राजेंद्र राजन कहानी, उपन्यास व संस्मरण लेखन में सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनका नवीनतम प्रयास ‘जश्न-ए-बहारां’ एक लघु उपन्यास है। इसकी विशेषताओं की फेहरिस्त पाठक को सहज ही बांध लेती है, जैसे कि इस पुस्तक की खिलखिलाती भाषा, जीवन्त कथोपकथन, कथा संरचना के मनोवैज्ञानिक पहलु, समकालीन परिदृश्य, और इसकी विषय वस्तु, जोकि स्मृति और शेष के प्रेम प्रसंग, उनके अनुराग तथा आपसी आकर्षण के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण के थीम को उपन्यास में बड़े ही खूबसूरत ढंग से यूं पिरोती है ठीक ज्यों राजेंद्र राजन ने हिंदी में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग निर्बाध रूप से किया है। अंग्रेजी के उपन्यासों में कई बार फ्रेंच भाषा का उपयोग होता रहा है। ऐसा करने के फलस्वरूप शेष और स्मृति की बातचीत यथार्थ से निकटता का एहसास देती है। उपन्यास के प्रारंभ में
जयशंकर प्रसाद (जन्म : 30 जनवरी 1889, मृत्यु : 15 नवंबर 1937) हिंदी नाट्य जगत और कथा साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। कथा साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी देन महत्त्वपूर्ण है। भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद अनुपम थे। जिस समय खड़ी बोली और आधुनिक हिंदी साहित्य किशोरावस्था में पदार्पण कर रहे थे, उस समय जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी में हुआ था। कवि के पितामह शिव रत्न साहु वाराणसी के अत्यंत प्रतिष्ठित नागरिक थे। उनकी दानशीलता सर्वविदित थी और उनके यहां विद्वानों-कलाकारों का समादर होता था। जयशंकर प्रसाद के पिता देवीप्रसाद साहु ने भी अपने पूर्व
कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक...
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हिमाचल प्रदेश में वूलेन खादी को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देकर हिमाचल को वूलेन खादी उत्पादों का हब बनाना चाहते थे, ताकि हिमाचली विशुद्ध ऊनी उत्पादों को एक ब्रांड के रूप में उभारा जा सके
बहुत कम ऐसे होंगे जिन्हें कलम भांजने का हुनर प्राप्त होता है। जिनमें होता है उनमें से कुछ ही ऐसे भाग्यशाली होते हैं जिन्हें कलम से शोहरत मिलती है और उनमें से भी गिने-चुने ही होते हैं, जो लेखन से शोहरत हासिल
कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं
साहित्य के शोधकर्ताओं के लिए प्राइमरी तथा सेकंडरी स्त्रोतों की आवश्यकता रहती है। मूर्धन्य साहित्यकार सुदर्शन वशिष्ठ पर डा. आशा कुमारी की 2024 में छपी पुस्तक ‘संवेदना के कथाकार’ हर शोधकर्ता के लिए एक आकर्षण साबित होगी।
लघुकथाओं को टी-20 क्रिकेट मैच मान लिया जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। लघुकथाएं अपने लक्ष्य की ओर सरपट दौड़ती नजर आती हैं। हिमाचली साहित्यकार शेर सिंह का पहला लघुकथा संग्रह ‘समय चक्र’ इस बात की गवाही भरता है।