आस्था

ढोलरू गायन हिमाचल प्रदेश की समृद्ध देशज संचार परंपरा का एक अभिन्न अंग है। चैत्र महीने में ढोलरू लोकगीतों के माध्यम से घर-घर तक मंगल का संदेश पहुंचाते हैं। हिमाचल प्रदेश और जम्मू क्षेत्र के कुछ इलाकों तक विस्तारित यह परंपरा इन दोनों राज्यों के आपसी सांस्कृतिक सम्बन्धों को भी सुदृढ़ बनाती है। लोकगीतों की सरल, सहज एवं सरस अभिव्यक्ति हेतु ढोलरू गायन को विशेष ख्याति प्राप्त रही है। वहीं, धर्म और अध्यात्म से सम्बन्धित मूल्यों की शिक्षा-दीक्षा की दृष्टि से भी ढोलरू गायन की अपनी विशिष्ट क्षमता रही है। सहज रूप से संदेश प्रदान करने की इनमें अनूठी क्षमता है। समाज को अपने साथ जोड़ते

पापमोचनी एकादशी पुराणों के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। पापमोचनी एकादशी का अर्थ है ‘पाप को नष्ट करने वाली एकादशी’...

अध्यात्म साधना को ज्ञान और विज्ञान इन दो तत्त्वों में विभाजित कर सकते हैं। ज्ञान पक्ष वह है जो मनुष्य और पशु के बीच का अंतर प्रस्तुत करता है और प्रेरणा देता है कि इस सुरदुर्लभ अवसर का उपयोग उसी प्रयोजन के लिए किया जाना चाहिए, जिसके लिए वह मिला है। इसके लिए किस तरह सोचना और किस तरह रीति-नीति अपनाना उचित है, इसे हृदयंगम कराना ज्ञानपक्ष का काम है। स्वाध्याय, सत्संग, कथा, प्रवचन, पाठ, मनन, चिंतन जैसी प्रक्रियाओं का सहारा इसी प्रयोजन के लिए लिया जाना चाहिए। इसी पक्ष का दूसरा चरण यह है कि धर्म, सदाचार, संयम, कत्र्तव्यपालन के उच्चसिद्धांतों को अपनाकर

मानो चेतना के सागर में हम सब घड़े है मिट्टी के। अब घड़े तो अलग होंगे ही, परंतु घड़े के जो भीतर है ये अलग नहीं है। अत: पूर्ण सद्गुरु द्वारा जो ऊपर वर्णन किए रहस्य को जान लेता है वह आसानी से अनुभव करने लग जाता है कि घड़े चाहे कितने ही अलग हों, घड़े के भीतर जो पानी है ये एक ही है। ऐसा व्यक्ति फिर काम चलाऊ सहानुभूति से पार हो जाता है और ये फिर समानुभूति में प्रवेश कर जाता है और समानुभूति वो तत्त्व है जहां एक ही शेष रह जाता है। यहां दूसरा नहीं है। इसे अद्वैत कहें, ब्रह्म कहें, परमात्मा कहें या फिर कोई और ये जो मन और चित्त के पार परम अनुभूति है ये अध्यात्म की श्रेष्ठतम ऊंचाई है। अत: केवल आध्या

हम यह तो जानते हैं कि क्या सही है और क्या हमारे लिए अच्छा है। किंतु हमें प्राय: ऐसा लगता है कि हमारे अंदर उसको क्रियान्वित करने की इच्छा शक्ति नहीं है। अब सोचो यदि आपके अंदर इच्छा शक्ति नहीं होती, तो आप यह लेख पढ़ भी नहीं रहे होते कि इच्छा शक्ति कैसे बढ़ाई जा सकती है। आपके द्वारा अपने प्रत्येक विचार के अनुसार किया गया कार्य यह दर्शाता है कि आपके भीतर कुछ तो इच्छा शक्ति है। उदाहरण के लिए मान लीजिए आपके अंदर एक विचार उठा कि मैं उठ कर दूसरे कमरे में जाऊं और आप ऐसा कर देते हो। यह स्पष्टत: इच्छा शक्ति को ही दर्शाता है। इच्छा शक्ति बिलकुल न हो, ऐसा होना असं

भारत एक ऐसा देश है, जहां पर हर स्थान पर कई पवित्र और फेमस मंदिर मिल जाएंगे। इसलिए भारत को कई लोग मंदिरों के घर के नाम से भी जानते हैं। मंदिरों के अलावा कई प्रसिद्ध प्राचीन और पवित्र शिव मंदिर भी हैं।

मार्कंडेय एक ऐसे ऋषि हुए, जिन्होंने पीपल के एक पत्ते पर बैठकर 7 प्रलय देखे। ऐसे धार्मिक स्थल आस्था के केंद्र तो होते ही हैं साथ ही यहां आकर एक अलग प्रकार के अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है। धार्मिक पर्यटन के तौर पर इस स्थल को विकसित करने की आपार संभावनाएं हैं...

आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित श्रीकालहस्ती मंदिर, दक्षिण भारत के सबसे प्रतिष्ठित शिव मंदिरों में से एक है। इसके अत्यधिक आध्यात्मिक महत्त्व, अद्वितीय अनुष्ठानों और मोक्ष से जुड़ाव के कारण इसे

ड्राई आई क्या है? यह समस्या तब होती है जब आपकी आंखें नम रहने के लिए पर्याप्त आंसू नहीं बना पाती हैं या जब आपके आंसू पर्याप्त रूप से आंखों को नमी नहीं दे पाते हैं। ऐसे में आपकी आंखें असहज महसूस कर सकती हैं...