वैचारिक लेख

भूपिंदर सिंह राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक हमारे देश में भी जो राज्य हर प्रकार से समृद्ध हैं वे खेलों में भी अग्रणी हैं। आज जब गांव का जीवन खत्म हो कर शहरीकरण होता जा रहा है, इससे शारीरिक श्रम बिलकुल खत्म हो रहा है। इसलिए सामान्य फिटनेस के लिए अधिक से अधिक खेल सुविधाओं की जरूरत

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार जब माताएं बच्चों के साथ आया करती थीं तो वे बराबर ‘यह न करना, वह न करना, अरे यह तो बड़ा खतरनाक खेल है’ आदि चिल्लाती रहती थीं। बच्चे उन नसीहतों से इस कद्र नाराज हो जाते थे कि उनमें  ‘समझ क्या रखा है’ ठहरो, मैं अभी कुछ कर दिखाता हूं,

सुरेश सेठ sethsuresh25U@gmail.com नगरी अंधेरी थी, और राजा चौपट था, लेकिन फिर भी अगर आज भारतेंदु होते, तो उससे प्रेरित हो कर अंधेरी नगरी चौपट राजा, न लिख पाते, क्योंकि यहां न टके सेर भाजी बिकती थी, और न ही टके सेर खाजा। खाजा तो खैर सरहदों पर नाकाबंदी के कारण खत्म हो गया। जब

कर्म सिंह ठाकुर लेखक, मंडी से हैं बजट में प्रदेश की जनता माननीय मुख्यमंत्री द्वारा अधिक से अधिक आम जनता की समस्याओं से मुक्ति का रास्ता चाहती है। वर्तमान में प्रदेश सरकार अनुबंध कर्मचारियों के माध्यम से नियुक्तियां कर रही है, जिसमें पिछले एक दशक से अनेकों विसंगतियां पैदा हो गई हैं। किसी भी सरकार

सुखदेव सिंह लेखक, नूरपुर से हैं युवा किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी समान होते हैं जिन्हें समाज और राष्ट्र के पुनर्निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभानी होती है। अफसोस इस बात का कि आज पहाड़ के बेरोजगार युवा नशा तस्करी करने में अपना भविष्य तलाशने के लिए आखिर क्यों मजबूर हुए जा रहे

अशोक गौतम ashokgautam001@Ugmail.com बुद्धिजीवियों के अहाते के मुख्य गेट के पास पहुंच जरा और नजदीक जा देखा कि बुद्धिजीवी हाथों में किताबों-कलमों के बदले रंग बिरंगी बीनें लिए हुए। सामने किसी फिल्मी की हीरोइन से भी अधिक सजी-धजी भैंस खड़ी थी बंधी न होने के बाद भी अपने को बंधा समझती, अपने पर गर्वाती मदमाती।

राकेश कपूर लेखक, धर्मशाला से हैं एक अनुमान के अनुसार प्रदेश के शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में ही लगभग 200 से अधिक न्यायिक अवमानना के मामले लंबित हैं। यद्यपि भारतीय संविधान और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अनादर और असहिष्णुता हर राज्य में विशेष रूप से कार्यपालिका और जनप्रतिनिधियों ‘विधायिका’ की मनमानी और स्वहितस्य सेवा की

विकेश कुमार बडोला लेखक, उत्तराखंड से हैं मानव जीवन का प्राकृतिक, ग्रामीण और सामाजिक स्वभाव तिरोहित हो चुका है। मानवीय जीवन में मानव के लिए जो कुछ बचा है, वह धन-संसाधन संपन्न होने की उत्कट इच्छा ही है। निश्चित ही इससे हमारा भौतिक-आधुनिक उद्धार तो हो जाएगा परंतु आत्मिक उद्धार नहीं होगा। व्यक्ति का जो

भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक वायु प्रदूषण पर नियंत्रण न करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि उद्योगों पर प्रदूषण नियंत्रण का बोझ न पड़े, उनके माल के उत्पादन की लागत कम आए, देश का आर्थिक विकास हो जिससे कि जनता के जीवन स्तर में सुधार हो, लेकिन इस प्रक्रिया में बढे़ वायु प्रदूषण से जनता