यह देखा जाता है कि जिन देशों में जमीनी स्तर पर विकास की गतिविधियां वास्तविक रूप से बढ़ती हैं, तो उन देशों में लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी होने लगती है और रोजगार में बढ़ोतरी होती है, गरीबी और भुखमरी खात्मे की ओर अग्रसर होती हैं, खुशहाली का मंजर देखने को मिलता है। लेकिन इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि कुछ देशों में विकास की गतिविधियों के बावजूद न तो बेरोजगारी की स्थिति सुधरने लगती है
हिमाचल प्रदेश में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का एक प्रहरी ‘दिव्य हिमाचल’ अखबार की मुख्य लाइन ‘कत्र्तव्य पथ पर चलकर बनें बदलाव का जरिया’ पढक़र पिछले दिनों आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय द्वारा कही गई ‘मन की बात’ का सारांश जाना। सारांश एक..भारतवासी, क्षेत्रवासी अपने पर्यटन तीर्थों, क्षेत्रों को जानें, साथ में जानें वहां के इतिहास की सार्थकता, सिद्धता सिद्धांत और उसे मजबूत करें ताकि क्षेत्र मजबूत हो, पर्यटन मजबूत हो, अर्थव्यवस्था मजबूत हो और जन्मभूमि धरा को पहचान मिले। सारांश दो.. हमारी लोकसांस्कृतिक विरासत चुम्बकीय है। विदेशी अपनाने, नाचने, गाने, पढऩे-सीखने स्वत: चले आते हैं। उदाहरण जर्मनी की एक लडक़ी कैसमी
हमें पर्यटन को इससे जुड़ी आर्थिकी में रूपांतरित होकर चलना होगा और इसके लिए जरूरी है कि उद्योग के पार्टनर पहचानें और निरंतर बढ़ाए जाएं। एक भ्रम है कि पर्यटन केवल सरकारी दायित्व की खोज है, लेकिन हिमाचल में आने का बुलावा कई गतिविधियों से बढ़ रहा है। इस दौरान वैश्विक व राष्ट्रीय पटल पर आ रहे परिवर्तन तथा बदलती हुई सैलानी की परिभाषा भी एक नई हलचल पैदा कर रही है। हिमाचल में पर्यटन का ताल्लुक कई वजह से सदियों पुराना व स्थायी है, लेकिन अब इसकी अहमियत रा
कुछ समय पहले के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में करीब पांच करोड़ बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। वहीं, राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन के अनुसार हमारे देश में हर चौथा बच्चा स्कूल से बाहर है। मेरा मानना है कि हमारे स्कूलों में ही इतनी खामियां हैं कि बच्चे मनोवैज्ञानिक
जी-20 सम्मेलन के दिल्ली घोषणापत्र में जलवायु और सतत वित्त पर काम करने का आह्वान किया गया है, ताकि इसके माध्यम से सबसे बड़ी समस्या से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके...
देश में फैल रही नफरत, मिथ्या प्रचार और बात-बात पर नेताओं द्वारा बोले जाने वाले झूठ से परेशान होकर एक दिन मैं बजरंग बली से आर्तनाद स्वर में प्रार्थना करने लगा, ‘हे प्रभु! इससे पहले धरा पर पापों का भार इतना बढ़ जाए कि शेषनाग फन पर धरती को संभाल पाने में असमर्थ रहने पर उसे सागर में गिरा दें और जल प्रलय हो उठे, आप फौरन प्रकट हों। समाज सेवा और देश सेवा के नाम पर बार-बार झूठ बोलने, धन कमाने और जनता को बेवकूफ बनाने वालों का नाश करने के बाद देश में सत्य का सा
भारत में बेरोजगारी और महंगाई सबसे अहम राष्ट्रीय मुद्दे हैं। विडंबना है कि इन मुद्दों पर अधिकतर जनादेश तय नहीं किए जाते। आजकल महिला आरक्षण की खूब गहमागहमी है। सामान्य आरक्षण भी ऐसा ही संवेदनशील मुद्दा है। आरक्षण से ज्यादा जरूरी रोजगार है, ताकि महिलाएं भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी ‘अवैतनिक कामकाजी’ न रह सकें और औसत भारतीय आत्मनिर्भर बन सके। देश
पर्यटन की तहजीब में आ के हर साल एक हफ्ता गुजर जाता, लेकिन इस उद्योग की व्याख्या में यह कोई स$फर नहीं। पर्यटन अगर साल में अपने लिए कुछ दिन, कुछ महीने तय करने लगे तो हम इसके चबूतरे पर केवल नौटंकी करते रहेंगे। पर्र्यटन की आत्मा में चौबीस घंटे का अनुभव, गतिविधियां व श्रम समाहित रहता है। पर्यटक हर देश, हर प्रदेश और हर जगह के संदेश को समझता है। पर्यटक अगर अंतरराष्ट्रीय डगर पर निकला है, तो उसे भारत बुलाने का मकसद बड़ा हो जाता है। ऐसे में हिमाचल को
अगर समाज का हर आदमी जागरूक हो जाएगा, तभी बालिकाओं को बचाया जा सकता है और तभी ऐसे बालिका दिवस सार्थक होंगे। अगर अब भी लापरवाही बरती तो एक दिन बालिकाओं का अस्तित्व मिट जाएगा। फिर पछताने के सिवाय कुछ हासिल नहीं होगा। विश्व के देशों को इस विकराल हो रही समस्या पर लगाम लगाने के लिए विचार करना होगा... बेशक 24 सितंबर 2023 को