वैचारिक लेख

नैनीताल उत्तराखंड का एक रमणीय पर्यटन स्थल है जो 1939 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। यहां की नैनी झील के चारों ओर फैली पहाडिय़ों के कारण यह एक कटोरेनुमा शहर है। इस सुंदर शहर की खोज कुछ अंग्रेजों ने 1839 में की थी जब वे किसी कार्य से घूमते हुए यहां पहुंचे थे। वर्ष 1841 में बेंटन तथा बेरन नामक दो अंग्रेजों ने इसे बसाने का कार्य प्रारंभ किया एवं 1842 में यहां 10 मकान स्थानीय सामग्री से बनाए। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से आकर्षित हो अंग्रेज यहां धीरे-धीरे बसने लगे एवं 1901 तक यहां की आबादी 7500 के लगभग हो गई। वर्तमान में इसकी आबादी 80 हजार के आसपास है एवं इतने ही पर्यटक यहां गर्मी के मौसम में प्रति स

हम उम्मीद करें कि हाल ही में डब्ल्यूटीओ के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में जिस तरह भारत ने खाद्य सुरक्षा व एमएसपी का मुद्दा प्रभावी तरीके से उठाया है, उससे दुनिया के अन्य देशों का समर्थन बढ़ेगा और इसका स्थायी समाधान होगा। साथ ही हाल ही में लांच की गई बड़ी खाद्यान्न भंडारण योजना से लाभ मिलेगा...

यदि शिक्षक के शैक्षणिक कार्य यूं ही प्रभावित होते रहे तो ‘भविष्य’ अनेक चिंताओं का जन्मदाता बनकर रह जाएगा। शैक्षणिक संस्थानों व शिक्षा में हर स्तर पर नैतिक मूल्यों का पतन भी गंभीर चुनौती है। शिक्षा बोर्ड, शिक्षा विभाग व सरकार को अब सचेत होना होगा...

भारत में पहचान बनाने के लिए लोग मरने का इंतजार करते हैं। हम जिंदा लोगों को पहचानें या मरने पर शव स्तुति के माहिर लोगों में गिने जाएं। हमारा सारा ज्ञान शमशानघाट की चारदीवारी में आकर तरोताजा हो जाता है। बुद्धिजीवी का वैचारिक जीवन यूं तो मरा सा है, लेकिन जब कोई मरता है तो वह चर्चाओं में खुद के होने का अहसास कर लेता है। यूं तो रूटीन में वह अखबारें पढक़र अधमरा हो जाता है और समाचार चैनल सुनते-सुनते सुध-बुध खो बैठता है। वह कई बार महसूस करता है कि बुद्धि का अगर गुरुत्वाकर्षण होता भी तो चैनलों के एंकर उसे टिकने नहीं देते। वह जब देश से कतराना चाहता है तो चैनल पर चर्चा सुन लेता है। चंद्रया

बर्तानिया हुकूमत का सूर्यास्त होने के बाद यदि हिंदोस्तान के फलक पर मगरिब के बादल मंडरा रहे हैं तो इस तहजीब की वजाहत में बालीवुड ने एक मखसूस किरदार अदा किया है। भारतीय संस्कृति व संस्कारों को दूषित करने वाली पश्चिमी तहजीब सिनेमा के जरिए ही सामाजिक परिवेश में दाखिल हुई है...

आज भाजपा सबसे ज्यादा बड़ी पार्टी है। यह निश्चित है कि केंद्र सरकार के चुनावों में काले धन के जरिए होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के प्रयासों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से झटका लगा है। कोर्ट के बॉण्ड के मामले में दिए गए आदेश के बाद राजनीतिक दल फिर से चुनावी चंदे के नाम पर उद्योपतियों की बांह मरोडऩे से बाज नहीं आएंगे...

कृपया मेरा नाम किसी के साथ न जोड़ा जाए। न तो मैं सीधी तरह उधर हूं और न ही सीधी तरह इधर हूं। मैं बीच में हूं और समय की धार देख रहा हूं। आप यूं भी कह सकते हैं कि मैं तटस्थ आदमी हूं।

आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं द्वारा हासिल की गई सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सफलताओं का जश्न मनाना जरूरी है, ताकि हर महिला में कुछ नया करने की संजीवनी भर जाए, उनमें नए पंख लग जाएं

मथुरा कन्हैया लाल (श्रीकृष्ण) आ तो गए, लेकिन उनका मन होली के आते ही व्याकुल हो उठा। राधा तथा अन्य गोपियों की याद उन्हें सताने लगी। उद्धव से बोले- ‘उद्धव, मोहे ब्रज बिसरत नाहीं’। उद्धव बोले- ‘भगवन् आपने ही मथुरा आने की जल्दबाजी की। अभी आप कह रहे हैं कि आप ब्रज को भुला नहीं पा रहे हैं। ब्रज को भुलाना संभव भी नहीं है। आपने वहां वर्षों रास रचाया है। गोपियों की दही-मक्खन की मटकियां फोड़ी हैं और होली पर खूब गुलाल-अबीर उड़ाया है। मैंने तो आपसे कहा भी था कि मथुरा होली के बाद चलेंगे