दशरथ ले लें संन्यास

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

सत्ता का ऐसा नशा, झूम रहा है चूर,

घर में ही कुरुक्षेत्र है, कितना हुआ गुरूर।

काला चश्मा चढ़ाकर, चला रहा तलवार,

चाचू, बूढे़ बाप पर, कस कर किए प्रहार।

बापू से हैं दूरियां, सगे बने गोपाल,

पाला-पोसा क्या हुआ, फेंक दिए शिवपाल।

अपने खासमखास पर, नित दिन करता वार,

घर वालों पर ही उठी, देखो आज टीपू तलवार।

कहां मान्यताएं लुटीं, कहां मरे संस्कार,

क्यों कर दी नीलाम सब, कैसा यह व्यवहार?

माहिर है शतरंज में, रामू चलता चाल,

अज्जू, अमरू सख्त जी, तड़प रहे बदहाल।

सारे जग में छा गया, बाप-पुत्र संग्राम,

सबने जोर लगा लिया, सब हुए नाकाम।

दशरथ अब बूढ़े हुए, ले लें खुद संन्यास,

जबरन देंगे राम जी, वरना फिर वनवास।