वैचारिक लेख

अशोक गौतम साहित्यकार प्रातःकाल बिस्तर पर अंगड़ाइयां लेने से पहले ही जो जीव के आवश्यक सोशल मीडिया के लिए कृत्य हैं, सोशल मीडिया के शास्त्रों ने उनके लिए भी सुनियोजित विधिविधान बताया है। मोक्ष के लिए हर सोशल मीडिया प्रेमी को अपने नित्यकर्मों के अंतर्गत चाय पीने से पूर्वक सोशल मीडिया संबंधी कृत्यों को शास्त्रोक्त

डा. भरत झुनझुनवाला आर्थिक विश्लेषक   जीएसटी की प्राप्तियां वर्तमान में 12 लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष हैं। सुझाव है कि इन पर 50 प्रतिशत का सेस लगाया जा सकता है। बताते चलें कि जीएसटी पर लगाए गए सेस से प्राप्ति पूर्णतया केंद्र सरकार को जाती है, जबकि जीएसटी स्वयं की प्राप्ति केंद्र और राज्य सरकार

संजय शर्मा लेखक, शिमला से हैं   हमारे बहुतकनीकी व औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में भी वर्षों से पुराने ट्रेड/ व्यवसाय ही पढ़ाए जा रहे हैं तथा प्रायोगिक ‘प्रशिक्षण’ पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता। फलस्वरूप जब विद्यार्थी इन संस्थानों से पढ़कर बाहर आते हैं और किसी उद्यम में नौकरी के लिए आवेदन करते हैं, तो

पूरन सरमा स्वतंत्र लेखक सुख पर व्यंग्य करना खेल नहीं है। हमने लोगों को ज्यादातर दुखों पर ही व्यंग्य करते देखा है। वैसे सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू हैं, परंतु उन्हें नापने का कोई बेरोमीटर अभी तक नहीं बन सका है। ‘आप कितने सुखी हैं’ इसमें भी यह तय करना मुश्किल है

डा. जयंतीलाल भंडारी विख्यात अर्थशास्त्री   निश्चित रूप से भारत जैसे विकासशील देश के लिए सोने में निवेश उत्पादक नहीं है। ऐसे में सोने की मांग घटाने के सार्थक प्रयास किए जाने जरूरी हैं। सोने की मांग घटाने के लिए लोगों के सामाजिक और सांस्कृतिक रुख में बदलाव लाना जरूरी है। यह ध्यान देने योग्य

कर्म सिंह ठाकुर लेखक, सुंदरनगर से हैं   औद्योगिक निवेश से प्रदेश की अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा का संचार होगा, लेकिन निवेशकों को बेहतर सुविधाएं मुहैया करवाना भी पहाड़ जैसी बड़ी जिम्मेदारी से कम नहीं है। निवेशकों को भूमि मुहैया करवाने में धारा 118 तथा अन्य कानूनी औपचारिकताओं से छेड़छाड़ प्रदेश की जनता को नहीं

प्रियंवदा स्वतंत्र लेखिका शिक्षा और शिक्षक कभी सम्मान से देखे जाते थे, परंतु कुछ समय से आधुनिकता के दौर में शिक्षक और शिक्षा दोनों के ही मायने बदल गए हैं। शिक्षा, जो समाज की धुरी है और शिक्षक, जिसे विभिन्न सम्म्मानित संज्ञाओं से अभिभूत किया जाता रहा है, वर्तमान समय में सबसे तिरस्कृत और अपमानित

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री वरिष्ठ स्तंभकार वह पुराने वाले भारत के लिए छटपटा रहे हैं। इसमें कोई बुरी बात नहीं, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह कौन सा पुराना वाला भारत चाहते हैं? कांग्रेस राज वाला भारत या उससे भी पहले वाला अंग्रेजी राज वाला भारत या फिर उससे भी पहले मुगलों के

राकेश शर्मा लेखक, जसवां, कांगड़ा से हैं इसके लिए बदलते हुए हालात के अनुरूप एक नई खेल नीति की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। पिछले लगभग आठ सालों से नई खेल नीति को लेकर अखबारों में दिए जाने वाले बयानों से ज्यादा और कुछ भी नहीं हुआ है। जब भी कोई खिलाड़ी देश