वैचारिक लेख

( रमेश चंद्र लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं ) प्रदेश में सशक्त पुरातत्त्व विभाग के बिना उपेक्षित धरोहरों की सुध कौन लेगा या ले रहा है? कला पोषक मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से अपेक्षा रहेगी कि वह इस संदर्भ में हिमाचल पुरातत्त्व विभाग की स्थापना का मार्ग करेंगे। ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के लिए अतिरिक्त संग्रहालयों की

कुलदीप नैयर लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं हम लंबे वक्त से आपस में मिल-जुलकर रहते आए हैं। हालांकि हिंदुत्व के प्रभाव के बावजूद भारत के लोग इस बात को शिद्दत के साथ महसूस करने लगे हैं कि उन्हें सब मतभेद भुलाकर एक होकर रहना होगा, जैसा कि सदियों पहले के हमारे पूर्वज रहा करते थे। मौजूदा

( अनुज कुमार आचार्य लेखक, बैजनाथ से हैं ) बड़ी तेजी से विकसित हो रहे हमारे कस्बों, शहरों में छोटे उद्यमियों को लघु उद्योग लगाने हेतु प्रोत्साहित किया जाए, ताकि वे अपने यहां पांच-दस बेरोजगार युवाओं को रोजगार प्रदान कर सकें। इसके लिए इन उद्यमियों को रियायती दरों पर ऋण सुविधाएं और टैक्स माफी, बिजली-पानी

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री (लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं) परशुराम की धरती केरल में पिछले अनेक सालों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता साम्यवादी हिंसा के शिकार हो रहे हैं। यह असहिष्णुता केरल की धरती पर देखी जा रही है, जहां से कभी आदि शंकराचार्य शास्त्रार्थ का अस्त्र लेकर निकले थे, लेकिन इन साम्यवादियों के लिए

कर्म सिंह ठाकुर (लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं) सरकार उद्यमियों को जितना मर्जी प्रलोभन दे, लेकिन जब तक नियमों की धरातलीय पहुंच सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक प्रदेश उद्योगों की स्थापना का सुनहरा अध्याय नहीं लिख सकता। इस संदर्भ में यदि प्रदेश सरकार सफलता हासिल कर लेती है, तो प्रदेश की माली हालत तो सुधरेगी

प्रो. एनके सिंह ( प्रो. एनके सिंह लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं ) आज भी कोई ऐसा दल नजर नहीं आता, जो उदारवादी और साफ-सुथरी व्यवस्था की कामना करने वाले लोगों को आकर्षित करे। ये लोग आज भी एक ऐसे दल की तलाश में हैं, जो घोटालों और भ्रष्टाचार से दूर

( जीवन ऋषि लेखक, ‘दिव्य हिमाचल’ से संबद्ध हैं ) सालाना 500 करोड़ रुपए की फसलें बंदर उजाड़ रहे हैं। करीब दस लाख परिवार इनका कहर झेल रहे हैं। लाखों किसान परिवारों के सालाना 200 कार्य दिवस खराब हो जाते हैं। यह कोई मामूली बात नहीं। हिमाचल सरकार को बजट में बंदरों से निपटने के

पीके खुराना ( लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं ) भीड़ की अनुपस्थिति ने अन्ना हजारे को अप्रासंगिक बना दिया है और भीड़ खींचने के प्रयास में एक शहीद की बेटी झूठ बोलने पर आमादा है। एक समाज के रूप में हम सच कहने और सुनने की कूव्वत गंवा चुके हैं, हिम्मत गंवा चुके

( सुरेश शर्मा  लेखक, राजकीय अध्यापक शिक्षा महाविद्यालय में सह प्राध्यापक हैं ) जब तक कलाकार अपने आपको आर्थिक रूप से सबल व सामाजिक रूप से सम्मानित महसूस नहीं करेगा, तब तक कलाओं का सांस्कृतिक संरक्षण संभव नहीं। उनके अच्छे मेहनताने व पारिश्रमिक के लिए बजट में बंदोबस्त होना जरूरी है… कला, कलाकारों व सांस्कृतिक