इसके बाद संन्यासी ने सेठ से कहा कि शहर के सबसे अमीर सेठ होते हुए भी तुमने लालच किया और कुत्ते का जूठा दूध भी पीने को तैयार हो गए। अब जान के लाले पड़े हैं तो पारस पत्थर तुम्हें बेकार लगने लगा है। याद रखो जीवन का हर सबक एक पारस पत्थर के बराबर है और पहला सबक यह है कि लोभ है कुआं, जो गिरा वो मुआं। यह सुनकर सेठ की आंखों से आंसू बहने लगे, उसका मन निर्मल हो गया और उसने संन्यासी के चरण पकड़ लिए। अब संन्यासी ने सेठ को कहा कि अगला और आखिरी पाठ यह है कि राम नाम में प्रेम होने से हम अहंकार के शिकार नहीं होते और इंद्रियों के विषयों में हमारी आसक्ति नहीं होती जिससे हमारा आ
लोगों को भी चाहिए कि वे सबसे पहले जातिवाद, इलाकावाद से ऊपर उठकर निष्पक्ष, कर्मठ, ईमानदार, दूरदर्शी और समदर्शी सोच रखने वाले प्रत्याशियों को पंचायती राज संस्थाओं की बागडोर सौंपें। उम्मीदवारों की मंशा, उनके द्वारा किए गए कार्यों की परख कर नेक इरादों वाले जनप्रतिनिधियों को कमान थमाएं...
लगता है, आज जिंदगी ठेके पर चली गई है। लेखन से कलाकृतियों तक का सृजन ठेके पर होता है। जिंदगी से प्यार खत्म करवाने का ठेका पहले कुछ लोगों ने ले रखा था। इस पर न जाने कितनी दर्दनाक फिल्में लिखी गईं, न जाने कितनी प्रेम कहानियां बनीं, जिनके प्रेम त्रिकोण में तीसरा कोना खलनायक का होता था। ठेके पर काम करते ये लोग प्रेमी से लेकर रस्मो रिवाज और परंपराओं की दुहाई देकर शादी तुड़वाने वाले बड़े-बूढ़ों और समाज के मीर मुंशियों का काम कर जाते। रिश्ता टूट जाता। यूं खलनायकों का ठेका व्यवसाय इतना सफल हो गया कि लोगों ने उसकी भयावहता से डर कर अपने बच्चों के नाम इन खलनायकों के नाम पर रखने बंद कर दिए। तब ए
सनातन धर्म एक स्थायी पद्धति है जो सिर्फ एक धर्म होने से कहीं ज्यादा है क्योंकि इसमें एक ‘जीवन पद्धति’ शामिल है और इसका संयोजन है जो विभिन्न प्रकार की दृष्टिकोण प्रणालियों और रीति-रिवाजों को शामिल कर सकता है, जिसमें दर्शन भी शामिल है। यह लोगों को अस्तित्व, मानव जीवन के अर्थ और स्वतंत्रता के मार्ग का वर्णन करने के लिए एक और सार्वभौमिक दृष्टिकोण प्रदान करता है। अपने पवित्र ग्रंथ, प्रार्थनाओं या सनातन धर्म के दार्शनिक सिद्धांतों के माध्यम से यह आज भी लाखों लोगों को एक योग्य, शांतिपूर्ण और हमेशा संतुष्ट जीवन की ओर प्रेरित और निर्देशित करता है। शब्द के मान्यता प्राप्त पारंपरिक अर्थ में, सनातन धर्म या हिंदू धर्म,
माता-पिता अपने अधूरे सपने बच्चों से पूर्ण करवाना चाहते हैं। समाज में बाकी सबके बच्चों से ज्यादा होशियार अपना बच्चा होना चाहिए, ऐसी जिद्द करते हैं और ऐसा करने के पीछे बेहिसाब खर्च करते हैं, लेकिन अपने बच्चे की क्षमता और उसकी रुचि की तरफ ध्यान ही नहीं देते। सख्ती पहले भी होती थी, लेकिन वह व्यवहार को नियंत्रित करने का प्रयास रहता था। शिक्षा के लिए सख्ती कम रहती थी। इनसान बेहतर हो, व्यवहार बेहतर हो, मूल्यों के लिए सख्ती अपनी सीमाएं लांघ जाती थी। यह शारीरिक दंड के रूप में प्रचलित थी। अपशब्दों के प्रयोग के रूप में भी अपनाई गई थी। तनाव का एक निश्चित स्तर सामान्य है
भारतीय संस्कृति की यह शैली रही है कि इसमें जीवन के जिन कत्र्तव्यों अथवा मूल्यों को श्रेष्ठ और आवश्यक माना गया है, उन्हें धार्मिकता और पुण्य के साथ जोड़ दिया गया है, ताकि लोग उनका पालन अनिवार्य रूप से करें। जैसे कि तुलसी, पीपल की रक्षा आदि। पर्यावरण की दृष्टि से वृक्ष हमारा परम रक्षक और मित्र है। यह हमें अमृत प्रदान करता है...
हे अखबार वालो! मेरे घर में एक नहीं, दो नहीं, सात सात अखबार रोज आते हैं। मर गया इनको उनको आपके अखबारों की सुर्खियां बनते देखता। कभी मुझे भी अपने अखबार की सुर्खी बनाओ तो मेरा आपका अखबार खरीदना सार्थक हो। आपके अखबार खरीदने के कुछ पैसे वसूल हों। तो कल हुआ यों कि जैसे ही मैंने ऑफिस जाने के समय अखबार खोला तो फ्रंट पेज पर अपने राम प्रसाद जी छाए हुए। उनके घर की तलाशी की फोटो छपी थी। अखबार वाले कह रहे थे, उनकी बीवी, उनके बेटे, उनके रिश्तेदारों के नाम-पता नहीं कहां कहां क्या क्या है? घर में करोड़ोंछिपाए हुए। प्रथम दृष्टया तो मुझे चरित्र में हद से अधिक ईमानदारी होने का केस लगा। उनके सद्चरित्र को कलंकित करने की किसी की साजिश लगी।
आज भारत की एकता एक नई चुनौती का सामना कर रही है। कई छोटे राज्य, विशेष रूप से दक्षिण भारत के, केंद्रीय सरकार के योजनाबद्ध परिसीमन, जो कि जनसंख्या के आधार पर संसदीय क्षेत्रों को पुनर्निर्धारित करने के लिए संवैधानिक रूप से एक अनिवार्य प्रक्रिया है, का विरोध करने के लिए एकजुट हो गए हैं। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना और अन्य छोटे राज्यों को डर है कि आगामी जनगणना के कारण उन्हें उत्तर के बड़े राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार के हाथों अपनी संसदीय सीटें खोनी पड़ सकती हैं। उनका तर्क है कि जनसंख्या वृद्धि को रोकने की उनकी सफलता का फल उन्हें प्रतिनिधित्व खोने के रूप में नहीं मि
यद्यपि हिमाचल में प्लास्टिक बैग पर पूर्णत: प्रतिबंध है, फिर भी मल्टीनेशनल ब्रांड्स व कम्पनियों द्वारा उत्पादों की पैकेजिंग में प्लास्टिक के उपयोग से प्रदेश भी नहीं बच पा रहा...