( कुलभूषण उपमन्यु लेखक, हिमालय नीति अभियान के अध्यक्ष हैं ) बढ़ती बेरोजगारी में पशुपालन को स्वरोजगार का माध्यम बनाया जा सकता है। इसके लिए 10 पशु तक की छोटी- छोटी डेयरी इकाइयों को ब्याजमुक्त ऋण दे कर प्रोत्साहित करना चाहिए। दूध की पैदावार बढ़ने के साथ- साथ छोटे- छोटे दूध प्रसंस्करण संयंत्र लगाए जाने
डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ( लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं ) बेचारे मनमोहन सिंह अजीब दुविधा में हैं। न तो बैठे रह सकते हैं और न ही शेष कांग्रेसियों के साथ कुएं की ओर जा सकते हैं। प्रधानमंत्री के पद से मुक्त हो जाने के बाद भी उन्हें उन्हीं की संगत में रहना पड़ रहा है,
( कर्म सिंह ठाकुर लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं ) जैविक खेती आधुनिक खेती की तुलना में महंगी है, जिसके कारण किसानों को सरकार से वित्तीय सहायता की आवश्यकता की जरूरत है। सरकार को जैविक खेती को हिमाचल की जमीन पर उतारने के लिए जहां एक विस्तृत नीति तैयार करनी होगी, वहीं बजट में इसके
प्रो. एनके सिंह ( प्रो. एनके सिंह लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं ) एक सामान्य सी अपेक्षा रहती है कि हर संवैधानिक एवं अन्य संस्थान स्वतंत्र व पारदर्शी रूप से कार्य करे। बेशक किसी भी संगठन की ढांचागत व्यवस्था उसमें निष्पक्ष प्रदर्शन की नींव डालती है, लेकिन न्याय के लक्ष्य को
भूपिंदर सिंह ( भूपिंदर सिंह लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं ) प्रदेश में महाविद्यालय स्तर की खेलों के लिए सरकार कोई धन नहीं देती है। ये खेल विद्यार्थियों से मिले खुले शुल्क से ही चलाए जाते हैं, जबकि राज्य के अस्सी प्रतिशत 18 से 25 वर्ष के युवा राज्य के महाविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर
पीके खुराना ( पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं ) न केवल पिछड़ों का, बल्कि इन वोट बैंक माने जाने वाले वर्गों का भी अच्छा खासा हिस्सा उन दलों में बंटता है, जिनको इनके खिलाफ माना जाता रहा है। इनमें से बहुत से मतदाता अपने प्रत्याशी अथवा दल की उपलब्धियों और विकास
( किशन चंद चौधरी लेखक, बड़ोह, कांगड़ा से हैं ) हम युवाओं को मादक पदार्थों से दूर रख पाए, तो वे सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे पाएंगे। यदि युवा नशे का शिकार हो गए, तो व्यक्तिगत नुकसान के अलावा राष्ट्रीय विकास में भी उनका योगदान शून्य हो जाता है। युवाओं को नशे से दूर
( डा. लाखा राम लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं ) ‘ग्लोबल वार्मिंग’ से तात्पर्य पृथ्वी के पर्यावरण के तापमान में लगातार बढ़ोतरी से है। हमारी धरती माता सूर्य की किरणों से उष्मा प्राप्त करती है। गौरतलब है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों को जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता
( वीरेंद्र पैन्यूली लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं ) आज विश्व में नदियों के अविरल प्रवाह की बात, धार्मिक कारणों से ही नहीं, वैज्ञानिक व पर्यावरणीय कारणों से भी की जा रही है। कई बने बांधों को तोड़ने की भी योजनाएं बनाई जा रही हैं। कुछ देशों में बांधों को एक निश्चित समय का आयु प्रमाण