दूर हुआ क्लेश

(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर)

साइकिल की चाबी मिली, नाच रहे अखिलेश,

छीना-झपटी खत्म हुई अब, दूर हुआ क्लेश।

साइकिल औड्डी बन गई, लगे सुनहरे पंख,

अब चुनाव का बज गया, यह पंचजन्य शंख।

बूढ़ा शेर पटक दिया, चाचू का है यह खोट,

चुंबक लेकर खींच ले, मुसलमानों के वोट।

बूढ़ा थककर चल पड़ा, थककर चकनाचूर,

हार गया तो क्या हुआ, हारा नहीं गुरूर।

बाप मुलायम पिघलते, बेटा श्रवण कठोर,

ऐसा कलियुग आ गया, अंधकार है घनघोर।