उमानाथ मंदिर

खुदाई गहरी होती गई और शिवलिंग का धरती के अंदर आकार बढ़ता गया। पचास फुट से अधिक की खुदाई हुई मगर शिवलिंग का अंतिम छोर पता नहीं चल सका। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि तब खुदाई में लगे लोगों के स्वप्न में आकर भगवान शिव ने स्वयं कहा कि वे आदि उमानाथ हैं…

उमानाथ मंदिर हजारों वर्ष पुराने इतिहास का साक्षी है। वैसे तो मंदिर की स्थापना को लेकर साक्ष्य कम और जनश्रुतियां ज्यादा प्रचलित हैं। एक किंवदंति के अनुसार त्रेतायुग में भगवान  श्रीराम अयोध्या से जनकपुर के लिए यात्रा कर रहे थे। उत्तरवाहिणी गंगा के सुरम्य तट पर रुककर श्रीराम ने भगवान शिव की उपासना की थी और तब से ही यहां मंदिर की स्थापना की गई। एक दूसरी किंवदंति के अनुसार सैकड़ों वर्ष पूर्व मंदिर में विराजमान शिवलिंग को उखाडकर उसे मंदिर के मध्य स्थापित करने का निर्णय हुआ। शिवलिंग के किनारे खुदाई शुरू हुई ताकि शिवलिंग को निकालकर दूसरी जगह स्थापित किया जा सके। खुदाई गहरी होती गई और शिवलिंग का धरती के अंदर आकार बढ़ता गया। पचास फुट से अधिक की खुदाई हुई मगर शिवलिंग का अंतिम छोर पता नहीं चल सका। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि तब खुदाई में लगे लोगों के स्वप्न में आकर भगवान शिव ने स्वयं कहा कि वे आदि उमानाथ हैं। उसके बाद लोगों ने खुदाई बंद कर दी। इसी कारण महादेव के इस स्वरूप को अंकुरित महादेव भी कहा जाता है। प्राचीन स्थापत्य कला का सुंदर नमूना उमानाथ मंदिर की पहचान बिहार के काशी के तौर पर भी है। उत्तरायण गंगा के तट पर देश में गिने चुने ही शिव मंदिर हैं। उमानाथ मंदिर उनमें से एक है। माना जाता है कि गोमुख से निकलने के बाद गंगा नदी पूरे देश में कुछ ही स्थलों पर उत्तरायण यानी उत्तरागामी है। इनमें बनारस, उमानाथ और सुल्तानगंज शामिल हैं। इसी कारण इसे बिहार की काशी भी कहा जाता है।