मई का महीना शुरू होते ही मदर्स डे की याद आ जाती है। मां के रूप में अपने कत्र्तव्यों का पुनरावलोकन करने की स्थिति बार-बार मन में पैदा होती है। इस बार मई महीने में भी बार-बार मनहूस अप्रैल महीने की 22 तारीख को भूलने तो नहीं देगा, क्योंकि मदर्स डे पर उन माताओं पर क्या बीत रही होगी जिनके सामने उनके पतियों और उनके बच्चों के पिता को सरेआम आतंकवादियों द्वारा मार दिया गया। मन में सवाल तो जरूर आया होगा, माफ करना बच्चो, तुम्हारे पिता को मैं बचा नहीं पाई। बेशक मेरा बच्चा मानता है कि हर समस्या का समाधान मां तुम्हारे पास होता है तो इसका क्यों नहीं था? इन परिस्थिति
वर्ष 2018 में, शक्ति वाहिनी बनाम भारत सरकार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ऑनर किलिंग को एक गंभीर मुद्दे के रूप में मान्यता दी और ऑनर क्राइम की रोकथाम के लिए राज्य एवं पुलिस प्रशासन की जवाबदेही और जिम्मेदारी तय की। इस खतरे से निपटने के लिए अब तक कुछ गंभीरता दिखाने वाला एकमात्र राज्य राजस्थान है। वर्ष 2019 में राजस्थान ने एक विधेयक विधानसभा में पेश किया। इसे अगस्त 2019 में राजस्थान विधानसभा में पारित किया गया था...
धर्म, जाति, भाषा या क्षेत्रीय पहचान के आधार पर समाज को बांटने की प्रक्रिया में हम उस साझा सांस्कृतिक धरोहर को खो देंगे जो भारत को विशेष बनाती है...
प्रजा ने राजा के दरब-ार में पहुंचकर गुहार लगाते हुए कहा, ‘महाराज! यह बड़ा गंभीर मामला है। व्यवस्था के उत्पीडऩ से एक इंजीनियर ने सुसाइड कर लिया। अब तो सबूत सामने हैं। अफसरों की चुप्पी भी बहुत कुछ कह रही है। दोषियों को सजा जरूरी है और इसके लिए सीबीआई से जांच होनी चाहिए।’ राजा मुस्कुराए, वह मुस्कुराहट जो चुनावी वादों के वक्त दिखाई देती है और घोषणा करने के बाद गायब हो जाती है, ‘काहे की जांच? हमारी एजेंसियां बहुत बढिय़ा का
कारगिल के बाद तो अब तक आतंकवाद के रूप में यह युद्ध निरंतर चल रहा है। ट्रंप ने सही कहा है कि यह लड़ाई हजार-पंद्रह सौ साल से चली हुई है। अंतर केवल इतना ही है कि पहले हमले अरब, तुर्क या मुगल करते थे, लेकिन अब उनमें भारत पर हमले करने की हिम्मत तो नहीं बची है या फिर उन्हें शायद इसकी जरूरत भी नहीं है। अलबत्ता अब अपने ही वे लोग जिन्होंने इस कालखंड में इस्लाम ग्रहण कर लिया था, जब भारत पर हमला करते हैं तो तुर्क उनकी मदद पर आ जाते हैं...
मनुष्य का जीवन मुख्यत: चार स्थितियों से गुजरता है। बचपन मस्त होता है तथा बुढ़ापा कष्टप्रद होता है। किशोरावस्था के बाद युवावस्था और प्रौढ़ावस्था कहीं खुशी कहीं गम में उलझी रहती है। बचपन से किशोरावस्था तक के सफर में माता-पिता एवं गुरुजनों से जीवन जीने की सीख लेते हैं। अपने से बड़ों तथा बुजुर्गों से किस आदरभाव से बात करनी है, सिखाया जाता है। व्यावहारिक आचार-विचार के साथ शैक्षणिक शिक्षा भी इसी आयु में प्राप्त की जाती है। युवावस्था के साथ ही जी
हमारे हुक्मरानों को इजरायल के नक्शेकदम पर चलकर पाक परस्त आतंक को खल्लास करने का हलफ उठाना होगा। आतंक के आकाओं के खिलाफ बेबीलोन के शासक ‘हम्मुराबी’ के कानून ‘आंख के बदले आंख और दांत के बदले दांत’ को अमल में लाना होगा...
मैं बालों की समस्या से परेशान हो गया हूं। इधर बीस वर्ष पूर्व मेरे बाल काले हुआ करते थे। इधर अब हाल यह हो गया है कि सिर के बाल काले और सफेद मिलकर अजीब तरह की खिचड़ी बन गए हैं। दाढ़ी की सफेदी को तो मैंने रोज शेव बनाकर सलटा दिया है। परंतु ये सिर के बाल मेरी पोल खोलने पर तुले हुए हैं। पत्नी और बच्चे सदैव यह कहते रहते हैं कि मैं समय रहते इनका कोई स्थायी समाधान निकालूं, परंतु मेरा दिमाग बिल्कुल काम नहीं कर रहा। इन बालों की वजह से मेरा चेहरा भी बदल गया है। उम्र ने तो खैर चेहरे का भूगोल बदला ही है, रही-सही कसर बालों ने पूरी कर दी है। बाल भी सख्त होकर खड़े हो गए हैं तथा उनका रेशमीपन जाता रहा है। इस पचपन वर्ष की उम्र ने मुझे लगभग जोकर सा बना दिया है। मेरे बालों को लेकर डॉक्टरों ने तो अपने हाथ खड़े कर दि
सरकारों का भी यह दायित्व बनता है कि श्रमिकों के हितों को सुरक्षित बनाते हुए उन्हें अनुकूल कार्य वातावरण उपलब्ध करवाने के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पर्याप्त वेतन अदायगी के लिए बनाए गए कानूनों का अक्षरश: पालन करवाए ताकि श्रमिक वर्ग भी समाज में सिर उठा कर जी सके। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब तक हमारा मजदूर समुदाय प्रसन्न और सुरक्षित नहीं होगा, तब तक राष्ट्र का विकास अधूरा ही माना जाएगा...