आस्था

संकष्टी चतुर्थी माघ मास में कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी को कहा जाता है। इस चतुर्थी को माघी चतुर्थी या तिल चौथ भी कहा जाता है। बारह माह के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। इस दिन भगवान श्रीगणेश की आराधना सुख-सौभाग्य आदि प्रदान करने वाली कही गई है। संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से घर-परिवार में आ रही विपदाएं दूर होती हैं। कई दिनों से रुके हुए मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं तथा भगवान श्रीगणेश असीम सुखों को प्रदान करते हैं। इस दिन गणेश कथा सुनने अथवा पढऩे का विशेष महत्व माना गया है। व्रत करने वालों को इस दिन यह कथा अवश्य पढऩी चाहिए। तभी व्रत का संपूर्ण फल मिलता है।

-गतांक से आगे… नन्दी ग्राम पवनसुत आये, भाई भरत को वचन सुनाए, लंका से आए हैं राम।। पतितपावन सीताराम।। कहो विप्र तुम कहाँ से आये, भाई भरत को गले लगाए अवधपुरी रघुनन्दन आये, मन्दिर मन्दिर मंगल छाये, माताओं को किया प्रणाम।। पतितपावन सीताराम।। भाई भरत को गले लगाया, सिंहासन बैठे रघुराया, जग ने कहा ‘हैं

गतांक से आगे… 360 डिग्री का अवलोकन इस चोटी से आसानी से दिख जाता है। इस चोटी को समुद्रतल से लगभग 9,545 मीटर की ऊंचाई पर स्थित माना जाता है। यहां से आप मशोबरा, रिज द माल, कुमार हाउस, महिंद्रा मशोबरा, शिमला दूरदर्शन भी देख सकते हैं। श्रीखंड कुल्लू, सिरमौर की चूड़धार, किन्नौर के किन्नर

उत्तराखंड की सुंदर घाटियों में पांच केदार स्थित हैं। जिनमें से रुद्रनाथ, कल्पेश्वर चमोली जिले में और केदारनाथ, तुंगनाथ, मध्यमहेश्वर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। ये सभी मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं और पांडवों द्वारा स्थापित हैं। आइए इन्हीं पांच केदारों में से एक केदार भगवान मध्यमहेश्वर या मद्महेश्वर के बारे में जानते हैं।

शहर के बीचोंबीच सुनारों की गली में मौजूद ये द्वारिकाधीश मंदिर करीब 300 साल पुराना है। इस मंदिर में जो भगवान द्वारिकाधीश की मूर्ति स्थापित है, वो बड़ी चमत्कारी मानी जाती है। द्वारिकाधीश के मुख्य मंदिर की शैली जैसे बने इस मंदिर में साधुओं की जमात से ली गई प्रतिमा शहर के पालीवाल मारवाड़ी ब्राह्मण

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… किंतु उनके अनुयायी उनके उपदेशों को तो किनारे रख देते हैं और केवल उनके नाम के लिए झगड़ा करने लगते हैं। यही संसार का अब तक का इतिहास बताता है। मेरा इस बात पर विशेष आग्रह नहीं कि लोग उनका नाम स्वीकार करते अथवा नहीं किंतु मैं उनके उपदेशों, उनके

ओशो ऐसा कहा जाता है कि एक बार सूफी फकीर फरीद बनारस के निकट होकर गुजर रहे थे, जहां कबीर रहते थे। फरीद के शिष्यों ने कहा, यदि आप कबीर से भेंट करें तो आप दोनों का मिलना हम सभी के लिए अद्भुत रोमांचकारी, आनंदमय और आशीर्वाद स्वरूप होगा। ऐसा ही कबीर और उनके शिष्यों

मीठी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय।। मीठी वाणी बोलने वाला सदा प्रसन्न रहता है। शांति के भाव उसके चेहरे से प्रकट होते हैं। ऐसा व्यक्ति अधिक कर्मशील होता है। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण जी विपरीत परिस्थितियों में भी प्रसन्न मुद्रा में रहते थे और वे सदा

हर व्यक्ति अपनी स्वतंत्र ईकाई है। उसे अपनी समस्याएं सुलझाने और प्रगति की व्यवस्था बनाने का ताना बाना स्वयं ही बुनना पड़ता है। कठिनाइयां आती और चली जाती है। सफलता मिलती और प्रसन्नता की झलक झांकी कर देने के उपरांत स्मृतियां छोड़ जाती है। दिन और रात की तरह यह चक्र चलता ही रहता है।