खेल प्रतिभाओं की हो कद्र

( होशियार सिंह, नूरपुर, कांगड़ा )

अगर दो बार राज्य स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में प्रिया स्वर्ण पदक जीतती है, तो फिर भी उसे राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की तैयारी के लिए सरकारी सहयोग क्यों नहीं मिलता? अगर प्रिया अपनी मेहनत के बलबूते राज्य स्तर पर दो बार स्वर्ण पदक जीत सकती है, तो तीन बार राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने पर उनसे कुछ पदकों की अपेक्षा तो की जा सकती थी। एक तो पहले ही राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में हिमाचल का कोई संतोषजनक स्थान नहीं है, ऊपर से खेल संघों या राज्य युवा सेवाएं एवं खेल विभाग का ऐसा संवेदनहीन रवैया। आखिर किसी को यहां प्रतिभा की कद्र क्यों नहीं है? वहीं प्रदेश में प्रशिक्षण के लिए मैदान या ट्रैक का अभाव भी किसी से छिपा नहीं है। इसी वजह से खेलों या फौज में भर्ती की तैयारी में जुटे युवाओं को अकसर सड़कों पर दौड़ते देखा जा सकता है। कहीं कोई खेल मैदान बनने की बात चलती भी है, तो सियासत वहां भी अपने रंग जमाने का कोई अवसर हाथों से जाने नहीं देती। इस तरह से हम खेलों को कौन से मुकाम पर ले जाना चाहते हैं। अगर हम खेलों में प्रदेश के भविष्य को सम्मानजनक स्थान पर देखना चाहते हैं, तो यह संवेदनहीन रवैया छोड़ना होगा। शासन-प्रशासन को इस दिशा में सर्वप्रथम हर क्षेत्र की जरूरतों को समझते हुए खेल मैदान विकसित करने होंगे। इसके बाद स्कूल-कालेज के स्तर से हर खेल से संबंधित कुछ प्रतिभाशाली खिलाडि़यों का चयन करके उनके प्रशिक्षण का सही बंदोबस्त करना चाहिए। इन खिलाडि़यों के लिए खेल सामग्री, खुराक या अन्य आवश्यक सुविधाओं की भी पुख्ता व्यवस्था करनी होगी, तभी प्रदेश में खेलों की दशा और दिशा बदलने की उम्मीद की जा सकती है।