खाने में खोट

( सुनीता पटियाल, हमीरपुर )

जब-जब भारत में आतंक ने पैर जमाने की कोशिश की, तब-तब हमारे जांबाज जवानों ने अपने पराक्रम और शूरवीरता का परिचय देकर दुश्मन को मिट्टी में मिलाया। हमारे वीर सिपाही तो तूफानों में भी दीया जलाने की हिम्मत रखते हैं, लेकिन अगर सरहद पर लड़ने वाला जवान ही भूखा हो तो इस अन्याय की कैसे आलोचना करें? सीमा सुरक्षा बल की 29वीं बटालियन के एक जवान तेज बहादुर यादव ने अपने भोजन, जो कि उनको भारत सरकार की तरफ से मिलता है, का वीडियो जब सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, तो सभी चकित रह गए। इस वीडियो के जरिए जो अधिकारी सवालों के घेरे में आए हैं, क्या वास्तव में वे ऐसे कृत्यों में संलिप्त हैं? गृह मंत्रालय हर सेक्टर को पर्याप्त बजट देता है, फिर क्या कारण है कि एक सैनिक को ऐसा खाना मिल रहा है? इस तथ्य की पुष्टि होनी चाहिए।  आज जवान का खाना और किसान की हालत मिलती-जुलती ही है। सरहद पर जवान भूखा है और गांव-देहात में किसान। बावजूद इसके ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा कहां तक सार्थक होगा? जवान और किसान को बुनियादी सुविधाएं क्यों नहीं मिलतीं? एक जवान को सरकार द्वारा निर्धारित मात्रा में आटा, दाल, सब्जी, नमक, चीनी, पनीर, ड्राई फ्रूट वगैरह क्यों उपलब्ध नहीं करवाए जा रहे? आखिर भूखे पेट कैसे होगी देश की हिफाजत? ग्लेशियर की हाड़ कंपा देने वाली ठंड के बावजूद वीर सैनिक हनुमंथप्पा दस फुट गहरी बर्फ की तहों में दबे रहने के बावजूद अंतिम सांसों तक जिंदगी और मौत के बीच झूलता रहा, तो भी उसका हौसला नहीं टूटा। ऐसे बुलंद हौसला रखने वाले जवान आज भूखे क्यों हैं? हम अपने घरों में चैन की नींद सो पाते हैं, इसलिए कि सीमा पर कोई बीएसएफ का जवान खड़ा है। ऐसे हालात में क्या किसान और जवान के हालात सुधरेंगे?