डा. कुलदीप चंद अग्रिहोत्री

तब उन्होंने ‘ममता बनर्जी’ वाला सूत्र अपनाया। शाहजहां को सीबीआई को नहीं दिया। जो करना हो, कर लो। सारा बंगाल देख रहा है। आखिर ममता बनर्जी शाहजहां को इस सीमा तक जाकर भी क्यों बचाना चाहती हैं? यह प्रश्न शेषनाग की तरह फन तान कर उसके सामने खड़ा है। ममता बनर्जी को किस बात का डर है? दूसरे दिन हाई कोर्ट फिर आदेश देता है। शाहजहां को बंगाल पुलिस की सुरक्षा से निकाल कर सीबीआई को सौंप दिया जाए। लगता है हाईब्रिड तक ममता सरकार के शाहजहां को बचाने के सारे हथियार खत्म हो गए हैं। आखिर शाहजहां सीबीआई की कस्टडी में पहुंच गया है। सुना है इसको लेकर ममता बहुत बड़ी रैली करने जा रही हैं

सुक्खू की कांग्रेस सरकार पहले दिन से ही स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के प्रति निष्ठा रखने वाले विधायकों को हाशिए पर धकेलने के काम में लगी हुई थी। वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बना कर सोनिया गांधी की संतान ने संतुलन साधने की कोशिश तो जरूर की, लेकिन सुक्खू उस संतुलन को धरातल पर नहीं उतार पाए। यह भी कहा जा रहा है कि सुक्खू विरोधी खेमे में चौदह विधायक हैं, लेकिन रणनीति के तहत अभी छह विधायकों को ही सार्वजनिक रूप से राज्यसभा चुनाव के अवसर पर

कोलकाता की नाक के नीचे शाहजहां ने वहां की महिलाओं के लिए जितना भयंकर नर्क तैयार किया हुआ था, वह सरकारी मशीनरी की प्रत्यक्ष-परोक्ष सहायता के बिना संभव नहीं है। ममता बनर्जी ने संदेशखाली की इन महिलाओं को सबक सिखाने की सोची। उन्होंने संदेशखाली में किसी के भी जाने पर पाबंदी लगा दी। धारा 144 लगा दी।

हालात देखकर इस बार चुनाव से पहले ही सोनिया गांधी भी उत्तर प्रदेश छोड़ गई। अमेठी चाहे छोड़ दी हो, लेकिन राहुल गांधी ने जिद नहीं छोड़ी। वे सरकार भी बनाएंगे और किसानों की सभी मांगें भी मान लेंगे। वैसे मांगें तो उन्होंने मान ही ली हैं। अब तो काम का दूसरा हिस्सा किसानों को पूरा करना है कि वे उनकी सरकार बना दें। किसान उस पर विचार करते, उससे पहले ही सोनिया गांधी उत्तर प्रदेश छोड़ कर राजस्थान चली गईं। राहुल गांधी की सरकार बनने में यह एक अपशकुन हो गया लगता है। लगता है जब तक सरकार नहीं बना लेते, तब तक न्याय यात्रा करते रहेंगे। कभी नहीं रुकेंगे। सरकार बनाने में ए

भारत के देसी मुसलमानों को इस्लाम का हाथ पकड़े हुए पांच सौ से भी ज्यादा साल हो गए हैं, लेकिन दिल्ली की मस्जिद पर अभी भी बुखारा वालों का ही कब्जा है। क्या कोई देसी मुसलमान इन पांच सौ साल में भी इतना काबिल नहीं हो पाया कि वह इस मस्जिद का इंतजाम संभाल सके...

मुझे नहीं लगता मल्लिकार्जुन खडग़े की अहमियत पोस्टर से ज्यादा हो। अलबत्ता उनका काम राहुल गांधी की स्वयं को ही नुकसान देने वाली उक्तियों की सकारात्मक व्याख्या कर देने भर तक सीमित हो गया। मोदी के खिलाफ विपक्ष एकजुट नहीं हो पा रहा है। वह बिखर चुका है...

राम का जीवन आदर्श जीवन कहा जा सकता है। वाल्मीकि महाराज स्वयं अपनी राम कथा में बार-बार यह बताते रहते हैं। ऐसे श्री रामचंद्र जी हमारे पूर्वज थे। वे केवल हमारे ही पूर्वज नहीं थे, बल्कि उन्होंने अपने शासन काल में जो राज काज के मानदंड स्थापित किए, वे आज भी दुनिया भर के आदर्श कहे जा सकते हैं। अयोध्या में हजारों साल से हमारे पूर्वज श्री रामचंद्र जी का स्मृति स्थल बना हुआ था। वह स्मृति स्थल सारे देश को प्रे

आश्रम का पूरा वाल्मीकि समाज राम कथा का गायन करता था। यह समाज राम कथा गा-गाकर राममय हो गया था। दूर-दूर से श्रोतागण इस संगीत की धारा का रसास्वादन करने के लिए पहुंचते थे। एक ऐसा वाल्मीकि समाज आकार ग्रहण कर रहा था जिसमें चारों वर्णों की योग्यता समाहित थी। वाल्मीकि समाज और राम कथा एकाकार हो गई थी...

उच्चतम न्यायालय की बैंच इस बात पर विचार करेगी कि क्या यह विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं... अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक बार फिर चर्चा में आ गया है। विश्वविद्यालय की पहचान और इसकी वैधानिक स्थिति को लेकर इस विश्वविद्यालय की चर्चा बार-बार होती ही रहती है। दरअसल यह विश्वविद्यालय अपने जन्म काल से ही चर्चा में है। 1857 की आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों ने अनेक सबक सीखे थे और उसके अनुरूप भारत को लेकर अपनी नीति और रणनीति दोनों को ही बदला। इस लड़ाई में भारत के देसी मुसलमान अंग्रेजों के विपक्ष में खड़े थे। इसलिए अंग्रेजों को ऐसे मुसलमानों की तलाश थी, जो विदेशी मूल के हों और भारत के देसी मुसलमानों को अपने पिछलग्गू बना कर उनका नेतृत्व संभाल सकें। इसके लिए अंग्रेज हुक्मरानों ने अनेक उपाय किए जिनमें से अलीगढ़ में एक शिक्षा संस्थान की स्थापना भी