डा. कुलदीप चंद अग्रिहोत्री

लेकिन असली धमाका तब हुआ जब सोनिया गांधी जी की बेटी प्रियंका गांधी, जो आजकल उत्तर प्रदेश में सोनिया जी की पार्टी को पुनः स्थापित करने में जी-जान से जुटी हुई हैं, ने कहा कि लड़कियों को कुछ भी पहनने का अधिकार है, वे चाहें तो बिकनी भी पहन सकती हैं। उन्हें रोकने का किसी

अंग्रेजों के जाने के अवसर पर देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इसको लेकर कांग्रेस के भीतर राय मांगी गई थी। उस समय पंद्रह प्रदेश कांग्रेस समितियां थीं। उनमें सरदार पटेल को 12 और पंडित जवाहर लाल नेहरू को केवल दो वोट मिले थे। लेकिन प्रधानमंत्री नेहरू ही बने। सरदार पटेल को रास्ते से हट जाने

मुख्यमंत्री के लिए सुनील जाखड़ का भी नाम कांग्रेस के भीतर से प्रमुखता से आने लगा था। मुख्यमंत्री कांग्रेस को ही चुनना था। यदि सोनिया गांधी को लगता था कि सुनील जाखड़ उनको राजनीतिक नफा-नुक़सान के आधार पर अनुकूल नहीं लगते तो उनको नकारने का अधिकार उनके पास था ही नहीं। लेकिन उनको नकारने के

अलबत्ता कांग्रेस के नेताओं पर कोई जि़म्मेदारी नहीं आई क्योंकि वे तो जेल में बंद थे। लेकिन नेता जी के इन प्रयासों से ब्रिटेन सरकार द्वारा तैयार की गई भारतीय सेना में जरूर देश की आज़ादी को लेकर समर्थन की आवाज़ें आने लगी थीं। जल सेना ने तो बाक़ायदा विद्रोह का बिगुल ही बजा दिया

पंथ का मोटे तौर पर अभिप्राय उन लोगों से है जो दशगुरु परंपरा के गुरुओं में विश्वास करते हैं और उनके दिखाए हुए रास्ते पर चलने का प्रयास करते हैं। इसलिए पंथ में विश्वास करना और अकाली दल का सदस्य होना दोनों अलग-अलग बातें हैं। यदि दोनों को एक ही मान लिया जाए, फिर तो

मैं यह मानने को तैयार नहीं हूं कि पुलिस का कोई बड़े से बड़ा अधिकारी भी अपने स्तर पर इस प्रकार की योजना बना सकता है। हां, यदि कोई पुलिस अधिकारी व्यक्तिगत तौर पर षड्यंत्रकारियों के साथ मिल गया हो तो अलग बात है। अलबत्ता तब तो स्थिति और भी भयानक है। पंजाब सरकार को

नवाब चीखा, ये बच्चे मुसलमान होना स्वीकार नहीं करते। इन्हें जीवित ही दीवार में चिनवा दिया जाए ताकि तड़प-तड़प कर इनके प्राण निकलें। दीवार बनती गई और दोनों भाई सिर ताने खड़े रहे। आसपास की भीड़ आश्चर्यचकित थी। उन्हें प्रणाम कर रही थी। फिर वे दिखाई देना बंद हो गए। दीवार उनके सिरों से ऊपर

मैकियावली राजनीति में भी उपयोगितावाद के हामी हैं। राजनीति में जब किसी की उपयोगिता समाप्त हो जाए तो या तो उसे कूड़े के ढेर पर फेंक दो या फिर हाथ-पैर बांधकर समुद्र में फेंक दो। कहीं ऐसा तो नहीं कि सोनिया परिवार के लिए हरीश रावत की उपयोगिता समाप्त हो गई हो, इसलिए उन्होंने उसे

आंदोलन के अनेक नेता जो पहले राजनीति से दूर रहने की क़समें खाते थे, अब आंदोलन के बाद ख़ुद राजनीति में आने के लिए बेसब्र दिखाई दे रहे हैं। अंबाला के गुरनाम सिंह चढूनी ने तो पंजाब मिशन के नाम से राजनीतिक दल खड़ा करने और उसकी ओर से पंजाब विधानसभा में प्रत्याशी उतारने का