धर्मग्रंथ हमेशा से भारतीय समाज के मार्गदर्शक रहे हैं। श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथ जीवन के गूढ़ रहस्यों को सरल भाषा में समझाते हैं। ये ग्रंथ हमें धर्म, आत्मानुशासन, कत्र्तव्यबोध और सामाजिक मर्यादाओं की शिक्षा देते हैं। इनके माध्यम से पाठक को नैतिकता, संयम और सही निर्णय लेने की प्रेरणा मिलती है। आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में मानसिक शांति और संतुलन बनाए रखने के लिए इन ग्रंथों का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है। श्रीमद्भगवद्गीता को विश्वभर में जीवन प्रबंधन और संवाद का सर्वोच्च ग्रंथ माना जाता है। महाभारत के युद्धभूमि में अर्जुन को श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस काल में थे। रामायण भारतीय संस्कृति की रीढ़ है। इसमें भगवान श्रीराम के जीवन के माध्यम से मर्यादा, त्याग, समर्पण, कत्र्तव्य और परिवार के प्रति उत्तरदायित्व का अद्वितीय संदेश मिलता है। राम एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति
गुरु पूर्णिमा/व्यास पूर्णिमा/मुडिय़ा पूनों आषाढ़ मास की पूर्णिमा को कहा जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की लाखों श्रद्धालु परिक्रमा देते हैं। बंगाली साधु सिर मुंडाकर परिक्रमा करते हैं क्योंकि आज के दिन सनातन गोस्वामी का तिरोभाव हुआ था। ब्रज में इसे ‘मुडिय़ा पूनों’ कहा जाता है। आज का दिन गुरु-पूजा का दिन होता है।
मन जीव का सब से महत्त्वपूर्ण और सूक्ष्म उपकरण है और इसका कार्य है सोचना। ये संकल्प भी करता है और विकल्प को भी जन्म देता है। बुद्धि मन के ही संकल्प-विकल्प की समीक्षा करती है और जीव को कर्म करने का निर्णय करने में सहायता प्रदान करती है। जिन महात्माओं का विश्वास है कि शरीर दो प्रकार के होते हैं। स्थूल (जड़) और सूक्ष्म (चेतन), वे फरमाते हैं कि मन का स्थान इन दोनों के बीच है और इसका झुकाव आमतौर पर जड़ शरीर की तरफ रहता है। मगर सद्गुरु की कृपा हो जाती है तो यही मन चेतन के साथ हो लेता है। अत: हजारों वर्षों से धार्मिक लोग मनुष्य को समझाते चले आ रहे हैं कि ‘मन’ चंचल है और इसकी (मन की) चंचलता बहुत बुरी बात है। नि:संदेह मन चंचल है, लेकिन अगर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो मन की चंचलता कोई बुरी बात नहीं है, क्योंकि मन की चंचलता इसके जीवित होने का प्रमाण है। अब जहां जीवन है, वहां ‘गति’ है और जहां जीवन नहीं है वहीं ‘जड़ता’ है, वहां ग
जब आदियोगी ने अपना ज्ञान अपने पहले सात शिष्यों के साथ साझा किया तब उन्होंने वे 112 तरीके खोजे और शिष्यों को समझाए, जिनसे कोई मनुष्य अपने अंतिम स्वभाव तक पहुंच सके यानी आत्मज्ञान पा सके। जब उन्हें लगा कि वे शिष्य, सप्तर्षि इन 112 तरीकों को समझने में समय लेंगे तो उन्होंने उन विधियों को 16-16 तरीकों के 7 भागों में
ईश्वर को अपने आप से अलग देखना पहला कदम है। समर्पण के लिए भी दो की आवश्यकता होती है भगवान और भक्त। यह मानो कि ईश्वर ही सब कुछ है और तुम कुछ भी नहीं हो। ईश्वर सर्वशक्तिमान और सर्वोपरि है और मैं कुछ भी नहीं हूं। इस कुछ नहीं होने के भाव से ही एक हो सकते हैं। तब यह अनुभूति होती है कि सब कुछ तुम ही हो, जो भी सब मैं हूं, वह भी तुम ही हो। यह शरीर और पूरा ब्रह्मांड आपका ही है। यह मन भी आपका ही है। यह मन और इसके सारे द्वंद्व भी आपके ही हैं। यह मन और इसकी सुंदरता भी आपकी ही है। इस तरह का समर्पण भी एक प्रक्रिया है जो तुम्हें पुन: स्वयं में स्थापित कर सक
जिसके निकट इंद्रिय सुख ही जीवन का एकमात्र सुख है, ऐसे लोगों के लिए भारत सर्वदा ही एक बड़े मरुस्थल के समान प्रतीत होगा। जहां की आंधी का एक झोंका ही उनके कल्पित जीवन विकास की धारणा के लिए मानों मृत्यु स्वरूप है। किंतु जिन व्यक्तियों की जीवन तृष्णा इंद्रिय जगत में सुदूर स्थित, अमृत सरिता के दिव्य सलिल पान से संपूर्णत: बुझ चुकी है। जिनकी आत्मा ने सर्प के त्याग की तरह काम, कांचन और यश स्पृहा के त्रिविध बंधनों को दूर फेंक दिया है जिनका मन शांति की अत्युच्च शिखा पर पहुंच गया है और जो वहां से इंद्रियभोगों में आबद्ध तथा नीचजनोचित कलह, विषाद और द्वेष-हिंसा में रत व्यक्तियों को प्रेम तथा सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखते हैं जिनके संचित पूर्व सत्कर्म के प्रभाव से आंखों के सामने से अज्ञान का आवरण लुप्त हो गया है, जि
राम नगरी अयोध्या का नाम सुनते ही हर किसी के मन-मस्तिष्क में राम की छवि निखर आती है। भगवान राम की स्मृतियों को समेटे अयोध्या में ऐसी कई जगह हैं, जो आपको भगवान राम के मौजूद होने का एहसास दिला देंगी। लेकिन अयोध्या में गुप्तार घाट की अलग ही पहचान है। क्या गुप्तार घाट की
महाराष्ट्र के सबसे आध्यात्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण आयोजनों में से एक है पंढरपुर की सदियों पुरानी तीर्थयात्रा। पंढरपुर यात्रा का हिंदुओं में काफी महत्त्व है। पंढरपुर वारी सिर्फ एक तीर्थयात्रा नहीं है यह समानता, प्रतिबद्धता और सौहार्द का जीवंत उत्सव है। यह सभी क्षेत्रों के हजारों अनुयायियों को एकजुट होकर चलने, भगवान के नाम का
* नींबू और शहद का मिश्रण त्वचा के काले धब्बों को दूर करने और चेहरे की चमक बढ़ाने में मददगार है। * दो चम्मच दही में एक चम्मच हल्दी पाउडर डालकर मिक्स कर लें। इस पैक को चेहरे पर लगाएं और सूख जाने के बाद धो लें। इससे मुंहासे और ऑयली स्किन से छुटकारा मिलता