( हेमांशु मिश्रा लेखक, पालमपुर से अधिवक्ता हैं ) हिमाचल के लोगों को सभी प्रलोभनों से दूर रह कर प्रदेश को सुरक्षित बनाना होगा। ये आतंकी आहटें हमें आज झकझोर रही हैं। समय रहते अगर हम न संभले तो एक दिन देश की सीमाएं सिकुड़ती हुईं हमारे ही दरवाजे तक आ पहुंचेंगी और तब हम
( ललित गर्ग लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं ) हम अपनी स्वछंदता के लिए बच्चे को पैदा होते ही स्वतंत्र बना देना चाहते हैं। उसके अधिकारों और करियर की बात तो है, मगर उसकी भावनात्मक मजबूती की बात कहीं होती ही नहीं। हमारे यहां भी पश्चिमी देशों की भांति इस विचार को किसी आदर्श की तरह
( कुलदीप चंदेल लेखक, बिलासपुर से हैं ) यह समाज जितना मान-सम्मान डाक्टर का करता है, उतना तो डीसी, एसपी या किसी दूसरे बड़े अधिकारी व नेताओं का भी नहीं करता है। फिर उस डाक्टर से बदतमीजी क्यों हो? हां, उन डाक्टरों को भी अपना व्यवहार बदलने की जरूरत है, जो मरीजों के साथ टाल-मटोल
डा. भरत झुनझुनवाला ( लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं ) केंद्र सरकार के खर्चों को पूंजी एवं राजस्व श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। पूंजी खर्चों में राफेल फाइटर प्लेन की खरीद, नई रेलवे लाइनों को बिछाना तथा हाई-वे बनाना आदि शामिल है। इनका विस्तार कम ही हुआ है। सरकार द्वारा जारी मिड टर्म
( डा. बलदेव सिंह नेगी लेखक, एचपीयू में परियोजना अधिकारी हैं ) हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग से जो भी भर्तियां हों, अन्य राज्यों की भांति सौ प्रतिशत और हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग में भी कुछ भर्तियों के आलावा सभी से साक्षात्कार को हटाना होगा। यह प्रदेश के पढे़-लिखे और मेहनती युवाओं के साथ
डा. अश्विनी महाजन लेखक, दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी कालेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं गत वर्ष का बजट लगभग 20 लाख करोड़ रुपए का था। विमुद्रीकरण के बाद सफेद अर्थव्यवस्था को मिल रहे प्रोत्साहन के बाद कहा जा रहा है कि सरकारी राजस्व में खासी वृद्धि होगी। हालांकि चालू वर्ष में विमुद्रीकरण के कारण छोटे-बड़े उद्योगों
कर्म सिंह ठाकुर लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं एक तरफ जहां किसान को कभी सही बीज न मिल पाता, वहीं मेहनत के दम पर किसान जो फसल तैयार करता है, बंदर उसे भी उजाड़ देते हैं। अंततः खामियाजा उस किसान को भुगतना पड़ता है, जो कि तीन-चार महीनों तक कड़कड़ाती ठंड में दिन-रात एक करके
डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ( डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं ) सभी जानते हैं कि जायरा का माफीनामा घाटी की वर्तमान यथार्थ हालात में से निकला है। इस हालात में यह माफीनामा ही निकल सकता है और कुछ नहीं, लेकिन इस माफीनामा को जायरा की कायरता न समझ कर, उसकी बुद्धिमत्ता मानना
( अरुण सिंह लेखक, एचपीसीए से संबद्ध हैं ) जो प्रदेश 40 हजार करोड़ के कर्ज तले दबा है, क्या उस प्रदेश को अपने संसाधन बढ़ाने की ओर ध्यान देना चाहिए या जनता का पैसा ऐसी फिजूलखर्ची में बर्बाद करना चाहिए ? मुख्यमंत्री का यह तुगलकी फरमान चुनाव को ध्यान में रखकर जारी किया गया