चुनावी मौसम

(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर)

अति निर्धन, अति दीन हैं, फटी हुई है जेब,

रोटी त्यागी, खा रहे, काजू-किशमिश, सेब।

हाथी टिकटें बांटता, मांगे पांच करोड़,

लेनी है तो बात कर, क्यों पड़ रही मरोड़।

सर्दी से नस-नस जमी, गर्मी सा एहसास,

टर्र-टर्र करने लगे मेंढक, कुछ तो है खास।

गर्मी नेता को चढ़ी, हाड़ कंपाती ठंड,

सजा अखाड़ा वोट का, पेल रहे वो दंड।

साइकिल की फोटो नहीं, कर सकते पहचान,

मर्सिडीज में उड़ रहे, नहीं साइकिल ध्यान।

पाक-साफ दामन बता, किस चिडि़या का नाम,

काला दामन है मगर, दुनिया करे सलाम।

नेता जी का जन्मदिन, सतरंगी हैं ठाठ,

झुग्गी, रेहड़ी, कृषक की, खड़ी हुई नित खाट।

फांद रहे तालाब नित, मेंढक करते शोर,

सिंहासन को लपकने, भटक रहे चहुंओर।