वैचारिक लेख

अफस्पा रुखसत करने के बजाय आतंक के कारण चार दशकों से अपने ही मुल्क में शरणार्थी बनकर तर्क-ए-वतन का दंश झेल रहे कश्मीर के मूल निवासियों की सुध लेनी चाहिए। कश्मीर में टारगेट कीलिंग का सिलसिला जारी है...

देश की नई पीढ़ी के लिए अधिक से अधिक करियर के मौके जुटाने के लिए एक ओर सरकार के द्वारा डिजिटल शिक्षा के रास्ते में दिखाई दे रही कमियों को दूर करना होगा, वहीं दूसरी ओर नई पीढ़ी के द्वारा करियर में आगे बढऩे और रोजगार में आने के बाद भी काम करते हुए लगातार बदलती हुई रोजगार की दुनिया के अनुरूप नए स्किल्स सीखने होंगे...

दरअसल अमरीका भी खाड़ी देशों की तरह भारत से रिश्ते और प्रगाढ़ करने की दिशा में बढ़ रहा है। मुद्दा चाहे सैन्य साजो-सामान की सप्लाई का हो या फिर चीन के खिलाफ दमदार सहयोगी का हो, अमरीका को अंदाजा है कि चीन का मुकाबला भारत ही कर सकता है...

महंगाई का मसला चूंकि सरकार के गले की फांस बना था, इसलिए सरकार ने महंगाई रोकने के लिए एक हाईपावर कमेटी बना दी। अब सरकार तो कमेटी बनाकर निश्चिंत हो गई, लेकिन कमेटी को समझ नहीं...

अगर हम गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि इस समस्या के लिए मानव का स्वार्थ जिम्मेदार है। जब तक गाय दूध देती है, या बैल हल जोतता है, हम उनको अपने घर में रखते हैं, बूढ़े होने पर आवारा छोड़ देते हैं… हिमाचल प्रदेश की हलचल भरी सडक़ों, शहर के शोरगुल और ग्रामीण क्षेत्रों के

वायनाड ने सब गड़बड़ कर दिया। कम्युनिस्टों ने राहुल गांधी से पूछा कि आप तो पिछले दस साल से चिल्ला रहे हो कि आप की लड़ाई भाजपा वालों से है, लेकिन आप केरल में तो हमसे ही लड़ रहे हो। हम दिल्ली में आप के साथ एक मंच पर बैठ कर लम्बे-लम्बे भाषण देते हैं। मिल कर भाजपा के साथ लडऩे की हुंकार लगाते हैं, लेकिन उस सबके बावजूद आप केरल में हमसे ही लड़ रहे हैं...

अभी भी समय है कि सरकार को चाहिए कि इन खेल मैदानों का रखरखाव ठीक ढंग से करवाए, ताकि हिमाचल प्रदेश के खिलाड़ी इन सुविधाओं का लंबे समय तक लाभ उठा सकें...

मेहता साहब सवेरे-सवेरे ही आए और बोले ‘‘माफ करना शर्मा, मैंने तुमसे कल भला-बुरा कहा।’’ मैं आश्चर्य के साथ बोला, ‘‘क्या बात कर रहे हैं मेहता साहब, आपने मुझे कभी भला-बुरा नहीं कहा।’’ ‘‘तुम्हें याद नहीं है शर्मा, तुम भूल जाते हो। मंैने कल तुमसे बदतमीजी की थी। इसलिए भाई माफी मांगता हूं।’’ ‘‘चलो आपने भला-बुरा कहा भी होगा, लेकिन आप बड़े हैं, क्या हुआ अगर कह दिया तो। आप और मुझसे माफी मांगेंगे। ऐसा नहीं हो सकता।’’ मैंने कहा तो मेहता जी बोले, ‘‘अरे भाई हो रहा है। संसद में ही देख लो, पह

आज हममें से बहुत से लोग वास्तव में आध्यात्मिक होने के बजाय केवल आध्यात्मिक दिखने की परवाह करते हैं। निश्चित रूप से, एक फैंसी, आध्यात्मिक सोशल मीडिया पोस्ट लिखना आसान है, लेकिन वास्तव में उस उद्धरण पर खरा उतरना, उसे जीवन में उतारना, अपने व्यवहार में लाना कठिन हो सकता है। हमारे जीवन की असली सफलता इसी में है कि हम प्रेम का पाठ पढ़ लें, प्रेम के अढ़ाई अक्षरों को जीवन में उतार लें। यह एक मानसिक यात्रा है, यह मन के विचारों के बदलाव की यात्रा है, यह एक आंतरिक परिवर्तन है और इसके लिए कोई और दिखावा, या किसी और परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है...