वैचारिक लेख

पीके खुराना ( पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं ) नरेंद्र मोदी की अब तक की रणनीति के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हिंदुओं को संतुष्ट करने के बावजूद यहां भी मोदी के विकास के एजेंडे पर बात करते रहना पार्टी की नीति होगी। मोदी ने

( पिंकी रमौल  लेखिक, पावंटा साहिब, सिरमौर से हैं ) उत्तर प्रदेश सरीखे राज्यों में बेरोजगारी भत्ता योजना विफल हो चुकी है, इसलिए प्रदेश सरकार को यह विशेष ध्यान रखना होगा कि योजना का नियमन व क्रियान्वयन बेहतरीन हो। योजना के क्रियान्वयन संबंधी औपचारिकताएं भी तीव्र गति से पूरी हों, ताकि चुनावी आचार संहिता लागू

( स्वामी रामस्वरूप लेखक, योल, कांगड़ा से हैं ) सनातन ग्रंथों में वर्णन करते हुए ऋषियों ने कहा है कि वेदों में वर्णित विशुद्ध राजनीति के कारण समाज में काम वासना युक्त कोई नर-नारी, क्रोध की वृत्ति वाला मनुष्य या कंजूस पृथ्वी पर नहीं था। यह वैदिक विशुद्ध राजनीति के प्रभाव से ही संभव था।

( ललित गर्ग लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं ) केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने गुरुवार को संसद में जिस नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की चर्चा की, उससे इन निराशाभरी स्थितियों में आशा की किरण जगी है। उन्होंने जीवन को उन्नत बनाने, मरीजों के हितों, अस्पतालों की जवाबदेही तय करने और मरीजों की शिकायतों पर गौर

( सुदर्शन कुमार लेखक, कंदरोड़ी, इंदौरा से हैं )  प्रदेश में जो अवैज्ञानिक खुदाई हो रही है, उसने बरसाती नदी-नालों और खड्डों का हुलिया ही बिगाड़कर रख दिया है। यह एक दुखद सच्चाई है कि प्रदेश में खनन व्यवसायियों ने सारे नियमों, कायदे-कानूनों को ताक पर रखकर न सिर्फ अवैध खनन किया, बल्कि पर्यावरण के

( राजीव रंजन तिवारी लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं) देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की सियासत ने जबरदस्त करवट ली है। निश्चित रूप से यहां के लोगों को अब धर्म और सियासत के कॉकटेल का स्वाद मिलेगा। गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के यूपी के मुख्यमंत्री बनते ही यहां एक नई तरह की सियासत

डा. भरत झुनझुनवाला (लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं) राज्यों में जल बंटवारे संबंधी विवाद सुलझ नहीं पा रहे हैं, चूंकि अब तक राज्यों में पानी के न्यायपूर्ण वितरण का कोई भी समुचित सिद्धांत उपलब्ध ही नहीं है। इस समस्या का हल है कि पानी को राज्यों के बीच नीलाम किया जाए। जो राज्य पानी

कर्म सिंह ठाकुर (लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं) निजी क्षेत्र का कर्मचारी आज सरकारी कर्मचारी अपेक्षा बेहतर सेवाएं दे रहा है। क्यों न प्रदेश सरकार ऐसी व्यवस्था करे, जिससे सरकारी कर्मचारी, निजी कर्मचारी की कार्य संस्कृति व पद्धति अपनाने पर मजबूर हो। जब इस कार्य संस्कृति का आगाज होगा, तभी सरकार की सेवाओं की धरातलीय

कुलदीप नैयर (लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं) इस बात को मानने के लिए हमारे समक्ष पर्याप्त सबूत हैं कि जातिगत भेदभाव इस तरह से असामान्य प्रतिभा वाले बच्चों को भी आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर कर रहा है। यह भी कि प्रतिष्ठित संस्थानों तक में जातिगत भेदभाव की धारणाएं इतनी मजबूत हो चुकी हैं