वैचारिक लेख

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री वरिष्ठ स्तंभकार   हो सकता है परिवार में यह फैसला हो ही गया हो कि गद्दी पर प्रियंका की ताजपोशी कर दी जाए, लेकिन यदि ताजपोशी होनी ही है, तो यह काम इस प्रकार किया जाए कि यह बहुत भव्य प्रकरण होना चाहिए। इस प्रकार के पद के दावेदार को सामान्य

बचन सिंह घटवाल लेखक, कांगड़ा से हैं   अनगिनत वजहों का प्रभाव आज घर-घर में पशुपालन की परिपाटी को विलीन करता जा रहा है, जबकि दूध, दही के हर घर की दिनचर्या का प्रथम हिस्सा होते हुए भी व्यक्ति पशुपालन से किनारा करता जा रहा है। जहां तक व्यक्ति का पशुओं से मोहभंग का तर्क

प्रो. एनके सिंह अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार अधिकतर भारतीय राज्य वर्षा के पानी की वजह से बाढ़ग्रस्त हैं, लेकिन फिर भी 165 मिलियन भारतीयों को पीने का स्वच्छ पानी नसीब नहीं है। सरकार ने आगाह किया है कि 2020 तक भारत के 22 शहरों को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ेगा। जबकि मुश्किल से ही

भूपिंदर सिंह राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक जब प्रदेश की संतानें सीता व दीपक होकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा कर भारतीय टीम का मुख्य अंग बन सकती हैं, तो फिर हिमाचल के प्रशिक्षकों को चाहिए कि वे राज्य में ऐसा प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए, जिससे हिमाचल के खिलाडि़यों को राज्य से बाहर पलायन न

पूरन सरमा स्वतंत्र लेखक हर वर्ष साहित्य अकादमी के पुरस्कार घोषित होने के बाद पुरस्कार पाने में विफल साहित्यकारों में कुछेक महीनों के लिए अथवा स्थायी रूप से रुष्टता का भाव पनप जाता है और वे अकादमी की रीति-नीति तथा गतिविधियों में नुक्ताचीनी करके अपनी भड़ास निकालते देखे जा सकते हैं। कुछ ऐसे भी साहित्यकार

पीके खुराना वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार सत्ता में आने पर नेताओं के लिए अपने वादों को भूल जाना इसलिए आसान है, क्योंकि जनता भी तालियां बजाने के बाद सब कुछ भूल जाती है। भीड़ की शक्ति होती है, चुनाव के बाद भीड़ बिखर जाती है और लोग अकेले रह जाते हैं। भीड़ के भाड़ में तो

अनुज कुमार आचार्य लेखक, बैजनाथ से हैं यह समय की मांग है कि कृषि विभाग अपनी योजनाओं एवं कार्यक्रमों का व्यापक प्रचार-प्रसार करे, प्रदर्शनियां लगाए और सीनियर सेकेंडरी स्कूलों एवं सभी महाविद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए एक दिवसीय कार्यशालाओं का आयोजन करे, जहां कृषि एवं बागबानी विभाग के वैज्ञानिक तथा विषयवाद विशेषज्ञ कृषि एवं बागबानी

सुरेश सेठ साहित्यकार लगभग पौन सदी बीत गई। तब रात को बारह बजे लाल किले से एक आवाज गूंजी थी। मेरे देशवासियो! नया दिन शुरू हो गया। इस दिन की नई सवेर में भारत आंखें खोलते हुए अपनी गरीबी, बेकारी और पिछड़ेपन के अंधेरे को विदा करेगा। सबके लिए एक नए सूरज का उदय होगा।

डा. अश्विनी महाजन एसोसिएट प्रो., पीजीडीएवी कालेज, दिल्ली विवि.   देखा गया है कि जिन-जिन देशों ने विदेशी मुद्रा में ऋण लिए, उन देशों में अदायगी का संकट ही नहीं आया, बल्कि महंगाई भी भारी मात्रा में बढ़ी। बड़ी बात यह है कि सरकार का यह निर्णय एक बड़ा बदलाव है, जिसके लिए देश में