कविताएं

बेटियां

बेटियों के हिस्से में क्यों…

आती हैं मजबूरियां… चलते चलते

राह में क्यों आती है दुश्वारियां

पग-पग पर जिम्मेदारियों,

के बोझ तले दबे

बचपन, यौवन और बुढ़ापा

जीवन सारा

दो नावों में सवार

हिचकोले खाती

बेटियां

निभा जाती हैं रिश्तों को

जैसे कांटों में फूलों की तरह…

सागर में लहरों की तरह…

हंसती, मुस्कराती, जगमगाती…

और फिर हलाहल पीती

जीवन मंथन से चुपचाप सी…

महादेव सा जी जाती हैं

बेटियां…।

दीवारें

मन को बहलाती है दीवारें,

दीवारों को सजाते रहना चाहिए।

बहुत कुछ कहती हैं दीवारें,

दीवारों से बतियाते रहना चाहिए।

पर्दा भी करती हैं दीवारें,

दीवारों को उठाते रहना चाहिए।

मजबूती से थामे रहती हैं रिश्तों को,

हरदम इन्हें बनाते रहना चाहिए।

नफरत से कहीं खड़ी हो जाएं दीवारें,

तो उन्हें गिराते रहना चाहिए।

धूप, आंधी, बारिश से बचाती हैं दीवारें,

ऐसी दीवारों को बचाते रहना चाहिए।

सिर पर छत करती हैं दीवारें,

दीवारों को संभालते रहना चाहिए।

मोहब्बत में रंग भरती हैं दीवारें,

जिंदगी की नींव पर इन्हें टिकाते रहना चाहिए।