्तेमाल से जो नेता अपना आभामंडल बना पा रहे, उन्हें कबूल करने के त

यह अभूतपूर्व खाद्यान्न भंडारण व्यवस्था नए भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए बहुआयामी उपयोगिता देते हुए दिखाई देगी। हम उम्मीद करें कि लोकसभा चुनाव के बाद गठित होने वाली नई सरकार कृषि एवं ग्रामीण विकास के साथ-साथ कृषि सुधारों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी...

नंगे दराट पर खून की धार जिस सार्वजनिक स्थान पर फूटी, वहां समाज, संस्कृति, शासन-प्रशासन और कानून व्यवस्था की नंगई सामने आ गई। पालमपुर शहर की चीखें उस वक्त शिमला तक जरूर पहुंची होंगी, जब असहाय बेटी एक दरिंदे के सामने जान बचाने की कोशिश कर रही थी। कोशिश तो धीरा के गांव में उस

गोल-गप्पा जबसे खुद को पुरुष मानने लगा है, उसका जीवन औरत के मुंह में फंस गया है। हर वक्त फूला फूला सा रहता है। ढेर सारा खाता है, फिर भी उदास रहता है। इसे निगलने को हर कोई तैयार रहता है। बुद्धिजीवी ने हर बार अपने हालात को गोल गप्पे के करीब पाया। जब भी कोई सेंकता है या गर्माहट के आंचल में उबालता है, यह फूल जाता है। बुद्धिजीवी कब नहीं फूला और कब फूला नहीं समाया। हर बार सरकार के परिवर्तन पर फूला फूला सा रहा। सच मानो यह तो इंदिरा की इमरजेंसी की घोषणा पर भी फूला था, लेकिन फिर इसके अंग, ढंग और रंग जिस तरह फुलाए गए, इसके सामने अपने खोट आ गए। हद यह कि इसने इमरजेंसी का पीछा नहीं छोड़ा। हटी तो भी खुशियां मनाई। इसके पास खुशियां मनाने के कई रिकार्ड हैं। स्वच्छता रैली के बाद या तो गोल गप्पा फूला

सन् 1970 में पृथ्वी के संरक्षण के उद्देश्य से अमरीकी सीनेटर गेलोर्ड नेल्सन ने पृथ्वी दिवस मनाने का निर्णय लिया था। इस दिवस को अमरीका ट्री डे के रूप में मनाता है। और अब सन् 1970 से हर वर्ष 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस बहुत से देशों में मनाया जाता है। हमारे देश में भी इस दिन बहुत से प्रोग्राम आयोजित किए जाते हैं। हम जिस थाली में खाएं, उसी में छेद करना शुरू कर दें, तो यह हमारी सबसे बड़ी नासमझी नहीं होगी, तो और क्या होगा?

भारत में 2030 तक 500 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इसे हम प्राप्त कर सकेंगे। किंतु बड़े ऊर्जा पार्क बनाकर स्थानीय संसाधनों पर कुछ जगहों पर ज्यादा दबाव पड़ जाता है, जिससे रोजी-रोटी के संसाधन छिन जाते हैं...

आम चुनाव, 2024 के प्रथम चरण का मतदान कई मायनों में अप्रत्याशित रहा है। कुल मतदान शनिवार की रात्रि 11 बजे तक करीब 65.5 फीसदी रहा। यह 2019 की तुलना में 4 फीसदी कम रहा है। सबसे अधिक मतदान संघशासित क्षेत्र लक्षद्वीप में 84.16 फीसदी किया गया। पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और सिक्किम में 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुए, लेकिन फिर भी 2019 की तुलना में 2 फीसदी तक कम हुए। सिर्फ छत्तीसगढ़ में 2 फीसदी मतदान ज्यादा किया गया। जम्मू-कश्मीर सरीखे संवेदन