वैचारिक लेख

श्रीपाद धर्माधिकारी लेखक, म.प्र. स्थित मंथन अध्ययन केंद्र के समन्यवयक हैं भाखड़ा न होता तो देश की तस्वीर क्या होती? अकसर पूछा जाने वाला यह सवाल अधिकतर जवाब की तरह पूछा जाता है। दूसरे शब्दों में अकसर यह सवाल बड़े बांधों के पक्ष में एक लाजवाब तर्क के रूप में पेश किया जाता है। भारत

प्रो. एनके सिंह लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं कांग्रेस में एक दोष संगठन को गढ़ने में विफलता और वफादार दरबारियों पर बढ़ती निर्भरता को माना जाएगा। संगठन में आंतरिक लोकतंत्र के लिए यहां न तो वास्तविक चुनाव करवाए जाते हैं और न ही तृणमूल स्तर के कार्यकर्ताओं की इस तरह की

( भावना शर्मा लेखिका, एचपीयू, शिमला में सहायक प्रोफेसर हैं ) जहां तक बाबा साहेब के आंदोलन का प्रश्न है, वह दलितों में चेतना जगाने में सफल रहे। वह दलितों के हिसाब से ही नहीं सोचते थे, बल्कि समाज के सभी शोषित वर्गों के लिए काम करना चाहते थे। उन्होंने सवर्णों में महिलाओं की स्थिति

पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं समस्या यह है कि शालीन विरोध का सरकार पर कोई असर नहीं होता और मंत्रिगण कानून में बदलाव के विपक्ष के किसी सुझाव को मानने के लिए तैयार नहीं होते। परिणामस्वरूप अपनी उपस्थिति जताने तथा जनता और मीडिया का ध्यान आकृष्ट करने के लिए विपक्ष वाकआउट

अदित कंसल लेखक, नालागढ़, सोलन से हैं पुस्तकों, पेंसिल बॉक्स, पानी की बोतल, लंच बॉक्स, प्रोजेक्ट वर्क, स्क्रैप बुक इत्यादि को मिलाकर बस्ते का औसतन भार आठ किलोग्राम तक हो जाता है। प्रातःकालीन व दोपहर को स्कूल बस में चढ़ते-उतरते बच्चों को देखकर प्रतीत होता है कि जैसे ये कुली हों। बस्ते के भार से

  भानु धमीजा सीएमडी, ‘दिव्य हिमाचल’ लेखक, चर्चित किताब ‘व्हाई इंडिया नीड्ज दि प्रेजिडेंशियल सिस्टम’ के रचनाकार हैं वर्ष 1963 में निष्ठावान कांग्रेसी और संविधान सभा के सदस्य केएम मुंशी ने लिखा कि ‘‘अगर मैं फिर से चुन पाऊं तो मैं राष्ट्रपति प्रणाली के पक्ष में वोट दूंगा।’’ पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमण ने 1965 में

( बचन सिंह घटवाल लेखक, मस्सल, कांगड़ा से हैं ) युवाओं के सुंदर भविष्य को नशा दीमक की तरह उन्हें चाट रहा है। धूम्रपान व शराब से लेकर हेरोइन, गांजा व नशीले कैप्सूलों के कारोबार का आज जैसे जाल सा बिछ गया है। नशे का आदी नवयुवक अपने शरीर से ऐसे खेलता नजर आ रहा

डा. भरत झुनझुनवाला ( लेखक, आर्थिक विश्लेषक  एवं टिप्पणीकार हैं ) हमें मुक्त व्यापार के मूल सिद्धांत पर पुनर्विचार करना चाहिए। डब्ल्यूटीओ 1995 में लागू हुआ था। तब सोचा गया था कि यह व्यवस्था सभी के लिए लाभदायक सिद्ध होगी। बीते 20 वर्षों में स्पष्ट हो गया है कि मुक्त व्यापार फेल है, चूंकि इसमें

( अनुज कुमार आचार्य लेखक, बैजनाथ से हैं ) घरेलू पर्यटन में वार्षिक 15.5 फीसदी की दर से तेजी आई है, लेकिन शीर्ष 10 राज्यों में हिमाचल अभी भी बहुत पीछे है। प्रदेश में पर्यटकों की तादाद बढे़, इसके लिए बिलिंग की तर्ज पर अनेक पर्यटक स्थलों को विकसित करने की जरूरत है। साथ में