वैचारिक लेख

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री वरिष्ठ स्तंभकार वह पुराने वाले भारत के लिए छटपटा रहे हैं। इसमें कोई बुरी बात नहीं, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह कौन सा पुराना वाला भारत चाहते हैं? कांग्रेस राज वाला भारत या उससे भी पहले वाला अंग्रेजी राज वाला भारत या फिर उससे भी पहले मुगलों के

राकेश शर्मा लेखक, जसवां, कांगड़ा से हैं इसके लिए बदलते हुए हालात के अनुरूप एक नई खेल नीति की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। पिछले लगभग आठ सालों से नई खेल नीति को लेकर अखबारों में दिए जाने वाले बयानों से ज्यादा और कुछ भी नहीं हुआ है। जब भी कोई खिलाड़ी देश

अश्वनी भट्ट लेखक, धर्मशाला से हैं शिक्षा ही किसी समाज और देश की जागृति का मूल आधार है। अतः शिक्षा का उद्देश्य साक्षरता के साथ-साथ जीवनोपयोगिता भी होना चाहिए। इसी परिप्रेक्ष्य में 31 मई, 2019 को नई शिक्षा नीति का मसौदा मंत्रालय को सौंप दिया। इस मसौदे पर सबसे पहला विवाद हिंदी भाषा को थोपने

जीवन धीमान नालागढ़ ‘भीड़’ और ‘लाइन’ हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बनती जा रही है। आज आप कहीं भी चले जाएं- अस्पताल, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बैंक, बाजार, सिनेमा, मॉल, सरकारी संस्थानों आदि हर जगह भीड़ का एक सैलाब देखने को मिलता है। हमारा हाल यह है कि हम 3-जी, 4-जी मोबाइल, फेसबुक, व्हाट्सऐप,

प्रो. एनके सिंह अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार   दिन-प्रतिदिन विपक्ष की संख्या में कमी आ रही है। संख्या के साथ-साथ उनके प्रभाव और रौब में भी कमी आ रही है। सिर्फ संख्या में कमी ही नहीं आ रही है, बल्कि बड़े पैमाने पर सीटें व राज्य विपक्षी दल खो रहे हैं। इसके साथ ही उनकी आंतरिक

भूपिंदर सिंह राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक     प्रदेश में इस समय काफी निजी कालेज हैं, उन्हें भी हिमाचल के विद्यार्थी खिलाडि़यों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना चाहिए। प्रदेश के सरकारी कालेजों के प्राचार्यों व शारीरिक शिक्षा के प्राध्यापकों को चाहिए कि वे अपने-अपने कालेजों में खेल प्रशिक्षण सुविधा के अनुसार उस खेल को विकसित करें।

पीके खुराना राजनीतिक रणनीतिकार   26/11 की बदनाम आतंकवादी घटना में जहां 195 निर्दोष लोग मारे गए, वहीं भारतीय सड़कों पर हर रोज औसतन 390 लोग जान गंवाते हैं। यानी सड़कों पर हर रोज दो-दो 26/11 घटते हैं। दुखद सत्य यह भी है कि सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होने वाले आधे से ज्यादा लोग युवा

बचन सिंह घटवाल लेखक, कांगड़ा से हैं   मैं तो विचारों संग अत्याचारों की लड़ाई अपने बुजुर्गों पर मढ़ने वाले उन बेटों पर सवालिया निशान लगाने की हिम्मत कर रहा हूं कि परिस्थितियां जब उन मां-बाप की भी आपके पालन-पोषण के समय प्रतिकूल रही होंगी, तब भी तो उन्होंने बेटे का हाथ नहीं छोड़ा, बल्कि मां-बाप खुद

रामविलास जांगिड़ स्वतंत्र लेखक उसी पुराने बरगद के पेड़ से विक्रम ने बेताल का शव अपने कंधे पर उठाया। शव बोल पड़ा ‘हे विक्रम! इन दिनों भारत भूमि में कुछ अजब-गजब दिखाई पड़ रहा है। चारों ओर बैट और बल्ले की पूजा चल रही है। मेरे मन में भारी उथल-पुथल मची है। आज मैं प्रश्न